115. साँसों का संकट
2 days ago
लिखने का शौक काफी पुराना हे, अपने स्कूलिंग के वक़्त से लिखने का चस्का पड़ गया था, फिर छूट गया, ४ साल पहले ऑरकुट से जुड़ना हुआ, इसके माध्यम से विभिन्न कम्युनिटी से जुड़ना हुआ, फिर से एक बार कीड़ा कुलबुलाया, सो लिखना फिर शुरू कर दिया, वाह-वाही मिलने लगी, तो हौसला बढ़ने लगा, लोगो की देखा देखि, ब्लॉग भी बना लिया, आप लोगो से अपनी सोच बाँट सकूँ, बस इसी उद्देश्य सा यहाँ हूँ , आपका प्यार ही मेरे लेखन की लाइफ लाइन हे. ...शुक्रिया
8 comments:
आपने मैडम नही कहा नही तो वो मान जाती,....
बहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
सारे सम्बोधन तो कब्जे में चले गये हैं..
:-)
रिश्तों में राजनीती पैठ चुकी है सर.....
सादर.
:):)
मैडम भी आज कल लोगों को भाता नहीं है
वो बात दूसरी है की सामने कोई कहता नहीं है
Hahaha!
सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
achhi lagi, par sach kahun aapki isse kahin behtar padhi, suni hain maine.
ek cup chai na coffee kab hogi :)
shubhkamnayen
shukriya doston!
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