हमारी चाहत को इस कद्र बदनाम न करो
दिल कि आवाज है ये, इसे सरे-आम न करो,
करना नही था प्यार, फिर ये दिल क्यूँ लगाया
ठुकराकर हमारी मुहब्बत को, हमें बदनाम न करो,
क्या जरूरी था दोस्ती के लिए, इजहारे मुहबब्त
इस दोस्ती और मुहब्बत को शर्मशार न करो,
काश कि इतना आसान होता इजहारे मुहब्बत
फिर से तुम लैला-मजनू कि कहानी बयां न करो,
दिखा ही चुके हो तुम, अपनी सूरत-ए-बेवफाई
खुदा के वास्ते अब, इजहारे-ए-जुर्म न करो,
Wednesday, March 17, 2010
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