कल तलक जो बाबा के साथ थे
पूरे जोश मैं, कि बाबा सही कर रहा है
आज उसी बाबा के अनशन तोड़ने पर
वो हंस रहे हैं!
कह रहे हैं, कि बाबा कमजोर निकला!
सिर्फ ९ दिन में ही बाबा का डिब्बा गोल हो गया
अरे ये तो पाखंडी निकला! जिन्दा बच गया!
मुद्दा भूल कर, बस यही बहस
कि बाबा मरा क्यूँ नही!
अचानक से ये दोगला चेहरा
देखकर मैं सोच मैं पड़ जाता हूँ!
शायद ये भी एक बिडम्बना है!
इस हिन्दुस्तान की! जहाँ
असली मुद्दे छूटते जाते हैं
और बेमनी मुद्दे चर्चा में आ जाते हैं
शायद व्यवस्था भी कुछ यही चाहती है
भ्रमित करना, पहले से ही भ्रमित जनता को!
लेकिन मैं कतई भ्रमित नही हूँ,
इसलिए मैने कभी भी किसी का
पक्ष नही लिया! मैं मौकापरस्त हूँ
जैसी हवा देखि, बैसा ही रुख कर लेता हूँ!
क्यूंकि मैं अपनी ज्निदगी नही जीता
वो तो पहले ही किसी की गुलाम है!
व्यवस्था की ?
अब इसका पता आप लगाओ!
पूरे जोश मैं, कि बाबा सही कर रहा है
आज उसी बाबा के अनशन तोड़ने पर
वो हंस रहे हैं!
कह रहे हैं, कि बाबा कमजोर निकला!
सिर्फ ९ दिन में ही बाबा का डिब्बा गोल हो गया
अरे ये तो पाखंडी निकला! जिन्दा बच गया!
मुद्दा भूल कर, बस यही बहस
कि बाबा मरा क्यूँ नही!
अचानक से ये दोगला चेहरा
देखकर मैं सोच मैं पड़ जाता हूँ!
शायद ये भी एक बिडम्बना है!
इस हिन्दुस्तान की! जहाँ
असली मुद्दे छूटते जाते हैं
और बेमनी मुद्दे चर्चा में आ जाते हैं
शायद व्यवस्था भी कुछ यही चाहती है
भ्रमित करना, पहले से ही भ्रमित जनता को!
लेकिन मैं कतई भ्रमित नही हूँ,
इसलिए मैने कभी भी किसी का
पक्ष नही लिया! मैं मौकापरस्त हूँ
जैसी हवा देखि, बैसा ही रुख कर लेता हूँ!
क्यूंकि मैं अपनी ज्निदगी नही जीता
वो तो पहले ही किसी की गुलाम है!
व्यवस्था की ?
अब इसका पता आप लगाओ!
13 comments:
लेकिन मैं कतई भ्रमित नही हूँ,
इसलिए मैने कभी भी किसी का
पक्ष नही लिया! मैं मौकापरस्त हूँ
जैसी हवा देखि, बैसा ही रुख कर लेता हूँ!
क्यूंकि मैं अपनी ज्निदगी नही जीता
वो तो पहले ही किसी की गुलाम है!
व्यवस्था की ?
अब इसका पता आप लगाओ!
Kya baat kah dee!
जन भावनाओं के उछाह पर होती राजनैतिक सर्फिंग।
जैसी हवा देखि, बैसा ही रुख कर लेता हूँ!
क्यूंकि मैं अपनी ज्निदगी नही जीता
वो तो पहले ही किसी की गुलाम है!
व्यवस्था की ?
bilkul sahi akah aapne aalok ji
यही तो विडम्बना है। मूल प्रश्न नेपथ्य में गुम हो जाते हैं।
व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है ! आगे बढ़ें !
यही तो विडंबना है । व्यवस्था के गुलाम हैं हम सब । लेकिन बाबा के साथ अण्णा के साथ और ुन सबके साथ जो इस भ्रष्ट व्यवस्थ के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं हमारी शुभ कामनाएं हैं । कुछ करने के लिये जान की हिफाजत जरूरी है । वो कहते हैं ना सिर सलामत तो पगडी पचास ।
एक अलग सोच के साथ लिखी अच्छी कविता। जिसमें आज के सच को उकेरा गया है। सच है कि असल मुद्दे पर बहस न हो कर बातें इधर-उधर घूमती रहती हैं, या घुमा दी जाती हैं।
चंद अंतिम पंक्तियों में कविता को जहाँ पहुंचाकर फिर विराम दिया है - गजब का लगा - एक सम्पूर्ण और प्रभावशाली प्रस्तुति
क्या बात कहदी आप ने बिल्कुल सही कहा व्यवस्था के गुलाम हैं हम सब
किसी मे विरोध में बोल ने की हिम्मत भी नही है बाबा व अन्ना में कम से कम
भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत तो की हम सब को उनकी बुराई न कर्के साथ खडे रह्ना चाहिये
व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है शायद ये परिवर्तन की शुरुआत हो.........
shukriya aap sabhi ke aane ka!
वास्तव में बिडम्बना ही है खरे जी.
मन और बुद्धि चंचल हैं,
जिस ओर की हवा बहती है उस ओर ही हो जाते हैं.
हमारी आखिर चाहत क्या है,यही नहीं समझ पाते हम.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
इसी को भेड़ चाल कहते हैं...
जैसी हवा देखि, बैसा ही रुख कर लेता हूँ! क्यूंकि मैं अपनी ज्निदगी नही जीता वो तो पहले ही किसी की गुलाम है! व्यवस्था की ? bilkul sahi akah aapne aalok ji
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