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Wednesday, June 8, 2011

मम्मी जी मोरी मैं नही माखन खायो

कुटिल कपिल है, भयो बावरो दिग्गी है
बाबा चकित और भ्रमित प्रजा भई है
दोनों ने ही बाबा बिन लंगोट भगायो,
मम्मी जी मोरी मैं.................

गडबड झालो कियो, इन सबन्ने मिलके
कियो मना मैंने ,तो भी खायो जमके
कलमाड़ी, राजा, कानी ने ही माल डकारो
मम्मी जी मोरी मैं.

भोर भई मैया, विपक्ष मोरे  पीछे
सुप्रीम कोर्ट मोहे, चिठिया  दीजे
का कऊं उनसे समझ न पायो
जबरन ही मोपे कहलवायो
मम्मी जी मोरी मैं..

4 comments:

G.N.SHAW said...

बहुत ही बढ़िया ..आप मेरे ब्लॉग बालाजी पर भी आयें और अपने बहुमूल्य बिचार दें !

प्रवीण पाण्डेय said...

कान्हा अब क्या करे?

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बहुत बढ़िया....
शुभकामनाएं...

shikha varshney said...

मासूम मोहन अब क्या करेगा :(
बढिया रचना.