ए हसीना तेरे आशिक हम
ऐसे भटके हमारे कदम,
तेरे आगे चले, तेरे पीछे चले
तेरे क़दमों मैं निकलेगा दम,
ए हसीना तेरे आशिक हम....
जब जुल्फों का हो सामना
तब अपनी यही कामना
वो पिटाई करे, हम माफ़ी मांगे
न हो ऐसी कभी दुर्दशा,
है तेरी आशिकी मैं वो दम,
अच्छे अच्छे को कर दे ख़तम,
तेरे आगे चले, तेरे पीछे चले,
तेरे क़दमों मैं निकलेगा दम,
ए हसीना तेरे आशिक हम....
आशिकी अब बहुत हो चुकी,
साडी दुनिया को शो हो चुकी,
या तो हाँ ही करो, या न ही करो
अब तो ले लो डिसीजन कोई ,
है तेरी आशिकी मैं वो दम,
अच्छे अच्छे को कर दे ख़तम,
तेरे आगे चले, तेरे पीछे चले,
तेरे क़दमों मैं निकलेगा दम,
ए हसीना तेरे आशिक हम....
Sunday, October 11, 2009
Wednesday, October 7, 2009
कागज का रावन
कागज का रावन
हमने एक बार फिर से कागज के रावन को जला दिया
और अपने मन को यूँ ही संतोष दिला दिया,
ए दुनिया भी कितनी बिचित्र है
अरे भाई रावन तो एक चरित्र है,
जो इस बात को आज तक न समझ पाई,
की कही कागज के रावन के पुतले जलने मात्र से
किसी चरित्र को दी जा सकती है विदाई,
जलाना अगर तो अपने अन्दर के रावन को जलाओ
एक बार फिर से मेरे देश को अमन-चैन की रह दिखाओ
और भाई-चारे का सन्देश फैलाओ,
हम ईद मनाये , और तुम दिवाली मनाओ.
गरीबी का रावन
अगर रावन जलाना है तो
गरीब के पेट की भूख का रावन जलाओ,
जो दिन-दूनी रत-चौगनी बढती महगाई
की मर से सुरसा के मुह की तरहा
बढ़ता ही जा रहा है,
क्या इस तरफ किसी तथा-कथित
कलयुगी राम का ध्यान जा रहा है,
जिस तरहा कागज के फूलों से
खुशबू आ नही सकती ,
उसी तरहा रावन को जलाने से
किसी गरीब की भूख नही मिट सकती,
सवाल तो पहले पेट भरने का है
जो आश्वासन की खयाली रोटी से नही,
हकीकत की रोटी से भरेगा,
और जिस दिन ए तथा-कथित कलयुगी राम
गरीबो के इस दिव्स्वापन को साकार कर पाएंगे
उस दिन सच मैं वो रावन को मर पाएंगे.
हमने एक बार फिर से कागज के रावन को जला दिया
और अपने मन को यूँ ही संतोष दिला दिया,
ए दुनिया भी कितनी बिचित्र है
अरे भाई रावन तो एक चरित्र है,
जो इस बात को आज तक न समझ पाई,
की कही कागज के रावन के पुतले जलने मात्र से
किसी चरित्र को दी जा सकती है विदाई,
जलाना अगर तो अपने अन्दर के रावन को जलाओ
एक बार फिर से मेरे देश को अमन-चैन की रह दिखाओ
और भाई-चारे का सन्देश फैलाओ,
हम ईद मनाये , और तुम दिवाली मनाओ.
गरीबी का रावन
अगर रावन जलाना है तो
गरीब के पेट की भूख का रावन जलाओ,
जो दिन-दूनी रत-चौगनी बढती महगाई
की मर से सुरसा के मुह की तरहा
बढ़ता ही जा रहा है,
क्या इस तरफ किसी तथा-कथित
कलयुगी राम का ध्यान जा रहा है,
जिस तरहा कागज के फूलों से
खुशबू आ नही सकती ,
उसी तरहा रावन को जलाने से
किसी गरीब की भूख नही मिट सकती,
सवाल तो पहले पेट भरने का है
जो आश्वासन की खयाली रोटी से नही,
हकीकत की रोटी से भरेगा,
और जिस दिन ए तथा-कथित कलयुगी राम
गरीबो के इस दिव्स्वापन को साकार कर पाएंगे
उस दिन सच मैं वो रावन को मर पाएंगे.
Saturday, October 3, 2009
कविता मैं तुझको किस रूप मैं लिखूं
कविता मैं तुझको किस रूप मैं लिखूं
जब भी कभी मैं तुझको गंभीरता से लिखता हूँ,
तो तू सागर सी गहरी हो जाती है,
पता नही लोग तुझमे क्या क्या ढूँढ़ते हैं,
क्या तू उन तक पहुच पाती है,
शायद हाँ, शताद ना, मुझको तो नही पता,
कभी तू हस्ये रूप मैं लोगो से मिलती है,
कभी तू एक कड़वी सच्चाइ लिए होती है,
कोई कहता है की तू समाज का दर्पण है,
कोई कहता है की तू कवी की कल्पना है,
तेरे अनेक-एक रूप होने के बाबजूद
तेरा अनेक-एक लोगो से रु-बरु होने के बाबजूद,
क्या तू उन तक apni छाप छोड़ पायी ,
क्या तू इस समाज को रत्ती भर भी बदल पाई,
आखिर तेरे जन्म लेने का मकसद क्या है,
मुझे तो लगता है की तेरा जन्म तो
मात्र मनोरंजन के लिए ही ही होता है,
तभी तो ये समाज सदियों से
आज तक बैसे ही रोता है
जब भी कभी मैं तुझको गंभीरता से लिखता हूँ,
तो तू सागर सी गहरी हो जाती है,
पता नही लोग तुझमे क्या क्या ढूँढ़ते हैं,
क्या तू उन तक पहुच पाती है,
शायद हाँ, शताद ना, मुझको तो नही पता,
कभी तू हस्ये रूप मैं लोगो से मिलती है,
कभी तू एक कड़वी सच्चाइ लिए होती है,
कोई कहता है की तू समाज का दर्पण है,
कोई कहता है की तू कवी की कल्पना है,
तेरे अनेक-एक रूप होने के बाबजूद
तेरा अनेक-एक लोगो से रु-बरु होने के बाबजूद,
क्या तू उन तक apni छाप छोड़ पायी ,
क्या तू इस समाज को रत्ती भर भी बदल पाई,
आखिर तेरे जन्म लेने का मकसद क्या है,
मुझे तो लगता है की तेरा जन्म तो
मात्र मनोरंजन के लिए ही ही होता है,
तभी तो ये समाज सदियों से
आज तक बैसे ही रोता है
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