मैंने तुम्हे कुछ इस तरहा से जाना है की तुम एक गुलाब के फूल की तरहा हो
जिसकी कुछ पंखुडिया खुली हुई , कुछ अध् खुली और कुछ एक दम से बंद,
हाँ तुम कुछ इस तरहा से ही हो, मेरे मन के अंतर्द्वंद मैं ,
लेकिन मैं उस शाख को नही पकड़ना चाहता जिस पर तुम ,
अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए लहरा रही हो,
मैं तुमको उस टहनी से अलग नही करना चाहता,
तुम्हारा सौन्दर्य उसी के साथ है, और तुम मुझे वही से ही अच्छी लगती हो,
हाँ मैं इंतजार करूँगा , की तुम एक दिन उस शाख से झरो, और बिखर जाओ,
यही कही, फिर मैं तुमको सहेजूगा प्यार से, अपने से लगाऊंगा ,
ताकि तुमको एहसास हो की, तुम्हारे इस पतन के बाद भी,
तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हुआ है, कोई है जो तुमको
अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....
Saturday, June 26, 2010
Wednesday, June 23, 2010
कौन कहता है कि तुमने ...........
कौन कहता हे कि
तुमने मुझको कम जाना हे
में कहता हूँ कि एक तुम ही हो
जिसने मुझको जाना है,
तेरे हर गीत और ग़ज़ल में
मेरा ही तो फ़साना है
कौन कहता है कि तुमने
मुझको कम जाना है.,...
जब जला ही चुके हो
चरागे मुहब्बत दिल में
फिर कौन सा गीत बाकि हे
ओ मेरी जाने-ए-ग़ज़ल
जिसको तेरे होठो पर आना है
कौन कहता है कि तुमने मुझे
कम जाना है...
एक तुम ही तो हो,
जिसने मुझे जाना है....
तुमने मुझको कम जाना हे
में कहता हूँ कि एक तुम ही हो
जिसने मुझको जाना है,
तेरे हर गीत और ग़ज़ल में
मेरा ही तो फ़साना है
कौन कहता है कि तुमने
मुझको कम जाना है.,...
जब जला ही चुके हो
चरागे मुहब्बत दिल में
फिर कौन सा गीत बाकि हे
ओ मेरी जाने-ए-ग़ज़ल
जिसको तेरे होठो पर आना है
कौन कहता है कि तुमने मुझे
कम जाना है...
एक तुम ही तो हो,
जिसने मुझे जाना है....
Tuesday, June 22, 2010
कुछ यूँ ही
जहा देखो, जब देखो
इसे देखो, उसे देखो,
किस किस को देखो
अपने सिवा सबको देखो,
कभी अपने को भी देखो!
ढूंढ़ लेगा जिस दिन तू खुद को खुदही में
मिल जायेगा तुझको खुदा खुदही में,
फिर न होगी कोई गलफ़त इस जहाँ में
जिस दिन बन जायेगा इंसान तू खुदही में,
नसीहते सबको और खुद को फजीहते
अब बस भी कर खुद जरा झांक खुदही में
इसे देखो, उसे देखो,
किस किस को देखो
अपने सिवा सबको देखो,
कभी अपने को भी देखो!
