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Friday, January 7, 2011

आज का इंसान

आज का इंसान

इस कद्र है हैवान

सांप से भी

ज्यादा दंशवान

इंसान, मरता हे

सांप के काटने से,

लेकिन ये इंसान

इंसान के काटे बिना

ही, इंसान द्वारा ,

मार दिया जाता है,

सांप काटने से

पहले फुंफकारता है

लेकिन ये इंसान

चुपचाप, बिना फुफकारे

ही डस लेता हे,

जब तक समझ

में आता है!

तब तक उसका काम

तमाम हो जाता हे!

सांप तो अक्सर ही

केंचुली बदलता हे

लेकिन ये , इंसान

ओढ़े रहता हे

केंचुली पर केंचुली;

कैसे पहचानोगे

इस इंसान को

जिसकी खुद कि

खुद को नही होती हे

कोई पहचान!

6 comments:

संजय भास्‍कर said...

aaj ke insaan me sabhi khubiya hai .........alok ji

संजय भास्‍कर said...

Beautiful as always.
It is pleasure reading your poems.

shikha varshney said...

superb..सांप का काटा बच सकता है पर इंसान का विषवमन मार कर ही छोड़ता है.

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कह रहे हैं, कभी कभी पहचानना बड़ा कठिन हो जाता है।

ashish said...

सांप और इन्सान की दूरिय घटती जा रही है .

उपेन्द्र नाथ said...

अलोक जी ............. बहुत ही सामयिक और आज के हालात पर सुंदर कविता.......
.
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