राग द्वेष रंग भेष
पता नही मैं हूँ कौन
मैं हूँ भी कि नही
क्या बाकई
मेरा कोई अस्तित्व है,
मैं भ्रमित हूँ आज भी
जितना कि कल था,
लेकिन दिशा ज्ञान
आज भी बाँट रहा हूँ
और उसी में अपनी
दिशा भी खोज रहा हूँ,
अजीब सी मारममार है
गजब की रेलमपेल है
मैं इसी भीड़ का हिस्सा
होते हुए भी
अपने को अलग दिखाना
चाहता हूँ!
लेकिन क्यूँ , किसलिए
काश की मुझे
ये सब पता होता,
फिर मैं क्यूँ
इस तरह भटकता
फिर क्यूँ मैं अपना
रंग पल पल बदलता!
पता नही मैं हूँ कौन
मैं हूँ भी कि नही
क्या बाकई
मेरा कोई अस्तित्व है,
मैं भ्रमित हूँ आज भी
जितना कि कल था,
लेकिन दिशा ज्ञान
आज भी बाँट रहा हूँ
और उसी में अपनी
दिशा भी खोज रहा हूँ,
अजीब सी मारममार है
गजब की रेलमपेल है
मैं इसी भीड़ का हिस्सा
होते हुए भी
अपने को अलग दिखाना
चाहता हूँ!
लेकिन क्यूँ , किसलिए
काश की मुझे
ये सब पता होता,
फिर मैं क्यूँ
इस तरह भटकता
फिर क्यूँ मैं अपना
रंग पल पल बदलता!
5 comments:
आप की सोच बहुत गहरी है । सुंदर प्रस्तुति ।
सुन्दर शेली सुन्दर भावनाए क्या कहे शब्द नही है तारीफ के लिए .
द्वन्द बिछा है हर चौखट पर।
यही कशमकश हर जगह है .
बढ़िया रचना.
फिर मैं क्यूँ
इस तरह भटकता
फिर क्यूँ मैं अपना
रंग पल पल बदलता! .............भटकते मन के गहरे भाव ...बहुत खूब
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