ढूंढ़ लेगा जिस दिन तू खुद को खुदही में
मिल जायेगा तुझको खुदा खुदही में,
फिर न होगी कोई गलफ़त इस जहाँ में
जिस दिन बन जायेगा इंसान तू खुदही में,
नसीहते सबको और खुद को फजीहते
अब बस भी कर खुद जरा झांक खुदही में
Saturday, June 12, 2010
वो ऑटो ड्राइवर
जैसा कि आप सभी जानते हैं, कि हम देलही में सेरविसे करते हैं
एक दिन हाल-फिलहाल हमें, ओफिसिअल काम से गुडगाँव जाना पड़ा,
उस दिन देलही का सबसे गरमा दिन था, और तापमान जब हम शाम को घर पहुंचे तो मालूम पड़ा ४७.४ डिग्री सल्सिउस, हमने ऑफिस से निकलते ही एक ऑटो लिया, और पुच्चा भैये गुडगाँव बोर्डर चलोगे, दोपहर के २.०० बजे , जोरो का लू चल रहा था, पहले तो हिच्काच्या फिर बड़ी मुश्किल से तयिआर हुआ, चलने के लिए, हम ओखला से महरौली बारे रास्ते से जा रहे थे, थोड़ी देर के बाद कुतुबमीनार दिखने लगा, हमने अपना इतिहास के ज्ञान का पिटारा खोला और बोले मालूम हे भैये ये कितनी पुराणी हे, वो अंदाजे से बोला होगी कोई ४००-५०० साला, और का, हम खुश हुए कि इसको कुछ नहीं मालूम, मेने कहा यार ये ११ बी सदी के हे, ९०० साल हो गए, वो हंसने लगा और बोला बाबूजी आपने हिस्टरी पढ़ी लगता हे, मेने फक्र से खा हाँ हाँ क्यूँ नही , ८ बी तक पढ़ी हे न, उसी से याद हे, हमारा उसे हिस्टरी कि जिक्र करना था फिर तो वो शुरू हो गया, AD-BC पूर्व इतिहास कि बाते, सिकंदर महान, चनाक्ये, और न जाने क्या क्या , जो हमें कुछ तो पता था, काफी कुछ नही पता था, वो १ घंटे का सफ़र और वो भंयंकर लू से भरी गर्मी हम भूल गए, उसकी बातों में इंटेरेस्ट लेते रहे, फिर हमने हिम्मत करके पूछा मिया आप कितना पड़े हैं, वो बहुत जोर का हंसा, बोले कुछ खास नही, में हिस्टरी से एम् -अ किया हे साहब, यू पी से हूँ, में उसकी बात सुनकर एक बार सकपका गया, मेने कह यार कमाल हे, आप तो पहुचे हुए हो, वो बोला जी ये क्या, मेरा छोटा भाई दो बार पी.सी. एस. का interview दे चूका है, ३स्रि बार फिर बैठ रहा हे एक्साम में. मेने पुच्चा आपके बच्चे , वोला १ बेटा हे जो M.B.A. कर रहा हे, बस ऑटो चलाकर टाइम पास कर रहे हैं, मेरा भाई व बेटा पढलिख जाये और क्या चाहिए. उन्ही कि लिए ये सब कर रहा हूँ.
एक दिन हाल-फिलहाल हमें, ओफिसिअल काम से गुडगाँव जाना पड़ा,
उस दिन देलही का सबसे गरमा दिन था, और तापमान जब हम शाम को घर पहुंचे तो मालूम पड़ा ४७.४ डिग्री सल्सिउस, हमने ऑफिस से निकलते ही एक ऑटो लिया, और पुच्चा भैये गुडगाँव बोर्डर चलोगे, दोपहर के २.०० बजे , जोरो का लू चल रहा था, पहले तो हिच्काच्या फिर बड़ी मुश्किल से तयिआर हुआ, चलने के लिए, हम ओखला से महरौली बारे रास्ते से जा रहे थे, थोड़ी देर के बाद कुतुबमीनार दिखने लगा, हमने अपना इतिहास के ज्ञान का पिटारा खोला और बोले मालूम हे भैये ये कितनी पुराणी हे, वो अंदाजे से बोला होगी कोई ४००-५०० साला, और का, हम खुश हुए कि इसको कुछ नहीं मालूम, मेने कहा यार ये ११ बी सदी के हे, ९०० साल हो गए, वो हंसने लगा और बोला बाबूजी आपने हिस्टरी पढ़ी लगता हे, मेने फक्र से खा हाँ हाँ क्यूँ नही , ८ बी तक पढ़ी हे न, उसी से याद हे, हमारा उसे हिस्टरी कि जिक्र करना था फिर तो वो शुरू हो गया, AD-BC पूर्व इतिहास कि बाते, सिकंदर महान, चनाक्ये, और न जाने क्या क्या , जो हमें कुछ तो पता था, काफी कुछ नही पता था, वो १ घंटे का सफ़र और वो भंयंकर लू से भरी गर्मी हम भूल गए, उसकी बातों में इंटेरेस्ट लेते रहे, फिर हमने हिम्मत करके पूछा मिया आप कितना पड़े हैं, वो बहुत जोर का हंसा, बोले कुछ खास नही, में हिस्टरी से एम् -अ किया हे साहब, यू पी से हूँ, में उसकी बात सुनकर एक बार सकपका गया, मेने कह यार कमाल हे, आप तो पहुचे हुए हो, वो बोला जी ये क्या, मेरा छोटा भाई दो बार पी.सी. एस. का interview दे चूका है, ३स्रि बार फिर बैठ रहा हे एक्साम में. मेने पुच्चा आपके बच्चे , वोला १ बेटा हे जो M.B.A. कर रहा हे, बस ऑटो चलाकर टाइम पास कर रहे हैं, मेरा भाई व बेटा पढलिख जाये और क्या चाहिए. उन्ही कि लिए ये सब कर रहा हूँ.
