ओ सागर की लहरों
खुद पर न इठ्लाओ,
जिसे तुम प्यार समझती हो
वो तो समर्पण है तुम्हारा
अपने प्यार के आगे
खुद के अस्तित्व को ही
भुला बैठी हो तुम,
प्यार तो मैंने भी किया है
पर नहीं खोया अस्तित्व
लेकिन मेरे समर्पण
में कोई कमी नही
में भी अपने प्यार में
विलीन होना चाहती हूँ
लेकिन बचाते हुए खुद को
बरक़रार रखते हुए
खुद की पहचान को
क्या मेरा प्यार,
प्यार नही ?
खुद को मिटा देना ही
प्यार होता है क्या,
अगर ऐसा ही है तो
ये अस्तित्व बिहीन प्यार
मुबारक हो तुम्ही को
और मुझे ये किनारे
जो मेरे अकेलेपन के
संगी हैं, साक्षी हैं
Wednesday, March 17, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 comments:
लेकिन बचाते हुए खुद को
बरक़रार रखते हुए
खुद की पहचान को
बहुत खूब...ये नया रंग भी अच्छा है...
प्यार तो मैंने भी किया है
पर नहीं खोया अस्तित्व
pyaar astitv ko khatm nahin karta
ये अस्तित्व बिहीन प्यार
मुबारक हो तुम्ही को
और मुझे ये किनारे
जो मेरे अकेलेपन के
संगी हैं, साक्षी हैं
बहुत खूब.....!!
SHUKRIYA DOSTN AAP SABHI KE PYAR KA
Post a Comment