http://www.clocklink.com/world_clock.php

Saturday, November 24, 2012

ों से वो भी यही प्रकिर्या अपना रहे थे, की शायद बाहर से ही बात बन जाये! लेकिन अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने एक सही निर्णय लिया की राजीनीति को समझने जानने की लिए राजनीती करना जरुरी है और राजनीति करने के लिए उस दलदल में उतरना जरुरी है! कई लोगो को लगा की केजरीवाल जी का असली मकसद यही था!

एक क्लास वन रैंक का अफसर लाखों रूपये तनखा, वाइफ भी शायद उसी रैंक की अफसर अच्छी तनखा, किस चीज की कमी इन लोगो को! फिर भी लगे हुए हैं गरीबों के लिए आम आदमी के लिए! इस तरह के आदमी का क्या स्वार्थ हो सकता है, जो अपनी भरी पूरी जिन्दगी को दाव पर लगा कर आम लोगो की समस्या को ढूंढने और हल करने निकल पड़ा! लेकिन इस इंसान ने जब जिद्द ठान ही ली की ऐसा ही करना है! तो लोगो को पता नही इसमें क्या स्वार्थ नजर आ रहा है! अगला भला मानस एक कोशिश तो कर ही रहा है की कीचड़ में सुगन्धित कमल खिल जाये! बुराई क्या है इसमें! बजाये इसके की हम उस शख्श की तारीफ करे, साथ दे और उसके आम आदमी के हित के लिए किये जा रहे इस अश्वंमेघ यज्ञ में अपनी भी एक आहुति दे, हम उल्टा उसको ही शक की नजरों से देख रहे हैं! अगर आप इतना भी नही कर सकते तो कम से कम उसके द्वारा किये जा रहे प्रयासों का मखौल तो न बनाये! अगला इंसान एक कोशिश कर रहा है, कितना कामयाब होता हे ये वक़्त की बात है! लेकिन एक सार्थक कोशिश तो जारी है न! वो भी हम सब के लिए!

केजरीवाल और उनकी टीम ने कई खुलासे किये! लोगो को सच्चाई पता लगी! की किस तरह ये व्यवस्था नेता और नौकरशाही इस देश को लूट रहे हैं! वो भी मय सबूत के! बरना हम सब कयास ही लगाते रहते थे की भ्रष्टाचार हो रहा हे ये है वो है! लोगबाग कहते हैं की इनके द्वारा किये गए खुलासों पर आज तक कुछ नही हुआ! सब ज्यूँ का त्यूं ही है! मैं ये कहना चाहता हूँ की जिस हवेली के दरवाजे सदिओं से खुले ही न हो उसकी सफाई-गंदगी मिटने के लिए बहुत वक़्त लगता है और गंदगी साफ़ करने के लिए गंदगी में उतरना पड़ता है! ये बात तो टीम केजरीवाल भी कह रही है! की सारा सिस्टम और ताकत सरकार के कब्जे में है! कोई कुछ कैसे कर सकता है! उसी के लिए इस राजनीति में उतरना एक मात्र उपाए है!

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Saturday, September 15, 2012

जब सभी लोग राजी तो क्या करेगा काजी!


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मैंने पहले भी कहा था जब अन्ना हजारे और बाबा रामदेव अनशन कर रहे थे भिराश्ताचार के खिलाफ, जैसा कि एक्सपर्ट लोग कहते हैं कि भिराश्ताचार मिटना या मिटाना नेक्स्ट तो इम्पोसिबिल टास्क है!  शरद यादव जैसे नेता भी पार्लियामेंट में चिल्ला-चिल्ला कर यही बोलते रहे कि अगर जनलोक पल बिल पास हुआ तो फिर सिस्टम काम कैसे करेगा, फिर सिर्फ शिकायत ही शिकायत और मुक़दमे दर्ज होंगे! और भी कई लोग इस बीमारी को एक्सेप्ट करते रहे हैं,करते हैं! कि इसका मिटना मुश्किल है! 

