115. साँसों का संकट
1 day ago
लिखने का शौक काफी पुराना हे, अपने स्कूलिंग के वक़्त से लिखने का चस्का पड़ गया था, फिर छूट गया, ४ साल पहले ऑरकुट से जुड़ना हुआ, इसके माध्यम से विभिन्न कम्युनिटी से जुड़ना हुआ, फिर से एक बार कीड़ा कुलबुलाया, सो लिखना फिर शुरू कर दिया, वाह-वाही मिलने लगी, तो हौसला बढ़ने लगा, लोगो की देखा देखि, ब्लॉग भी बना लिया, आप लोगो से अपनी सोच बाँट सकूँ, बस इसी उद्देश्य सा यहाँ हूँ , आपका प्यार ही मेरे लेखन की लाइफ लाइन हे. ...शुक्रिया
5 comments:
इज़हार करने की भी कोई उम्र होती है ? :):)
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
आज मेरे इरादों में बदनीयती आ जाने दो,
मुझको तुम्हारे ख्यालों में खो जाने दो,
मुद्दतों के बाद ये मौसम दीवाना हुआ है
आज तो इन बादलों को बरस जाने दो!
वाह क्या बात है...बहुत खूब.
उम्र और जमाना, दोनों ही मन के गुलाम हैं, बाहर निकल कर जियें।
आज मेरे इरादों...बादलों को बरस जाने दो!
गुजारा है वक़्त ... सरगम को गुनगुनाने दो!
मेरी चाहत को ...पहले मुरझाने न दो!
इज़हार तो कर ही डाला ना :)
or bhi gam hai jamne me mohobbat ke siva ,rahen bhi do ab tum izhare wafa ,kyu ki tum ko bhi hai pata or un ko bhi hai pata,kya hai izhare wfaa....
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