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Thursday, November 18, 2010

ये नेट रिलेशन कि गड्डी यूँ ही...............


जैसे ही हमने मोहतिरमा जी को खटखटाया
उन्होंने फ़ौरन बेकफुट डिफेंसिव शोट खेला!

हाई; कैसे मालूम पड़ा कि में ऑनलाइन हूँ

हमने स्थिति को भांपा और अगली बाल
"दूसरा" बड़ी मासूमियत से फेंक डाला
हमें कहा इसमें कोई खास बात नही
कोई ओन हे या ऑफ हम पता लगा ही लेते हैं
बाय द वे क्या हाल-चाल हैं आपके
हमने झूठ कि कढ़ाई में एक छोंक
मारते हुए पूच्छा!
बहुत दिन बाद नजर आये
बैसे हमने उनको बहुत कम ऑफ लाइन
होते देखा था,
वो बेट-न-पेड क्लोस लाते हुए
हमारी गुगली के इफ्फेक्ट को कम करते

हुए बोली, हाँ आज कई दिन बाद ऑनलाइन हुई हूँ
टाइम ही नही मिलता,.

हमें तुरंत उनकी हाँ में हाँ मिलाई,
जी हाँ टाइम कहा हे आजकल किसी
के पास!
मोहतिरमा बहुत खुश हुई,
लेकिन वो ये नही जानती थी
कि अगर वो सारा दिन बेटिंग
कर सकती हैं तो हम भी
लेफ्ट-आर्म- रोउन्द द विक्केट
बौलिंग करते रहते हैं सारा दिन!

अब मोहतिरमा जी सोच रही थी कि
इससे कैसे छुटकारा पाया जाये!

तुरंत बोली, वेट कॉल हे
फिर बो वेट कॉल इतनी लम्बी होती हे
कि वो ख़त्म ही नही होती!
फिर एक ऑफ लाइन मेसेज

D.C. हो गया था!

मोहतिरमा जी ये सोच रही थी कि
हम उनका वेट कर रहे हैं,
उनको ये नही मालूम कि ये
रेलवे नेटवर्क नही हे, जब तलक
लाइन क्लेअर नही मिलेगी
गड्डी आगे नही बढती ,
अरे ये विर्चुअल नेटवर्क हैं
जिसे किसी सिग्नल कि या
क्लेअरेंस कि जरुरत नही पड़ती
लोगबाग अबाउट-टार्न होते देर नही लगाते
आपका स्टेशन बीजी तो किसी और स्टेशन पर
बढ़ जाते हैं!
सिलसिला यूँ ही चलता रहता हे
वेट और कॉल के चक्कर में
वेटिंग लिस्ट बहुत लम्बी होती जाती हे
और ये नेट रिलेशन कि गड्डी यूँ ही
आगे बढती जाती हे!

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वास्तविकता को करीने से सजाया है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

हा हा ...सटीक ..गड्डी बढाते रहो :)

shikha varshney said...

सही चल रही है गाड़ी चलाये जाइये.

उपेन्द्र नाथ said...

सही कहा... गड्डी बिना ब्रेक के यूँ ही बढ़ती रहे . कभी कभी बस हमेँ भी लिफ्ट दे देना भाई.