तब मैंने  अपनी मंद बुध्ही से यही कहा कि भिराश्ताचार को कानूनी दर्ज़ा दे दिया जाना चाहिए!  हर काम के ओफ्फिसिअल रेट फिक्स्ड  किये जाने चाहिए!  बैसे तो रेट अभी भी फिक्स्ड हैं! लेकिन अनोफिसिअल हैं! तभी लोग शोर मचाते हैं कि भिराश्ताचार हो रहा है!  अगर हम ये कानून पारित कर दे तो काफी हद्द तक या काहे कि पूरी तरह इस समस्या से निजात मिल जाएगी!  और इस तरीके से इकठ्ठा किया गया पैसा कुछ सरकारी खजाने में और बाकि सम्बंधित विभाग के अधिकारिओं और करमचरिओं में उनकी पोसिशन कि हिसाब से बाँट दिया जाना चाहिए!
इसी प्रकार जो आये दिन घोटाले होते रहते हैं, उनको भी इसी फार्मूले से क्रियांबित किया जा सकता है!  को घोटाले का एक हिस्सा सरकारी खजाने में! बाकि सम्बंधित मंत्रालय के मंत्री से लेकर संत्री के पास! 

अब इसका फ़ायदा, सारे काम धड़ल्ले से होंगे, फटाफट होंगे!  कोई काम में  देरी नही होगी!  जनता खुश, अधिकारी खुश, मंत्री खुश और संत्री भी खुश!  और जो सबसे बड़ा फ़ायदा होगा कि सरकारी खज़ाना जो आये दिन ख़ाली होता रहता है, कभी नही होगा! क्यूंकि इन सब मामलों से जो रकम जुटेगी उसका अफिसिअल रिकॉर्ड होगा!  फिर सरकार को न तो कोई टैक्स लगाने या बढ़ाने कि जरुरत होगी, पेट्रोल/एलपीजी /डीजल आदि के रेट बढ़ाने कि भी अब्श्यकता नही होगी!  इन केस कभी जरुरत पड़ भी गयी तो, मिचुअल अंडरस्टेंडिंग  से एक बड़ा घोटाले को अंजाम दो और खजाने कि भरपाई करो!  जब सब कुछ ट्रांसपेरेंट हो जायेगा तो किसी को भी कोई प्रोब्लम नही होगी!  न आन्दोलन/ न कोई पक्ष/बिपक्ष सब राजी तो  क्या करेगा काजी!  तंग आ चूका हूँ मैं और ये देश! सालों से सोच रहे हैं कि कैसे निपटेंगे!  देखा जहाँ चाह बहां राह!

                                                    (...इक ख्याल अपना सा ... "आलोक" )

Saturday, September 8, 2012

सहमा हुआ इंसान और मजाक उड़ाती हुयी सब्जियां!

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कल पत्नी जी लगभग चिल्लाते हुए, ए जी सुनो आज तो कम से कम मंडी जाकर
सब्जी ले आओ! पिछले एक हफ्ते से पानी में दाल खा खा कर बोर हो गए हैं! हमने
श! श! श! करते हुए पत्नी से कहा चुप करो भाग्यवान, पडोसी

