चेहरे कि चमक से जिस्म के जख्म छिपा नहीं करते
बनावटी फूलों से इस तरह चमन महका नहीं करते
लाख मुस्करा लो तुम भले ही ज़माने के सामने
दिलों में छिपे दर्द यूँ ही मिटा नही करते
खेलों में भी खेल, खेल गए मेरे ये रहनुमा
यूँ फकत रौशनी से ये अँधेरे मिटा नही करते
बात तो तब है उनके घरों में भी उजाला हो
यूँ अँधेरे में रख तुम्हारे दिल सहमा नही करते
ये कंगूरे देखकर क्यूँ इतराते हो तुम इस कदर
काश उस नीव कि ईंट पर तुम अपनी नजर रखते
115. साँसों का संकट
6 days ago
14 comments:
आज तो आपकी पोस्ट की पहली लाईन ने ही आईना दिखा दिया जी, हमें बाहर का दिख जाता है और अपने अंदर का नहीं दिखता।
कड़वा सच है जिसे आपने आपने ही अंदाज़ में पेश किया है .....शुक्रिया
aameen
लाख मुस्करा लो तुम भले ही ज़माने के सामने
दिलों में छिपे दर्द यूँ ही मिटा नही करतेkya bat
kah dii janab.sabhi panktiya ek se badkar ek hai.....
नींव की ईटें तो दब गयी हैं, उसका महत्व भी दबा दिया गया है। सुन्दर कविता।
Bahut khoob!Harek pankti sundar hai!
आख़िरी शेर जबर्दस्त्त है
बढ़िया रचना.
जबरदस्त प्रभाव वाली रचना , नीव के महत्त्व को गौण समझने की भूल की और इंगित करती हुई . आभार .
Bahut Hi Acchi Rachna : Happy Deepawali.
सुन्दर अभिव्यक्ति...
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
aap sabi mitron ka dil se abhaar
aapne yaha aakar mera hausla badhaya
aate rahiye
ये कंगूरे देखकर क्यूँ इतराते हो तुम इस कदर
काश उस नीव कि ईंट पर तुम अपनी नजर रखते
बहुत गहन बात कही है ..अच्छी प्रस्तुति ....दीपावली की शुभकामनायें
मनमोहक रचना ....
आपको व आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
आप को सपरिवार दीपावली मंगलमय एवं शुभ हो!
मैं आपके -शारीरिक स्वास्थ्य तथा खुशहाली की कामना करता हूँ
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