जैसे ही हम घर से ऑफिस के लिए निकले! एक अजीब से बदबू हमारी नासिका में प्रवेश कर गयी!
हम रुके, और उस बदबू का कारन जानना चाहा, फिर श्रीमती जी को आवाज लगायी! कहा हो भाई,
श्रीमती जी किचेन से बद्बदाती हुई आई! और लगभग चिल्लाते हुए बोली, अब क्या हुआ! ऑफिस
नही जाना क्या! हमने कहा ऑफिस ही जा रहे थे, लेकिन ये बदबू , उन्होंने हमें बीच में ही रोकते
हुआ कहा, अच्छा हुआ तुमने बदबू सूंघ ली, मेरी तो नाक में कुछ भी गंध नही आती! बात ये हे
कि कूड़े उठाने वाला कई दिनों से आया नही है! इसीलिए ये बदबू इस डस्टबिन में से आ रही है!
हमने गौर से देखा डस्टबिन तो जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम कि तरह चमचमा रहा था, हमने श्रीमतीजी
से कहा , लगता है तुम भी कलमाड़ी बाबा कि राह पर चल पड़ी हो! श्रीमती जी तमतमाई, बोली गाली,
देनी हे तो दे लो, लेकिन हमारा नाम उस भिराष्ट नेता के साथ न जोडीये! अरे हमने कहा कि उन्होंने भी
चमचमाते हुए स्टेडियम बन्बाये थे, लेकिन सब मैं कुछ न कुछ घोटाला था! तो उसी से हमें डस्टबिन
के चमकने और उसमे बदबू आने का कारन का तर्ताम्ये बैठाने लगे! पत्नी जी बोली ठीक है, आप तारतम्ये
बिठाते रहना, पहले ये कूड़े कि थैली उठाइए और रास्ते में खिसका देना.
खैर! हमने मन मसोस कर कूड़े कि थैली थामी और चल पड़े ऑफिस, अब रास्ते में टेंशन कि कहा पर
सरकाए इस कूड़े को, खैर जैसे तैसे एक जगह कूड़े का ढेर देखा हमने इधर -उधर देखा और कूड़े कि थैली
उछाल दी! और ऐसे महसूस किया जैसे कि वन डे सिरीज का पहला मैच जीत लिया हो! जैसे ही आगे बढे,
एक साहब हथेली में तम्बाकू रगड़ते हुए सामने आ टपके, और हमें रुकने का इशारा किया, हम रुके, और
पूछा कहिये श्रीमान! उन्होंने हमें ऊपर से नीचे तौला और कहने लगा, देखने में तो सभ्य इंसान लगते हो,
पढ़े लिखे भी होगे ही, लेकिन दिमाग का इस्तेमाल नही करते!, हमने कहा यार सीधे सीधे कहो, क्या कहना है,
बी जे पी कि तरह राजनितिक बयां बाजी न करो! बोला हुन, आप पर सार्वजानिक स्थल को गन्दा करने का इल्जाम हे!
इसलिए आप पर पूरे 200 रूपये जुरमाना! हमने कहा यार, हमने तो कूड़े कि जगह ही कूड़ा डाला है! फिर ये जुरमाना
किस बात का! बोला एक तो गलती करते हो ऊपर से कानून झाड़ते हो, हमने उसके तेवर देखे, और कहा यार
कुछ ले देकर निपटा लो मामला! बोला एक और गलती रिश्वत देते हो! हमने सोचा यार ये अन्ना जी का समर्थक
यहाँ कहा से पैदा हो गया! हमने कहा क्या चाहते हो! बोला इधर आओ कौने में, फिर बोला चालान कटवाना हे या,
हमने जल्दी से उसके हाथ पर ५० का नोट रखा और खिसक लिए! फिर सोचा यार ज्यादा इमानदारी भी ठीक नही!
2 comments:
चलिये, बच गये।
Hmmmm....is waqaya se kya sabaq liya jaye???
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