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Saturday, February 26, 2011

हर किसी को मयस्सर नही..........



वो रहे हैं जो लोग कांटे , तुम्हारे रास्तों पर
उनको भी इक दिन, इस राह से गुजरना होगा,

वक़्त थम सा गया हे कुछ पल के लिए ही सही
यूँ हर अन्धकार के बाद तो उजाला ही होगा,

ये दस्तूरे दुनिया है, जिसे तुम बदल नही सकते
हर शख्श को इन हालातों से लड़ना ही होगा,

कौन कहता हे कि मंजिले आसानी से मिलती हैं
मिलने वालों से पूछो,फासला तो मुश्किल होगा,

हर किसी को मयस्सर नही ये आसान जिदंगी
हसीन बनाने के लिए कुछ तो कर गुजरना होगा,

फकत अपनी ख़ुशी के लिए, बुझाते हैं चिराग औरों का
क्या उनके अँधेरे से इनके घर में उजाला होगा,

जिदगी खुद भी तो एक इम्तिहान है ए मेरे दोस्त
पास हो जाये तो समझो, कितना खुशकिस्मत होगा,

क्यूँ नही समझती ये जालिम दुनिया
कि आज वक़्त तेरा, तो कल उसकी नज़र होगा,

जो वक़्त रहते संभल जाये तो क्या कहना
हर कोई हर किसी का हम निवाला होगा,

ये तो मन का बहम है जो ये सोचते हैं "गौरव"
उजाड़कर आशियाना किसी का, कोई चैन से सोया होगा

Wednesday, February 16, 2011

मेरा बेटा हे जापानी.....


..

जब माँ कहती हे कि अपनी पुत्र-बधू के लिए, कि इसने आते ही मेरे बेटे को मुझसे दूर कर दिया
तो उसी सन्दर्भ में कुछ कहने कि कोशिश......

मेरा बेटा हे जापानी,
ये बहु इंगलिश्तानी
सर पे लाल चोटी रुसी
हरकत इसकी पाकिस्तानी..
मेरा बेटा हे जापानी...

बेटा हुआ दीवाना बीवी का
माँ बैठी आंसू बहाए,
बैठी आंसू बहाए....
कोसती रहती दिन भर बहु को
दिल को चैन न आये
दिल को चैन न आये!

छीन लिया मेरा बेटा
कैसी है ये बहु कुलटा
शर्म नही जरा सी भी
आँख ये है मुझे दिखाए!

कितना अंध विश्वाश बेटे पर
दोष सारा बहू के माथे पर
भूल के रिश्ते सारे ये बेटा
हे ये दूध माँ का लजाये
दूध माँ का लजाये!

क्यूँ नही समझती माँ ये भोली
अकेली बहू नही हे दोषी
तेरा बेटा भी उतना ही दोषी
फिर क्यूँ बहू को तू है सुनाये

Monday, February 7, 2011

कहाँ जाते हो रुक........




कहाँ जाते हो रुक जाओ

तुम्हे कम्युनिटी कि कसम देखो

बिना पोलिटिक्स न रह पाओगे

जाकर इक कदम देखो,



बनाये रिश्ते लाखों तो क्या

निभा इक भी न पाए तुम

दिखावा इतना किया जालिम

कि अब पछताते क्यूँ हो तुम,



मुंह में रखते हो तुम "रामा"

बगल मैं छुरी देखो पैनी

बहाया खून रिश्तों का

कि आत्मा भी हुई छलनी,



क्यूँकर ऐसा किया तुमने

ये तुमको भी शायद पता न हो

वक़्त रहते जो समझ जाते

फिर क्यूँ किस से खता ये हो,



अब जो हुआ सो हो चूका

सुधरकर तुम संभल जाओ

इल्तजा इतनी सी हे जानम

तुम बापिस लौटकर आओ!

Friday, February 4, 2011

कुछ कुंडलिया -एक कोशिश






चेहरा रोज बदल कर, मचा रहे हैं शोर

दुनिया थू-थू कर रही, मन में इनके चोर,



मन में इनके चोर, खींचे किसकी ये टंगिया

ऐसा जोता हल , कि उजड़ गयी सारी बगिया,



उजड़ गयी सारी बगिया, बने फिर अनजान

अच्छे खासे चमन को, बना दिया शमशान.



बना दिया शमशान ,बहाए घडियाली आंसू

घर में पिटते रोज, इनको याद आये सासू,



कह बाबा "गौरव" ,न दूजा कोई उपाए

जूते मारो १०० इनको, दो उल्टा लटकाए,



दो उल्टा लटकाए, कि तबियत हरी हो जाये

जिदंगी में फिर न, कभी ये ऐसा कदम उठाएं !!

Wednesday, February 2, 2011

"बस ये मत पूछना कि क्यूँ लिखा"



जाने वाला तो चला गया

वो किसी ने नही पूछा

क्यूँ चला गया, क्या हुआ ऐसा!

हाँ कई कविताएँ जरूर लिख दी

अपनी अपनी समझ के साथ

कोई कहता कि गाँधी जी के

बाद भी देश चल रहा हे

कोई न जाने कहा से किसी कि

लिखी हुई कविता पोस्ट कर

'अपनी भड़ास निकल रहा हे

अरे इतनी ऊर्जा ये जानने में

लगायी होती कि वो क्यूँ गया

तो न बात बनती!

जाने वाले को भी लगता कि

उसके चाहने वाले भी हैं यहाँ

लेकिन नही,

अपनी ढपली अपना राग,

अलापते रहो, भाई लोगो

अरे घरों में मौत भी होती हे

लोग रोते-बिलखते हैं

कुछ दिन ऐसा ही रहता हे

फिर जिन्दगी बापिस पटरी पर

लौटने लगती हे!

धीरे धीरे सब सामान्य हो जाता हे!

फिर क्यूँ ये कविताएँ लिखी जा रही हे

उसी बात को लेकर, जाने वाला ये

सोच कर नही गया, कि

उसकें जाने के बाद

ये होगा या वो होगा,

ऐसा कोई भी नही सोचता

उसकी ख़ामोशी को ,

उसकी कमजोरी न समझो,

वो चला गया , उसको जाने दो

क्यूँ इतना चर्चा, इस जाने जहाँ मैं

किसलिए, किसके लिए!

अब बस भी करो, बहुत हो चूका!