सुनेंगे तो कहेंगे कि
इनके यहाँ आजकल दाल बहुत बन रही है! बहतु पैसा हे इनके पास, पत्नी जी तुनक कर
बोली बड़े आये अपनी इज्जत बनाने वाले, पिछले एक हफ़त से तो सब्जी मंडी गए नही,
पडोसिओं को सब पता है! आजकल अच्छों अच्छो कि औकात सब्जी मंडी में दिखाई पड़
रही है! हमने कहा ठीक है भाग्यवान ऐसा करते हैं कि आज गुरुवार है पहले साईं मंदिर
जाकर बाबा का आशीर्वाद ले लेते हैं, उसके बाद मंडी में घुसने कि हिम्मत करेंगे! तब तक
रात भी हो जाएगी और तुमको पता ही हे कि देर रात में सब्जी भी सस्ती मिल जाती है!
अपने प्लान के मुताबिक हम सब्जी मंडी पहुंचे!
जैसे ही हमारी नज़र लौकी(घिया) पर पड़ी, वो चिल्लाई; बेशर्म जब भी आता है मुझे ही घूर
घूर कर देखता रहता है, पहले तो लाखाता भी नही था, आजकल हद्द से ज्यादा नजदीकियां
बढ़ाने में लगा हुआ है! रोज मेरे चिकने बदन पर तेरी भेड़िये जैसी निगाहे गडी रहती हैं
हमने एक शरीफ इंसान कि तरह उसके  ताने सुने और आगे बढ़ लिए!
जैसे ही हमारी नजर आलू पर पड़ी, वो बड़ी ही धूर्तता से मुस्कराया,
मंडी में जगह जगह ऐसे पड़ा था जैसे कोई मोहल्ले का टटपूंजिया गुंडा
बीच सड़क पर अपनी बाइक लेकर खड़ा हो, और आने जाने वाले उसको
सलाम ठोंकते हुए आगे बढ़ते हैं! आलू के बगल में प्याज छिनाल मन ही मन
मुस्करा रही थी, जैसे कि उसको सारी सच्चाई मालूम हो! अगली दूकान पर
टिंडे बादशाह बड़ी शान से हुक्का गुड़ गुडा रहे थे, और हमें ऐसे नजरअंदाज कर रहे थे
कि जैसे पहचानते ही नही, हमने फिर भी हिम्मत करके उनके हालचाल लेने कि कोशिश
कि! पहले तो उन्होंने हमें इग्नोर किया, फिर धीरे से बोला बाबू जी अगर मेरे हाल-चाल
लेने कि कोशिश करोगे तो आपकी हाल और चाल दोनों बिगड़ जायेंगे, इसलिए अच्छा
हे कि चुपचाप आगे बढ़ लो!
अगली दूकान पर बैगन अपने शरीर पर तेल मालिश कर चिकना और ताज़ा दिखने कि
कोशिश कर रहा था! जैसे ही उसकी नजर हम पर पढ़ी बोला बाबू जी आज तो कई दिन बाद मंडी
में नज़र आये हो! क्या बात है आजकल आपके दर्शन भी दुर्लभ हो गए हैं! हमने उसको चुप रहने का
इशारा किया और हालचाल लिए, कहने लगा कि पहले तो लोगबाग मुझे मज़बूरी में ले लेते थे,
लेकिन आजकल मेने उनको मजबूर कर दिया है!
कुल मिलाकर हर सब्जी हमें चिढ़ा रही थी, या कहे कि हमें हमारी औकात दिखा रही थी!
एक चक्कर मारकर हम फिर से लौकी के पास आकर खड़े हो गए, और इसके पहले कि
वो हमें फिर से ताने मारने शुरू करती, हमने झट से उसे उठाकर अपने थैले में बंद कर लिया!

(..... इक ख़याल अपना सा... आलोक)

Tuesday, August 28, 2012

देश का भविष्य!







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चूहला, कुछ गीली लकड़ियाँ , भीगे हुए उपले,
माँ हाथ में फूंकनी लिए जोरो से खांसते हुए
बेदम होती हुई सी, एक नाकाम कोशिश को
कामयाबी कि और मोड़ती हुई, आग जल उठती है!

ये आग तो जल ...उठी, इसके जलने से पेट कि आग
और जोरो से ...भड़क उठती है एक उम्मीद के साथ,
सवाल मुहं बाये खड़ा है ख़ाली बर्तन चूहले पर चढ़ा है
उधर.. ख़ाली ...पड़े डब्बों में यूँ ही कुछ टटोलती माँ!

इसी निरर्थक प्रयास में, चूहला ..अथक ...कोशिशों के बाद
फिर से बुझ जाता है, ख़ाली बर्तन धीरे से मुस्करा उठता है
देश का ..भविष्य थाली और कटोरी लिए बैठा है इंतजार में
माँ को भविष्य कि चिंता सता रही है, ये उसकी जिम्मेदारी है!

