में थक गया,
कितना लिखू, क्या लिखू
मुझे नही था संज्ञान कि ये
जिन्दा-मुर्दों कि बस्ती हे
मुर्दों कि भी कही आत्माए जागती हे
शैतानो को भी, कभी शर्म आती हे
कब तक यूँ ही देख देख कर, खून खौलाता रहूँगा
अब बस, अब कलम तोडनी पड़ेगी
हाँ अब कलम छोडनी पड़ेगी
उठानी हो होगी बन्दूक,
और बनानी होगी निशाना
उस शैतान कि खोपड़ी
जिसने हमें इतने सालो से छला हे
जो हमारी मात्र भूमि पर वला हे
अपनी मात्र-भूमि को आजाद कराना होगा
वो कितने सालों से सो नही पाई हे
इन शैतानो ने उसका बलात्कार किया हे
जागो मेरे भारत के सच्चे सपूतों
एक बार और जग जाओ
अगर तुम आज जाग जाओगे
तो आने वाली पीढ़ी का भाग्य बनाओगे
और उन शहीदों कि आत्माओं को
जिन्होंने इस मात्रभूमि को
हमारे लिए आजाद कराया था
को सच्ची श्रधाअंजली दे पाओगे
......अलोक खरे
.....
Tuesday, August 17, 2010
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16 comments:
हाँ अब कलम छोडनी पड़ेगी
उठानी हो होगी बन्दूक !!
घोर क्रांतिकारी सोच-विचार की पंक्तियाँ !
हमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
पर ज़रूर पढ़ें:
काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html
खरे साहब !
अपना भी ये समझिये यही हाल है,
दिल में बहुत कुछ यही ख्याल है !!
अच्छा लिखा आपने, मन उद्द्वेलित हो उठता है !
बहुत शानदार!
shukriya Shehroz ji
aapka
najre inayat karne ke liye
shukriya Shehroz ji
aapka
najre inayat karne ke liye
shukriya Godiyaal ji
Hum-Khayali ke liye
Udan ji
abhar
soye hindustan ko phir ek baar jagana hoga ..........
बहुत सुन्दर
जय हिंद!
कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
धन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
अलोक खरे जी
आप जैसे जागरुक क़लम के सिपाही का आक्रोश बिल्कुल वाजिब है ।
बंधु , आप हम जितना कर सकते हैं , जारी रहना चाहिए ।
मुर्दों की आत्माए कभी तो जागेंगी
शैतानो को कभी तो शर्म आएगी
शस्वरं पर भी आपका हार्दिक स्वागत है , अवश्य आइएगा…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
thnx bhaskar sahib
shukrya rajindar ji
Thnx Rashmi di
thnx Coral Ji
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