Saturday, September 15, 2012
Tuesday, September 11, 2012
Saturday, September 8, 2012
Tuesday, August 28, 2012
देश का भविष्य!
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चूहला, कुछ गीली लकड़ियाँ , भीगे हुए उपले,
माँ हाथ में फूंकनी लिए जोरो से खांसते हुए
बेदम होती हुई सी, एक नाकाम कोशिश को
कामयाबी कि और मोड़ती हुई, आग जल उठती है!
ये आग तो जल ...उठी, इसके जलने से पेट कि आग
और जोरो से ...भड़क उठती है एक उम्मीद के साथ,
सवाल मुहं बाये खड़ा है ख़ाली बर्तन चूहले पर चढ़ा है
उधर.. ख़ाली ...पड़े डब्बों में यूँ ही कुछ टटोलती माँ!
इसी निरर्थक प्रयास में, चूहला ..अथक ...कोशिशों के बाद
फिर से बुझ जाता है, ख़ाली बर्तन धीरे से मुस्करा उठता है
देश का ..भविष्य थाली और कटोरी लिए बैठा है इंतजार में
माँ को भविष्य कि चिंता सता रही है, ये उसकी जिम्मेदारी है!
उधर संसद में बहुत ही जिम्मेदार लोग,इस पर बहस कर रहे हैं
गरीबों के लिए बजट में संशोधन कर रहे हैं दो वक़्त का खाना
जरुरी है सभी के लिए, सरकार इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है
बजट राशी पिछले साल से दोगुनी कर दी जाती है, उनका काम पूरा!
क्यूंकि भविष्य कि चिंता तो उस माँ कि जिम्मेदरी है!
(इक ख्याल अपना सा... "आलोक")
सवाल मुहं बाये खड़ा है ख़ाली बर्तन चूहले पर चढ़ा है
उधर.. ख़ाली ...पड़े डब्बों में यूँ ही कुछ टटोलती माँ!
इसी निरर्थक प्रयास में, चूहला ..अथक ...कोशिशों के बाद
फिर से बुझ जाता है, ख़ाली बर्तन धीरे से मुस्करा उठता है
देश का ..भविष्य थाली और कटोरी लिए बैठा है इंतजार में
माँ को भविष्य कि चिंता सता रही है, ये उसकी जिम्मेदारी है!
उधर संसद में बहुत ही जिम्मेदार लोग,इस पर बहस कर रहे हैं
गरीबों के लिए बजट में संशोधन कर रहे हैं दो वक़्त का खाना
जरुरी है सभी के लिए, सरकार इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है
बजट राशी पिछले साल से दोगुनी कर दी जाती है, उनका काम पूरा!
क्यूंकि भविष्य कि चिंता तो उस माँ कि जिम्मेदरी है!
(इक ख्याल अपना सा... "आलोक")
Monday, August 13, 2012
Monday, August 6, 2012
<----भाव खाना (नखरे मारना) -->
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अरे ओ कलुआ, हाँ माँ मुझे इसी नाम से बुलाती थी! शायद घर में सबसे ज्यादा सम्बला रंग
मेरा ही था! मैं थोडा अनमना सा माँ के पास जाता हाँ माँ बोलो, माँ बुरादे कि अंगीठी के पास
बैठी शाम कि चाय बना रही होती है! कहती जा जाकर अपने बाबूजी को चाय दे आ! स्कूल से
आने के बाद टूशन पढ़ा रहे हैं, थकान हो रही होगी! मैं चाय का कप लेकर बाबू जी के कमरे में
जाता, और कहता बाबू जी चाय..
बाबू जी शायद थकान के मारे या अत्येधिक परिश्रम के कारन
गुस्से में चिल्लाते ले जाओ चाय मुझे नही पीनी! मैं एक बार अनमने मन से कोशिश करता कि पी
लो, बाबू जी पहले से भी जोरो से चिल्लाते कहा न बापिस ले जा! मैं डर के मरे चाय का कप बापिस ले
जाकर माँ के पास आ जाता! माँ कहती क्या हुआ, मैं कहता नही पी रहे , चिल्ला रहे हैं, माँ के
चेहरे पर तनाव साफ़ झलकता था! लेकिन कोई उपाए नही! फिर कहती ठीक है रख दे, छोटे को भेज
उसी के हाथ भेजती हूँ! बाबू जी और छोटे भाई का तालमेल अनूठा था, दोनों एक दूसरे को अच्छे से
समझते थे, लेकिन उस वक़्त मेरा बाल मन इसको कुछ और ही समझता था, कि बाबू जी मेरे हाथ
से चाय नही लेते, जबकि छोटे के हाथ से ले लेते थे! या हो सकता हे कि वो जाकर बाबू जी कि मनुहार
करता हो कि पी लीजिये! और मेरे से ये सब होता नही था! मैं उस वक़्त 8th क्लास में था! तब मैं सोचता था कि बाबू जी के पैसे कि चाय बाबू जी फिर भी नखरे क्यूँ मारते हैं! पीनी हे तो पियो नहीं पीनी तो
मत पीओ! खैर जो भी हो, कई बार ऐसा होता था कि घर में सिर्फ मैं ही होता था, तब माँ के पास
कोई चारा नही होता था मुझको ही चाय लेकर भेजती थी, और कहती थी कि बेटा जबरदस्ती रख
के आ जाना! मैं कुछ नही कहता और चाय लेकर चला जाता, बाबू जी उसी तरह का बर्ताव नही पीनी
ले जाओ बापिस, मैं रखने कि कोशिश करता बाबू जी जोरो से चिल्लाते बहरा हे क्या सुना नही! मैं डर के
मरे बापिस ले आता! माँ के चेहरे पर फिर तनाव, और वो जानती थी कि आज तो कोई और हे भी नही,
चाय कैसे पियेंगे तेरे बाबू जी, मैं कहता माँ छोटा टूशन से आ जायेगा तो उसके हाथ भेज देना! ये सिलसिला
चलता ही रहता था! और बाबू जी अपने इस बर्ताव के करना कई बार बिना चाय कि ही रह जाते थे!
