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Wednesday, January 19, 2011

दीवारों के भी कान होते हैं

!

कितना आसान होता हे
कह देना कि दीवारों
के भी कान होते हैं,
इतना कमजोर कब से
हो गया ये आज का इंसान
जिसे खुद पर नही हे
जरा सा भी इत्मिनान
कि अपनी गुस्ताखिओं
का जिम्मा, फोड़ देता हे
एक बेजान दिवार का
सहारा लेकर !
और कह देता है कि
दीवारों के भी कान होते हैं!
गनीमत हे कि उसने
ये कभी नही कहा
कि दीवारों कि
भी जुबान होती हे

Monday, January 10, 2011

दूर के ढोल सुहावने होते हैं!

दूर के ढोल सुहावने होते हैं!


ये मुहावरा ९वि -१०वि कक्षा में पढ़ा था

लेकिन बचपना होने के कारण

मुझे इसका अर्थ समझ नही आता था

या कहो कि कोन्फ़ुइज हो जाता था

क्यूंकि जब भी कही ढोल बजते थे,

कानो मैं आवाज आते ही,

हम सब बच्चे, मोहल्ले के

शोर मचाते हुए वह पहुँच जाते थे

और ढोल के आवाज पर नाचते हुए

लोगो को देखकर, खूब हँसते थे,

तो अब आप बताइए कि

ढोल नजदीक से सुहावने हुए

या दूर से, !

लेकिन वो बचपना था

या कहो कि नासमझी

अब जवानी से होते हुए

अधेड्ता कि और कदम बढ़ा चूका

ये वक़्त, बकाई, उस समय के

पढ़े मुहावरों को कितनी चपलता

से उनका मतलव समझाता चला

जा रहा हे, आज के इस व्यावसायिक

समय में,

क्यूंकि बहुत सी चीजें

दूर से ही सुहावनी लगती हैं

और जैसे ही आप उनके नजदीक

आते हैं, तो हकीकत कि पोल

आपके सारे भ्रम तोड़ देती हैं

और आपको उस वक़्त पढ़े हुए

मुहावरे का वास्तविक और यथार्थ

के धरातल पर परखा हुआ

प्रमाणिक सच सामने आ जाता हे

फिर हम सोचने लगते हैं

कि काश वो बचपना फिर से

आ जाये! और इस मुहावरे को

फिर से गलत सवित करे!

Friday, January 7, 2011

आज का इंसान

आज का इंसान

इस कद्र है हैवान

सांप से भी

ज्यादा दंशवान

इंसान, मरता हे

सांप के काटने से,

लेकिन ये इंसान

इंसान के काटे बिना

ही, इंसान द्वारा ,

मार दिया जाता है,

सांप काटने से

पहले फुंफकारता है

लेकिन ये इंसान

चुपचाप, बिना फुफकारे

ही डस लेता हे,

जब तक समझ

में आता है!

तब तक उसका काम

तमाम हो जाता हे!

सांप तो अक्सर ही

केंचुली बदलता हे

लेकिन ये , इंसान

ओढ़े रहता हे

केंचुली पर केंचुली;

कैसे पहचानोगे

इस इंसान को

जिसकी खुद कि

खुद को नही होती हे

कोई पहचान!