उधर संसद में बहुत ही जिम्मेदार लोग,इस पर बहस कर रहे हैं
गरीबों के लिए बजट में संशोधन कर रहे हैं दो वक़्त का खाना
जरुरी है सभी के लिए, सरकार इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है
बजट राशी पिछले साल से दोगुनी कर दी जाती है, उनका काम पूरा!

क्यूंकि भविष्य कि चिंता तो उस माँ कि जिम्मेदरी है!
(इक ख्याल अपना सा... "आलोक")

Monday, August 13, 2012

हाई ये महगाई



जब छोटा था, छोटा मतलब छोटा, यानि के ५वि ६वि कक्षा में पढता था , तब हमारे यहाँ कोयले कि
प्रेस होती थी!  प्रेस में अंगारे जलाने का काम मेरा ही होता था! बाबू जी ये काम मुझको ही सौंपते थे,
ऐसा इसलिए नही कि मैं इस काम में निपुड था, बल्कि इसमें मेरा व्यक्तिगत  फ़ायदा था, अब आप लोग सोच रहे होंगे कि इत्ती छोटी उम्र  में  कोई फ़ायदा कैसे सोच सकता है, वो भी उस ज़माने में, लेकिन भैये फ़ायदा था तभी हम सबसे आगे रहते थे कि प्रेस हम गरम करेंगे! मुझको इत्ती छोटी उम्र से ही चाय कि लत कुछ हद्द से जायदा हि लग गयी थी! जब देखो  कैसे चाय बना कि पी जाये ! इसी जुगाड़ में रहता था!  लेकिन प्रेस जलाने का काम तो सिर्फ  इतवार को ही होता था!  बस घर  के एक कौने में हम प्रेस गरम करते थे,  और चुपके से एक बड़ी सी कटोरी में , पानी, चाय कि पत्ती/ चीनी और ढूध डालकर प्रेस के कोयले पर चढ़ा दिया करते थे,
और हाथ में पंखा या गत्ता लेकर प्रेस गरम करने के साथ साथ अपनी चाय भी बना लिया  करते थे! हालाँकि चाय धुआंयी हुई बनती थी, लेकिन जिस स्मार्टनेस हम चाय बनाते थे तो उसका वो स्वाद भी गज़ब का होता था!  कई बार चाय बन्ने में देरी हो जाती थी, बाबू आवाज लगाते  प्रेस अभी तक गरम नही हुई, हम धीरे से कहते कि बस होने वाली है कोयले जरा गीले हैं बाबू जी!  अब बाबू जी को क्या पता  कि हम चाय पका रहे हैं!
कहते जल्दी से लेकर आ! 
लेकिन अब हमने  चाय पीनी काफी काम कर दी है!  इतनी महगाई में चाय, चीनी इतनी कडवी होती जा रही है कि पूछो मत!  जब भी कोई आता है दोस्त बैगेरा हम महगाई का रोना शुरू कर देते हैं! लेकिन पत्नी जी अपनी फोरमेलिटी निभाने से बाज नही आती!  तब हम कहते भाई देख ले  मैंने तो अब चाय पीनी छोड़ दी है!  दोस्त कि और इशारा कस्र्के पूछते कि तेरे को पीनी हो तो बनाबा दूँ! अब बेचारा वो शर्म के मरे मना कर देता!  हाँ ये बात और है कि ऑफिस में  हम २ चाय एक्स्ट्रा ही पीकर घर  को जाते हैं!  क्या करे इस मुई नेह्गायी से कैसे तो पार पाना पड़ेगा! पता नही ये महगाई और कौन कौन से हमारे शौक छुडवाएगी ! Blog parivaar

Monday, August 6, 2012

<----भाव खाना (नखरे मारना) -->

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अरे ओ कलुआ, हाँ माँ मुझे इसी नाम से बुलाती थी! शायद घर में सबसे ज्यादा सम्बला रंग
मेरा ही था! मैं थोडा अनमना सा माँ के पास जाता हाँ माँ बोलो, माँ बुरादे कि अंगीठी के पास
बैठी शाम कि चाय बना रही होती है! कहती जा जाकर अपने बाबूजी को चाय दे आ! स्कूल से
आने के बाद टूशन पढ़ा रहे हैं, थकान हो रही होगी! मैं चाय का कप लेकर बाबू जी के कमरे में
जाता, और कहता बाबू जी चाय..

