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Wednesday, December 29, 2010

शाकाहारी मुर्गी

हे न कुछ अजीब सा संबोधन

मगर हे ये सत्ये,

बात कुछ ऐसे ही चल रही थी

या कहे कि जुबान फिसल रही थी

बातों ही बातों में वो बोले

कुछ लिखने का मूड बना रहे हैं

हमने कहा हम भी ,मूड बनायेंगे

घर जाकर कुछ न कुछ पकाएंगे

सुरा पर तो अपना अधिकार हे

बिना सुन्दरी के मन बहलाएँगे!

वो बात को तुरंत ताड़ गए

बोले सुंदरी घर पर नही हे?

बात सुरा से शुरू होकर

सुन्दरी पर अटक गई

हमने कहा रोज दाल-रोटी

खाकर गुजारा करते हैं,

बोली आपका इशारा

हम समझ रहे हैं

लगता आप किसी मुर्गी

कि तलाश में भटक रहे हैं;

हमने मौके कि नजाकत को

तुरंत भांपा!

और अपना पासा तुरंत

मोह्तिर्मा पर फेंक डाला,

वो हमारी सोच से कही

ज्यादा, उस्ताद निकली,

और बोली, आपको

मटन -टिक्का, या चाहिए

चिक्केन चिली ?

आप रोंग नंबर डायल

कर रहे हैं,

यहाँ मुर्गी तो हे

मगर शाकाहारी हे

फिर क्यूँ आप गलत-फ़हमी में

पल रहे हैं!

उनके इस संबोधन से

हम पानी पानी हो गए

और उनकी इस अदा के

हम दीवाने हो गए!

हमने कहा हम इस

शाकाहारी मुर्गी को भी

पकाएंगे, मगर क्या पता था

कि बातों ही बातों में

ये कविता लिख जायेंगे!

6 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, पर मुर्गी तो शाकाहारी ही होती है।

उपेन्द्र नाथ said...

अलोक जी शीर्षक तो मस्त है कविता भी मस्त बन पड़ी है.... अब शाकाहारी मुर्गी से ही काम चलिये. शुभकामनाये.
फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

रमिया काकी

shikha varshney said...

मुर्गी तो बेचारी शाकाहारी ही होती है .

संजय भास्‍कर said...

अरे वाह!
,,,,,,,,,प्रेरक रचना

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......

डॉ० डंडा लखनवी said...

नए वर्ष की आपको भी बधाई।
गरम जेब हो और मुंह में मिठाई॥