माँ अपनी ड्यूटी पूरी शिद्दत से करती थी, रोजमर्रा का यही काम था, ऐसा अक्सर ही होता था कि मैं ही
घर पर होता था, मैं माँ कि मज़बूरी समझता था, साथ ही बाबू जी के वर्ताब से भी आहत था, लेकिन
जब माँ चाय बनाती तो मुझे आवाज नही देती, लेकिन मैं जाकर माँ से कहता कि ला माँ मैं बाबू जी
को चाय दे आऊ, माँ मना कर देती थी, रहने दे तेरे हाथ से नही लेंगे, लेकिन मैं जिद्द करता के दे तो
सही, देखता हूँ कब तक नही लेंगे मेरे हाथ से, अब मैं चाय लेकर बाबू जी के कमरे में जाता, बाबू जी तिरछी
नजरों से मुझे देखते और पढ़ाने में मशगूल हो जाते, मैं धीरे चाय टेबल पर रख कर कमरे के बाहर आ जाता
और कन्खिओं से देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं या नही, उधर माँ का तनाव अपनी जगह, फिर मैं देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं, मैं आकर माँ को खुशखबरी देता कि आज तो बाबू जी न चाय पी ली! माँ के
चेहरे पर आये संतुष्टि के भाव से मैं आत्मविभोर हो जाता! फिर मैं सोचता कि अब बाबू जी क्यूँ नही चिल्लाते
मैं जब भी चाय लेकर जाता! शायद इसलिए कि उनको पता हे कि ये मन-मनुहार नही करने वाला, इसलिए खामखा नखरे दिखाने में अपना ही नुक्सान है! मेरा बाल मन उस वक़्त इतना ही सोच पाता था! इसको
मैं अपनी जीत भी मानने लगा था, कि कोई भी इंसान भाव(नखरे) क्यूँ खाता है! और ये मेरी तभी से आदत
भी पड़ गयी कि खामखा के नखरे किसी के भी नही सहने.. जब मैंने अपने ही बाबू जी के नखरे नही सहे,
तो किसी और कि तो बात ही क्या है! .....
(इक ख़याल अपना सा! .......... कथानक सच्ची घटना पर आधारित है! आप सभी के कमेंट्स का आपकी
बहुमूल्य राय के साथ स्वागत है!
गुस्से में चिल्लाते ले जाओ चाय मुझे नही पीनी! मैं एक बार अनमने मन से कोशिश करता कि पी
लो, बाबू जी पहले से भी जोरो से चिल्लाते कहा न बापिस ले जा! मैं डर के मरे चाय का कप बापिस ले
जाकर माँ के पास आ जाता! माँ कहती क्या हुआ, मैं कहता नही पी रहे , चिल्ला रहे हैं, माँ के
चेहरे पर तनाव साफ़ झलकता था! लेकिन कोई उपाए नही! फिर कहती ठीक है रख दे, छोटे को भेज
उसी के हाथ भेजती हूँ! बाबू जी और छोटे भाई का तालमेल अनूठा था, दोनों एक दूसरे को अच्छे से
समझते थे, लेकिन उस वक़्त मेरा बाल मन इसको कुछ और ही समझता था, कि बाबू जी मेरे हाथ
से चाय नही लेते, जबकि छोटे के हाथ से ले लेते थे! या हो सकता हे कि वो जाकर बाबू जी कि मनुहार
करता हो कि पी लीजिये! और मेरे से ये सब होता नही था! मैं उस वक़्त 8th क्लास में था! तब मैं सोचता था कि बाबू जी के पैसे कि चाय बाबू जी फिर भी नखरे क्यूँ मारते हैं! पीनी हे तो पियो नहीं पीनी तो
मत पीओ! खैर जो भी हो, कई बार ऐसा होता था कि घर में सिर्फ मैं ही होता था, तब माँ के पास
कोई चारा नही होता था मुझको ही चाय लेकर भेजती थी, और कहती थी कि बेटा जबरदस्ती रख
के आ जाना! मैं कुछ नही कहता और चाय लेकर चला जाता, बाबू जी उसी तरह का बर्ताव नही पीनी
ले जाओ बापिस, मैं रखने कि कोशिश करता बाबू जी जोरो से चिल्लाते बहरा हे क्या सुना नही! मैं डर के
मरे बापिस ले आता! माँ के चेहरे पर फिर तनाव, और वो जानती थी कि आज तो कोई और हे भी नही,
चाय कैसे पियेंगे तेरे बाबू जी, मैं कहता माँ छोटा टूशन से आ जायेगा तो उसके हाथ भेज देना! ये सिलसिला
चलता ही रहता था! और बाबू जी अपने इस बर्ताव के करना कई बार बिना चाय कि ही रह जाते थे!