बाबू जी शायद थकान के मारे या अत्येधिक परिश्रम के कारन
गुस्से में चिल्लाते ले जाओ चाय मुझे नही पीनी! मैं एक बार अनमने मन से कोशिश करता कि पी
लो, बाबू जी पहले से भी जोरो से चिल्लाते कहा न बापिस ले जा! मैं डर के मरे चाय का कप बापिस ले
जाकर माँ के पास आ जाता! माँ कहती क्या हुआ, मैं कहता नही पी रहे , चिल्ला रहे हैं, माँ के
चेहरे पर तनाव साफ़ झलकता था! लेकिन कोई उपाए नही! फिर कहती ठीक है रख दे, छोटे को भेज
उसी के हाथ भेजती हूँ! बाबू जी और छोटे भाई का तालमेल अनूठा था, दोनों एक दूसरे को अच्छे से
समझते थे, लेकिन उस वक़्त मेरा बाल मन इसको कुछ और ही समझता था, कि बाबू जी मेरे हाथ
से चाय नही लेते, जबकि छोटे के हाथ से ले लेते थे! या हो सकता हे कि वो जाकर बाबू जी कि मनुहार
करता हो कि पी लीजिये! और मेरे से ये सब होता नही था! मैं उस वक़्त 8th क्लास में था! तब मैं सोचता था कि बाबू जी के पैसे कि चाय बाबू जी फिर भी नखरे क्यूँ मारते हैं! पीनी हे तो पियो नहीं पीनी तो
मत पीओ! खैर जो भी हो, कई बार ऐसा होता था कि घर में सिर्फ मैं ही होता था, तब माँ के पास
कोई चारा नही होता था मुझको ही चाय लेकर भेजती थी, और कहती थी कि बेटा जबरदस्ती रख
के आ जाना! मैं कुछ नही कहता और चाय लेकर चला जाता, बाबू जी उसी तरह का बर्ताव नही पीनी
ले जाओ बापिस, मैं रखने कि कोशिश करता बाबू जी जोरो से चिल्लाते बहरा हे क्या सुना नही! मैं डर के
मरे बापिस ले आता! माँ के चेहरे पर फिर तनाव, और वो जानती थी कि आज तो कोई और हे भी नही,
चाय कैसे पियेंगे तेरे बाबू जी, मैं कहता माँ छोटा टूशन से आ जायेगा तो उसके हाथ भेज देना! ये सिलसिला
चलता ही रहता था! और बाबू जी अपने इस बर्ताव के करना कई बार बिना चाय कि ही रह जाते थे!
माँ अपनी ड्यूटी पूरी शिद्दत से करती थी, रोजमर्रा का यही काम था, ऐसा अक्सर ही होता था कि मैं ही
घर पर होता था, मैं माँ कि मज़बूरी समझता था, साथ ही बाबू जी के वर्ताब से भी आहत था, लेकिन
जब माँ चाय बनाती तो मुझे आवाज नही देती, लेकिन मैं जाकर माँ से कहता कि ला माँ मैं बाबू जी
को चाय दे आऊ, माँ मना कर देती थी, रहने दे तेरे हाथ से नही लेंगे, लेकिन मैं जिद्द करता के दे तो
सही, देखता हूँ कब तक नही लेंगे मेरे हाथ से, अब मैं चाय लेकर बाबू जी के कमरे में जाता, बाबू जी तिरछी
नजरों से मुझे देखते और पढ़ाने में मशगूल हो जाते, मैं धीरे चाय टेबल पर रख कर कमरे के बाहर आ जाता
और कन्खिओं से देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं या नही, उधर माँ का तनाव अपनी जगह, फिर मैं देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं, मैं आकर माँ को खुशखबरी देता कि आज तो बाबू जी न चाय पी ली! माँ के
चेहरे पर आये संतुष्टि के भाव से मैं आत्मविभोर हो जाता! फिर मैं सोचता कि अब बाबू जी क्यूँ नही चिल्लाते
मैं जब भी चाय लेकर जाता! शायद इसलिए कि उनको पता हे कि ये मन-मनुहार नही करने वाला, इसलिए खामखा नखरे दिखाने में अपना ही नुक्सान है! मेरा बाल मन उस वक़्त इतना ही सोच पाता था! इसको
मैं अपनी जीत भी मानने लगा था, कि कोई भी इंसान भाव(नखरे) क्यूँ खाता है! और ये मेरी तभी से आदत
भी पड़ गयी कि खामखा के नखरे किसी के भी नही सहने.. जब मैंने अपने ही बाबू जी के नखरे नही सहे,
तो किसी और कि तो बात ही क्या है! .....

