उस दिन हमने कसम खा ही ली थी
कि आज से हम आशिकी नही करेंगे
ये सब बेकार कि बाते हैं,
जिसमे न बाते, न मुलाकते हैं
हम आने-जाने के वक़्त
नुक्कड़ पर खड़े रहते
उधर अम्मा चूल्हे पर
बैठी इंतजार करती रहती
कि बेटा पता नहीं कब आएगा
दाल ओट ओट कर आधी हो गयी
अब इसमें हल्दी कौन मिलाएगा
लेकिन हमारी अम्मा को कहाँ पता
कि उसके बेटे पर तो आशिकी
अपना रंग जमा चुकी हे
अब चाहे दाल जले या घुटे
उसे तो वो लड़की भा चुकी थी
वो रोज हमें अपने रास्ते पर खड़ा पाती
न हम कुछ कह पाते न वो कुछ कह पाती
उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ
जब ओ हमारी नजरों से ओझल होगई
तब हमें याद आया कि
अम्मा ने तो हल्दी थी मगाई,
अब तो अम्मा चूल्हा बुझा चुकी होगी
क्यूंकि टाइम का पता ही नही चला
जैसे ही हम हल्दी लेकर घर पहुंचे
अम्मा ने चूल्हे कि लकड़ी से कि पिटाई
बोली तू नालायक कहा रह गया था
या लाला दूकान छोड़ कर कही चला गया था
हमने कहा नही अम्मा लाला कही नहीं गया
तेरा लल्ला लड़की के चक्कर में फंस गया
अम्मा बोली नालायक
तुझसे एक मक्खी तो मारी नही जाती
लड़की क्या पटायेगा
बड़ा आया लड़की पटाने वाला
सच बोल तुने इतनी देर क्यूँ लगाई
मेने कहा अम्मा में सच ही बोल रहा हूँ
अम्मा ने कस के एक लकड़ी और जमाई
तब हमें अपनी अम्मा कि अम्मा
यानि कि अपनी नानी याद आई
उसदिन से हमने आशिकी न
करने कि कसम खाई!
कि आज से हम आशिकी नही करेंगे
ये सब बेकार कि बाते हैं,
जिसमे न बाते, न मुलाकते हैं
हम आने-जाने के वक़्त
नुक्कड़ पर खड़े रहते
उधर अम्मा चूल्हे पर
बैठी इंतजार करती रहती
कि बेटा पता नहीं कब आएगा
दाल ओट ओट कर आधी हो गयी
अब इसमें हल्दी कौन मिलाएगा
लेकिन हमारी अम्मा को कहाँ पता
कि उसके बेटे पर तो आशिकी
अपना रंग जमा चुकी हे
अब चाहे दाल जले या घुटे
उसे तो वो लड़की भा चुकी थी
वो रोज हमें अपने रास्ते पर खड़ा पाती
न हम कुछ कह पाते न वो कुछ कह पाती
उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ
जब ओ हमारी नजरों से ओझल होगई
तब हमें याद आया कि
अम्मा ने तो हल्दी थी मगाई,
अब तो अम्मा चूल्हा बुझा चुकी होगी
क्यूंकि टाइम का पता ही नही चला
जैसे ही हम हल्दी लेकर घर पहुंचे
अम्मा ने चूल्हे कि लकड़ी से कि पिटाई
बोली तू नालायक कहा रह गया था
या लाला दूकान छोड़ कर कही चला गया था
हमने कहा नही अम्मा लाला कही नहीं गया
तेरा लल्ला लड़की के चक्कर में फंस गया
अम्मा बोली नालायक
तुझसे एक मक्खी तो मारी नही जाती
लड़की क्या पटायेगा
बड़ा आया लड़की पटाने वाला
सच बोल तुने इतनी देर क्यूँ लगाई
मेने कहा अम्मा में सच ही बोल रहा हूँ
अम्मा ने कस के एक लकड़ी और जमाई
तब हमें अपनी अम्मा कि अम्मा
यानि कि अपनी नानी याद आई
उसदिन से हमने आशिकी न
करने कि कसम खाई!
17 comments:
वाह !! एक अलग अंदाज़ कि रचना ......बहुत खूब
अम्मा ने कस के एक लकड़ी और जमाई
तब हमें अपनी अम्मा कि अम्मा
यानि कि अपनी नानी याद आई
उसदिन से हमने आशिकी न
करने कि कसम खाई!
ALOK JI.
FIR TO ASHKI KA BHOOT UTTAR GYA HONA NA...
बहुत खूब, लाजबाब !
.
विश्वास नहीं होता की आशिकी का भूत भी उतरता है कभी।
.
बहुत अच्छी कविता...मजेदार. ...कभी 'पाखी की दुनिया' की भी सैर पर आयें .
बहुत ही सुन्दर, बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
एक ऐसा विडियो जिसे सबको देखना चहिये
देर आये दुरुस्त आये :)
बढ़िया..
बस भूत उतरना जरूरी है फिर चाहे जैसे उतरे…………बहुत खूब्।
अम्मा ने कस के एक लकड़ी और जमाई
तब हमें अपनी अम्मा कि अम्मा
यानि कि अपनी नानी याद आई
उसदिन से हमने आशिकी न
करने कि कसम खाई...............
आशिकी का भूत भी उतरता है कभी ????
हमें इस बात के लिये आशिकी में फाउल दे दिया जायेगा क्योंकि हम सब्जी नहीं खरीद पाते हैं।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....
बेहतरीन रचना!
लगता है ग़ालिब साहिब को पाना कलाम बदलना पड़ेगा,
इश्क वो आग है जो डंडे खाने से बुझे ...
बढ़िया है .. लिखते रहिये ...
हा हा ... पर ये बीमारी आसानी से नही छूटती .... अछा लिखा है ...
apki kalam to kamaal hai hih hamesha ki tarah
aap sabhi guni jano ka dil se abhahr, meri rachna ke liye samye diya, yun ate rahiye aur hausla badhate rahiye
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