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Monday, February 7, 2011

कहाँ जाते हो रुक........




कहाँ जाते हो रुक जाओ

तुम्हे कम्युनिटी कि कसम देखो

बिना पोलिटिक्स न रह पाओगे

जाकर इक कदम देखो,



बनाये रिश्ते लाखों तो क्या

निभा इक भी न पाए तुम

दिखावा इतना किया जालिम

कि अब पछताते क्यूँ हो तुम,



मुंह में रखते हो तुम "रामा"

बगल मैं छुरी देखो पैनी

बहाया खून रिश्तों का

कि आत्मा भी हुई छलनी,



क्यूँकर ऐसा किया तुमने

ये तुमको भी शायद पता न हो

वक़्त रहते जो समझ जाते

फिर क्यूँ किस से खता ये हो,



अब जो हुआ सो हो चूका

सुधरकर तुम संभल जाओ

इल्तजा इतनी सी हे जानम

तुम बापिस लौटकर आओ!

10 comments:

रश्मि प्रभा... said...

मुंह में रखते हो तुम "रामा"

बगल मैं छुरी देखो पैनी

बहाया खून रिश्तों का

कि आत्मा भी हुई छलनी,
katu satya

shikha varshney said...

ओह हो हो क्या हो गया कलम की धर तेज हुई जा रही है....

प्रवीण पाण्डेय said...

कृपया, अब लौट भी आओ।

kshama said...

Aisa wyakti kabhi sudhar sakta hai?

संजय भास्‍कर said...

कहाँ जाते हो रुक जाओ

तुम्हे कम्युनिटी कि कसम देखो

बिना पोलिटिक्स न रह पाओगे

जाकर इक कदम देखो,

बेहतरीन पंक्तियाँ ! बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

Meenu Khare said...

आज पहली बार आपका ब्लॉग देखा.अच्छा लगा यहाँ आना.वसन्तोत्सव की बधाईयाँ.

केवल राम said...

वर्तमान सन्दर्भों को उद्घाटित करती सुंदर प्रस्तुति ..शुक्रिया आपका

उपेन्द्र नाथ said...

मुंह में रखते हो तुम "रामा"
बगल मैं छुरी देखो पैनी
alok ji , bilkul sahchai kahi hai aap ne. sunder prastuti.

Anonymous said...

Achi iltija hai dua hai kubul ho jaye jald hi

Khare A said...

aap sabhika dils e abhaar