(इक ख़याल अपना सा! .......... कथानक सच्ची घटना पर आधारित है! आप सभी के कमेंट्स का आपकी
बहुमूल्य राय के साथ स्वागत है!

Wednesday, June 13, 2012

कुछ छानिकाएं....................

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कुछ छानिकाएं

१-
तस्वीर उनकी
बैचेनी इनकी
कयामत का ये मंजर
दिल में उतरता हुआ खंजर
इश्क में लहुलुहान होता हुआ
अंजानी राहों में भटकता हुआ
बढ़ता चला जा रहा हे दीवाना
मंजिल का कोई पता नही
दीवनगी देखते ही बनती है!

२-
कभी दिल उनका
कभी इनका भटकता है
हर कोई कही ना कही अटकता है
सिलसिला अनवरत जरी है
खुदा जाने किसकी लाचारी है
यही फेस-बुक , ट्विट्टर और
ना जान कितनी सोसिअल साइट्स
कि ये अत्याधुनिक लाइलाज बीमारी है!

पांचवा खम्बा......................

Blog parivaarलोकतंत्र का स्वेनिर्मित पांचवा खम्बा
दंभ भरता हुआ, लडखडाता हुआ
खड़ा हो रहा है,
हाल इसका भी बाकि के खम्बो
कि तरह हो रहा है,
क्यूंकि लाठी और भैंस का
खेल यहाँ भी जारी है,
गुटबाजी और बाजाने का
प्रचालन यहाँ जोरो पर है,
पीट रहे हैं या पिट रहे हैं
मगर नाम तो हो रहा है
देश के हालातों को
सुधारने का दंभ भरने वालों
पहले खुद तो सुधर जाओ
अभी तो घुटने के बल हो
खड़ा होना तो सीख जाओ
फिर चाहे जितनी मर्जी
दौड़ लगाओ....

झांकी हिन्दुस्तान कि...................

Blog parivaarआओ बच्चों तुम्हे दिखाए झांकी हिन्दुस्तान कि
सारे चोर संसद में बैठे मर्जी है भगवान कि... ...
खुदा खैर करे.. खुदा खैर करे.......

इन चोरो ने लूटा है मेरे देश का कोना कोना है
गरीब/बेचारी जनता इनके हाथ का खिलौना है
खुदा रहम करो ...... खुदा रहम करो...

पीएम् ने भी लुटवा दी है इज्जत इसकी शान कि
भगवान भरोसे तुम न बैठो ये वक़्त है बलिदान कि
खुदा रहम करो ... खुदा रहम करो....

आओ मिलकर लड़ाई करे हम इस तिरंगे कि आन कि
इस धरती से तिलक करो ये धरती है बलिदान कि
वन्दे मातरम...... वन्दे मातरम........

Saturday, May 19, 2012

सिम्पली रिलेशन

Blog parivaarजैसे ही हमने पहली मुलाकात में
उनको संबोधित किया  दीदी->
वो झट से बोली मैं ममता बनर्जी नही हूँ
मुझे दीदी मत बोलो प्लीज!
मेरा कार्टून चाहे जितना बना लो!

