जैसे ही हमने कुछ लिखने के लिए कलम उठाई
उसकी याद, समय कि चादर से छन छन के आई
में चाहता हूँ कि , उसको नही लिखूंगा अब कभी
में पहले से ही इतना कुछ लिख चूका हूँ उस पर
मगर वो जेहन में इस कद्र बस चुकी है मेरे
कोई बात,उसका ख़याल आये बिना शुरू नही होती
मैं जितना भी उसको भूलना चाहता हूँ
वो पहले से ज्यादा याद आने लगती है
और मेरी कलम को मुह चिढाने लगती है
और कहती है, काश कि मुझको भूलना
इतना आसान होता तुम्हारे लिए
ये मैं भी जानती हूँ, और तुम भी जानते हो
फिर मुझसे मुह क्यूँ मोड़ते हो बार बार
अगर तुम बाकई मुझसे अलग लिखना चाहते हो
तो पहले मुझे अपना लो, अपना बना लो,
लेकिन हकीकत भी यही है,
कि वो मेरी कलम का साथ नही छोडती
अब किसने किसको जकड रखा है
मुझे नही पता,......
में असमंजस में हूँ, कि क्या करू, क्या न करू
मेरा प्यार उससे भी है, और मेरी कलम से भी
Friday, March 5, 2010
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3 comments:
उसकी याद, समय कि चादर से छन छन के आई
khoobsurat ehsaas
alok ji,
ek sunder kavita ke liye aap ko badhae. aap ke blog pe pehle baar aaya hoo. accha laga.
aap sabhi mahanubhavo ka dilse shukriya
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