Friday, June 11, 2010
यार इसकी कमीज मेरी कमीज से .........
अपनी रचना कम्युनिटी पर पोस्ट करते ही
दोस्तों के कमेंट्स फटा-फट आने लगे
कुछ ने वाह वाह किया
और कुछ बहुत अच्छे से नवाजने लगे,
लेकिनं कुछ ऐसे जिनको ये सब गवारा न हुआ
और वो सोचते कि ...
यार इसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यूँ
साबुन तो में महगा वाला इस्तेमाल करता हूँ
लेकिन चमक इसकी कमीज में दिखाई देती है,
मेने कहा यार,
में फूटपाथ पथ पर चलता हूँ
तभी लोगो कि नजरों में चढ़ता हूँ
तुम लक्जरी कार में बैठ कर
आसमान में उड़ते हुए,
जमीन को छूने कि नाकाम कोशिश करते हो,
पहले जमीन पर आओ
फिर सबको अपनी कमीज दिखाओ,
ये साहित्य का दरबार हे,
जो प्यार से चलता हे,
यूँ खामखा अकड़ दिखाने
कही पाठक पड़ता हे
दोस्तों के कमेंट्स फटा-फट आने लगे
कुछ ने वाह वाह किया
और कुछ बहुत अच्छे से नवाजने लगे,
लेकिनं कुछ ऐसे जिनको ये सब गवारा न हुआ
और वो सोचते कि ...
यार इसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यूँ
साबुन तो में महगा वाला इस्तेमाल करता हूँ
लेकिन चमक इसकी कमीज में दिखाई देती है,
मेने कहा यार,
में फूटपाथ पथ पर चलता हूँ
तभी लोगो कि नजरों में चढ़ता हूँ
तुम लक्जरी कार में बैठ कर
आसमान में उड़ते हुए,
जमीन को छूने कि नाकाम कोशिश करते हो,
पहले जमीन पर आओ
फिर सबको अपनी कमीज दिखाओ,
ये साहित्य का दरबार हे,
जो प्यार से चलता हे,
यूँ खामखा अकड़ दिखाने
कही पाठक पड़ता हे
Thursday, June 10, 2010
मुझे याद हैं वो दिन
मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम
मुझको लिखा करती थी,
हमारा हर गीत, हर ग़ज़ल,
एक दुसरे में ढला करती थी,
हम नदी के वो दो किनारे थे
जिसमे बहता पानी हमारे मिलन का
शाक्क्षी हुआ करता था,
फिर अचानक एक दिन तूफ़ान आया
नदी ने अपना रुख बदल दिया,
तुम मेरा साथ छोड़ कर
किसी दुसरे किनारे से जा मिली,
और फिर से बही गीत-ग़ज़ल
गुनगुनाने लगी
मैं आज भी विराना सा
तुमको दूर से निहारता रहता हूँ,
इसी झूठी उम्मीद में शायद
फिर से ऐसा कोई तूफ़ान आये
एक बार फिर से तुमको
मुझसे मिला जाये,
हम फिर से अपनी मुहब्बत के तराने
एक दुसरे को सुनाये
हम फिर से बही गीत-ग़ज़ल गुनगुनाये
मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम मुझको लिखा करती थी,
जब मैं तुमको और तुम
मुझको लिखा करती थी,
हमारा हर गीत, हर ग़ज़ल,
एक दुसरे में ढला करती थी,
हम नदी के वो दो किनारे थे
जिसमे बहता पानी हमारे मिलन का