हमने थोड़ी देर सोचा फिर बोले
बहिन जी कहू तो चलेगा...
वो बहुत जोरो का चिल्लाई
खबरदार जो मेरी तुलना मायावती
से कि ..गाली देनी हे तो ऐसे ही दे लो,
लेकिन बहिन जी कभी न बोलियो!

हम असमंजस  में पड़ गए
अब क्या बोले फिर दिमाग
में कुछ आया, हमने डरते हुए
झट से तुक्का  बिठाया
अम्मा कहू तो कैसा रहेगा..
वो झट से बोली
में जयललिता जितनी भी
बुड्ढी नही हूँ! 
फिर वो गुस्से में बोली..
क्या आपको इन राजनितिक
नामों के अलावा कोई और नाम नही आता
अब हमारे चौंकने  कि थी बारी
कि हम तो सिम्पली रिलेशन
बैठा रहे थे! 
ये  राजनितिक नाम तो अपने आप
जुड़ते जा रहे थे!

Tuesday, May 15, 2012

तेरा क्या होगा रे राजा........................

Blog parivaar 
आरे ओ चिंपू, कित्ते घोटालेबाज़ अंदर किए थे अपुन
सरदार, 4 बड़े और अनगिनत छोटे
हूँ , कितने बाहर आए छूटकर अभि तक
सरदार, सारे छूट गए बस एक ही बाकी है
हूँ, कौन हे रे वो,
सरदार , राजा!
क्या कहा , राजा,. मजाक करते हो हम से
राजा तो हम हैं!
सरदार , उसका नाम राजा है!
हूँ , तो ऐसा बोलो ना
... तेरा क्या होगा रे राजा
सरकार, मेने ये घोटाला अकेले नही किया
हम सबने मिलकर किया !
हूँ,. वो हमे मालूम हैं राजा
लेकिन हमे सिर्फ़ चबन्नि में निपटा रहे थे
और बरन्नि अकेले अकेले खा रहा थे
अभी क्या पोजिसन है... सब माल बारोबरा बाँट गया नि!
जी सरकार!
ठीक है कल तू भि बाहर आ जायेगा!
लेकिन ध्यान रहे, मुँह नि खोलना
वरना फिर से अन्दर कर दूँगा!
और आगे से ध्यान रहे, हिसाब
बरोबर करने का !

Tuesday, May 1, 2012

रिश्ते

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रिश्ते कितनी जल्दी बन जाते हैं
क्य चाहिए आज इन रिश्तों को
सिर्फ़ एक अदना सा नाम!
तभी ये रिश्ते वक्त से पहले ही
रिसने से लगते हैं
क्योंकि ये वक्त कि कसौटी पर
कसे नहीं होते!
आज कल रिश्ते रेडीमेड से
होने लगे हैं!
"Use & थ्रू" कि फिलोसिफि पर
आधारित ये रिश्ते!
जब तक पसंद आए, निभाये
नहीं तो आगे चल भाये!

Monday, April 23, 2012

वो मोहब्बत के मारे हुये हैं...........(ik khayaal apna sa)

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वो मोहब्बत के मारे हुये हैं
उनको चेहरा दिखा दीजिये |

मंजिले खो गई हैं मगर
उनको अपना पता दीजिये|

सांस अतकी हुई हे अभी तक
बस इक बार मुस्करा दीजिये |

इंतजार दिदार-ए-यार का
जरा पर्दा गिरा दीजिये|

आज मजनू ने आवाज दी है
मुझको लैला से मिला दीजिये|

वो मोहब्बत के मारे हुये हैं|
......................................

