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Thursday, June 13, 2013

बिखरते रिश्ते ......

Blog parivaar
बिखरते रिश्ते ......

माँ अब नही कहती की
बेटा कब आ रहे हो,
कितनी बार कहेगी, पूछेगी
थक चुकी है माँ,
और बेटा जिसका शायद
अपना कोई बजूद ही नही
रह गया है!
डरते डरते फ़ोन करता है
की कही माँ आने के लिए
न कह दे!
लेकिन माँ समझ गयी है
की बेटा अब "अपने" में
मस्त है "अपनों" को भुलाकर,
बीबी , बच्चे बस यही हैं
उसके "अपने" उसका "अपना"
संसार!
अब माँ बस इतना ही पूछती है
की बेटा तू ठीक तो है न,
बहु और बच्चे सब ठीक है न,
मैं धीरे से हाँ कहता हूँ,
और फिर और भी धीरे
पूछता हूँ "माँ" तुम ठीक हो,
माँ कहती है बेटा मेरी क्या
आज हूँ कल नही,
तुम सब खुश रहो अपनी
दुनिया में!
समय मिले तो कन्धा देने
आ जाना!
मेरे हाथ से मोबाइल छुट ही
गया! गिर गया जमीन पर,
उसका कवर और बेट्री निकल
कर इधर उधर बिखर गए,
जैसे की वो कह रहे हो
क्या सोच रहे हो
ये रिश्ते भी धीरे धीरे ऐसे
ही बिखरते जा रहे हैं!

("आलोक"...... )

7 comments:

रंजू भाटिया said...

रिश्तों की अहमियत अब गुजरे हव वक़्त सी लगती है ..भावुक रचना गहरी अभिव्यक्ति

Khare A said...

shukriya RAnju ji!

प्रवीण पाण्डेय said...

दमदार झटका दिया है, अपने अन्दाज में।

दिगम्बर नासवा said...

रिश्तों की सच्चाई खोल के लिख दिया है ... आज का कडुआ सच है ये ...

Khare A said...

thank you very much'

Anonymous said...

प्रभावशाली प्रस्तुति

Khare A said...

shurkiay kaushik ji , sabhi mitron ka abhaar