शाक्क्षी हुआ करता था,
फिर अचानक एक दिन तूफ़ान आया
नदी ने अपना रुख बदल दिया,
तुम मेरा साथ छोड़ कर
किसी दुसरे किनारे से जा मिली,
और फिर से बही गीत-ग़ज़ल
गुनगुनाने लगी
मैं आज भी विराना सा
तुमको दूर से निहारता रहता हूँ,
इसी झूठी उम्मीद में शायद
फिर से ऐसा कोई तूफ़ान आये
एक बार फिर से तुमको
मुझसे मिला जाये,
हम फिर से अपनी मुहब्बत के तराने
एक दुसरे को सुनाये
हम फिर से बही गीत-ग़ज़ल गुनगुनाये
मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम मुझको लिखा करती थी,
Wednesday, June 9, 2010
क्या होता हे
जब भी जाता हूँ उसके दर पर उसे गुमान होता हे
वो शख्स ऐसा है जो कभी कभी हैरान होता हे
भूल जाऊँ अगर जाना मैं उसके दर पर कभी
वो शख्स मुझसे मिलने का बेहद तलबगार होता हे
कुछ तो बात हे उसके और मेरे दरमियाँ
बरना क्यूँ ढूँढ कर मुझे वो मेहरबान होता हे
क्या तड़प हे हमारी इक-दूजे के लिए नही जानते
कभी में परेशां , to कभी वो परेशान होता हे
नहीं पड़े आजतक हम आशिकी में गौरव
दिल कहता हे कि पड़ भी जाओ तो क्या होता हे
वो शख्स ऐसा है जो कभी कभी हैरान होता हे
भूल जाऊँ अगर जाना मैं उसके दर पर कभी
वो शख्स मुझसे मिलने का बेहद तलबगार होता हे
कुछ तो बात हे उसके और मेरे दरमियाँ
बरना क्यूँ ढूँढ कर मुझे वो मेहरबान होता हे
क्या तड़प हे हमारी इक-दूजे के लिए नही जानते
कभी में परेशां , to कभी वो परेशान होता हे
नहीं पड़े आजतक हम आशिकी में गौरव
दिल कहता हे कि पड़ भी जाओ तो क्या होता हे
Tuesday, June 8, 2010
Pyar-Byapar
तेरा मेरा प्यार कुछ जुदा जुदा सा हे,
में तुझ पर, तू किसी और पे फ़िदा सा हे
हमने पूछा क्या इसकी कोई खास बजहा हे
वो हंसकर बोले कि तू अभी कच्चा सा हे
प्यार व्यार कुछ नही होता ये जान लो तुम
ये तो मौकापरस्ती और बस धोखा हे
लोग तभी तक साथ चलते है मेरे दोस्त
जब तलक तू उनके फायेदे का सौदा हे
जब भी चूका तू उनके मतलब से जिस दिन
पकड़ लेंगे हाथ दूसरों का, उन्हें किसने रोका हे
में तुझ पर, तू किसी और पे फ़िदा सा हे
हमने पूछा क्या इसकी कोई खास बजहा हे
वो हंसकर बोले कि तू अभी कच्चा सा हे
प्यार व्यार कुछ नही होता ये जान लो तुम
ये तो मौकापरस्ती और बस धोखा हे
लोग तभी तक साथ चलते है मेरे दोस्त
जब तलक तू उनके फायेदे का सौदा हे
जब भी चूका तू उनके मतलब से जिस दिन
पकड़ लेंगे हाथ दूसरों का, उन्हें किसने रोका हे
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