Friday, March 23, 2012

वक़्त ने इस कद्र बीजी कर दिया है आलोक

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पत्नी जी बोली ए जी आप तो
हमारी तरफ देखते ही नही
हमने कहा क्यूँ कोई खास बात
वो मुस्करायी अपना फेस
हमारे और  करीब  लायी,
बोली आप भी न
एक दम बुध्धू  हो,
हमने मन ही मन सोचा
ये बात तो एक दम सच बोली,
फिर वो बोली, जरा गौर फरमाए
और हमारा चेहरा देखकर
अंतर बतलाये,
हमने उचटती से नज़र
उनपर डाली, फिर कहा
क्या  यार क्यूँ टाइम
खोटा करती हो,
एक दम जैसे कल थी
बैसी ही लगती हो,
वो गुस्से से तमतमाई
और जाकर  ब्यूटी-पर्लोर
वाली से लड़ आई,
बोली मेरे पैसे बापिस कर
मेरे हबी को तो मैं
कल जैसे ही नज़र आई!
तब जाकर हमें
पूरी बात समझ आई,
फिर हम मन ही मन
अपनी बेवकूफी पे मुस्कराए,
और पत्नी कि और
इशारा किया और कहा
यार लूकिंग ग्रेट,
डू नोट लूस फेथ!
तुम बिना मकेउप के
हसीं लगती हो,
क्यूँ ब्यूटी-पर्लोर पर
इतना पैसा खर्च करती हो!







वक़्त ने इस कद्र बीजी कर दिया है आलोक
कि खुद से मिले हुए इक जमाना बीत गया!

Saturday, March 3, 2012

काश कि मैं, मैं होती!

Blog parivaarकाश कि मैं, मैं होती!

हे न अजीब सा ख़याल,
लेकिन करे क्या?
खैर...
अगर मैं , मैं होती
फिर मैं अपना STATUS UPDATE करती

"हा हा हा हा अह अह हा हा ...."

फिर ढेरों कमेंट्स ...

१. वाह मेडम आप क्या हंसती हैं "लिखावट में"
जब लिखावट में ये हाल हे तो
सामने कैसे हंसती होंगी..
बहुत खूब, मजा आ गया,यूँ ही हँसते रहिये..

२. कितनी हसीं "लिखवाती हंसी" है
मेडम आपका जवाब नही...

३. मेडम सब ठीक तो हे न,
यूँ इस प्रकार आपको हँसते देख
सोच में पड़ गया..
...
..
.
.
.
६८. मेडम पलीज एक बार और "लिखावट " में
हंसिये न .. कित्ता अच्छा लगता है..

and still going on...
..
और अभी मैं, मैं हूँ..

जैसे ही मेने status update किया

pls support to this..
by spreading this as much as you can..

इक भाई अपनी बहिन के लिए इन्साफ
मांग रहा है....
१,२,३, ४ दिन गुजर गए
घोर सन्नाटा.....
फिर अचानक ५ वे दिन ..
२ like..without comments..
मैंने सोचा ये तो मैंने किसी
दूसरे कि लिए social support
माँगा था , तब ये हाल है.
आखिर क्यूँ होता है ऐसा.
क्या gender बाकी मायेने
रखता है..
मेरे ख़याल में हद्द से ज्यादा..
और अंत में इतना ही..

"आप हँसते हैं तो हलचल सी मच जाती है,
मैं आंसू भी बहाता हूँ तो कोई पूछता नही "

"इक ख़याल अपना सा......

"Bura na mano holi hai..........."

Saturday, February 25, 2012

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ

लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ,
बाकी के तीन स्तम्भ कौन
ये  जानने कि मैने कभी भी
नही कि झूठी  कोशिश भी
पता है क्यूँ. क्यूंकि जब से
होश संभाला है, इस चौथे खम्बे
के माध्यम से बाकी के तीनो
खम्बो का हाल सच्चा-झूठा
जब जब बयां किया जाता
इस चौथे खम्बे कि लडखडाती
आवाज, मुझे स्तब्ध कर जाती,
और मैं सोचने लगता कि ये
खम्बा भी दीमक लगा हुआ है
बाकी के तीनो खम्बे के तरहा,
लेकिन गिरने का नाम ये नही लेता
जड़े जमाये हुए खड़ा है उस खोखले
दीमक लगे हुए पेड़ कि भांति
जिसका कि कोई  अस्तित्व
नही होता, सिवाए इसके कि
वो एक खोखला पेड़ है.
पता नही कव गिर जाये
या काट दिया  जाये
हमेशा कि तरहा,
फिर बही कहानी
जिसका कोई अंत नही !
लेकिन सुनाई बार बार
जाती है.. !
















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