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Wednesday, March 2, 2011

बजट का खेल


अजीब हे ये बजट का झमेला
मदारी कि तरह हे इसका थैला
जो अन्दर डालकर डंडा हिलाता है
ख़ाली हाथ में पैसा आ जाता है!

जब भी ये बजट का एपिसोड आता है
मुझे हमेशा ही वो मदारी याद आता है
वो तमाशा दिखाकर लोगो कि जेबे ख़ाली करता
और ये घोषणाओं के नाम पर सरकारी खज़ाना!

योजनाओं-परियोजनाओ कि घोषणाएँ खूब होती हैं
उनके हिस्से का पैसा आवंटित कर दिया जाता है
बाद में ये नेताओं/ अफसरों में बाँट लिया जाता है
इस तरह से योजनाओ का किर्यांवन कियाजाता है!

शिक्षा का बजट इस बार ४०% बढ़ा दिया गया
महकमे से सम्बंधित लोगो को रुला दिया गया
शायद इधर भीड़ कुछ ज्यादा हे लूटने वालों कि
कह रहे हैं ,इसे बढ़ाकर हमारा क्या भला किया गया!

सरकारी स्कूल आज भी पेड़ों के नीचे चलरहे हैं
जो ईमारत बनी भी हैं, उसमे जानवर चर रहे हैं
कही दिवार नही है, तो कही छत चु/गिर रही है
सरकार आज भी सर्व-शिक्षा अभियान को लेकर चलरही है!

लूट-तंत्र का ये खेल काफी पुराना है
इसमें पक्ष-विपक्ष दोनों का ही नजराना है
मिलाकर कोई ५५० अभिनेता(नेता), औए अशंख्ये अफसर
१२० करोर का भाग्य बनाते हैं
जनता को बिना लेन्स के चश्मे से
उनका भविष्य दिखलाते हैं!

जनता तो बेचारी हे, ये उसकी लाचारी है
ये नेता और अफसर इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं
इस भोली जनता-जनार्दन कि नब्ज अच्छी से पहचानते हैं
उन्हें पता हे ये रोयेंगे और चिल्लायेंगे
इनके पास दूसरा कोई उपाए नही है
लौटकर हमारे ही तो पास आयेंगे
और हम फिर से इनका बैंड बजायेंगे!

7 comments:

kshama said...

Ye khel tamasha to sadiyon jaaree rahega!

प्रवीण पाण्डेय said...

बने मदारी वे सब,
हम भी बन्दर बनकर नाच रहे।

shikha varshney said...

बहुत सटीक और बढ़िया लिखा है.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

नंगे सच को शब्द दे रही है आपकी कविता ,,,,लेखनी को तलवार भी बनना पड़ता है

Swarajya karun said...

तीखा व्यंग्य .अच्छी प्रस्तुति. आभार .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

करारा व्यंग ...हर साल यही होता है ...बन्दर के हाथ उस्तरा कब लगेगा ?

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

कर गए जी वो तो अपनी …

अब भुगतना है आप हम को

हाय रे बजट !


बढ़िया लिखा …

मंगलकामनाएं !