माँ अपनी ड्यूटी पूरी शिद्दत से करती थी, रोजमर्रा का यही काम था, ऐसा अक्सर ही होता था कि मैं ही
घर पर होता था, मैं माँ कि मज़बूरी समझता था, साथ ही बाबू जी के वर्ताब से भी आहत था, लेकिन
जब माँ चाय बनाती तो मुझे आवाज नही देती, लेकिन मैं जाकर माँ से कहता कि ला माँ मैं बाबू जी
को चाय दे आऊ, माँ मना कर देती थी, रहने दे तेरे हाथ से नही लेंगे, लेकिन मैं जिद्द करता के दे तो
सही, देखता हूँ कब तक नही लेंगे मेरे हाथ से, अब मैं चाय लेकर बाबू जी के कमरे में जाता, बाबू जी तिरछी
नजरों से मुझे देखते और पढ़ाने में मशगूल हो जाते, मैं धीरे चाय टेबल पर रख कर कमरे के बाहर आ जाता
और कन्खिओं से देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं या नही, उधर माँ का तनाव अपनी जगह, फिर मैं देखता कि बाबू जी चाय पी रहे हैं, मैं आकर माँ को खुशखबरी देता कि आज तो बाबू जी न चाय पी ली! माँ के
चेहरे पर आये संतुष्टि के भाव से मैं आत्मविभोर हो जाता! फिर मैं सोचता कि अब बाबू जी क्यूँ नही चिल्लाते
मैं जब भी चाय लेकर जाता! शायद इसलिए कि उनको पता हे कि ये मन-मनुहार नही करने वाला, इसलिए खामखा नखरे दिखाने में अपना ही नुक्सान है! मेरा बाल मन उस वक़्त इतना ही सोच पाता था! इसको
मैं अपनी जीत भी मानने लगा था, कि कोई भी इंसान भाव(नखरे) क्यूँ खाता है! और ये मेरी तभी से आदत
भी पड़ गयी कि खामखा के नखरे किसी के भी नही सहने.. जब मैंने अपने ही बाबू जी के नखरे नही सहे,
तो किसी और कि तो बात ही क्या है! .....
(इक ख़याल अपना सा! .......... कथानक सच्ची घटना पर आधारित है! आप सभी के कमेंट्स का आपकी
बहुमूल्य राय के साथ स्वागत है!
Wednesday, June 13, 2012
कुछ छानिकाएं....................
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कुछ छानिकाएं
१-
तस्वीर उनकी
बैचेनी इनकी
कयामत का ये मंजर
दिल में उतरता हुआ खंजर
इश्क में लहुलुहान होता हुआ
अंजानी राहों में भटकता हुआ
बढ़ता चला जा रहा हे दीवाना
मंजिल का कोई पता नही
दीवनगी देखते ही बनती है!
२-
कभी दिल उनका
कभी इनका भटकता है
हर कोई कही ना कही अटकता है
सिलसिला अनवरत जरी है
खुदा जाने किसकी लाचारी है
यही फेस-बुक , ट्विट्टर और
ना जान कितनी सोसिअल साइट्स
कि ये अत्याधुनिक लाइलाज बीमारी है!
Saturday, May 19, 2012
Tuesday, May 15, 2012
तेरा क्या होगा रे राजा........................
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आरे ओ चिंपू, कित्ते घोटालेबाज़ अंदर किए थे अपुन
सरदार, 4 बड़े और अनगिनत छोटे
हूँ , कितने बाहर आए छूटकर अभि तक
सरदार, सारे छूट गए बस एक ही बाकी है
हूँ, कौन हे रे वो,
सरदार , राजा!
क्या कहा , राजा,. मजाक करते हो हम से
राजा तो हम हैं!
सरदार , उसका नाम राजा है!
हूँ , तो ऐसा बोलो ना
... तेरा क्या होगा रे राजा
सरकार, मेने ये घोटाला अकेले नही किया
हम सबने मिलकर किया !
हूँ,. वो हमे मालूम हैं राजा
लेकिन हमे सिर्फ़ चबन्नि में निपटा रहे थे
और बरन्नि अकेले अकेले खा रहा थे
अभी क्या पोजिसन है... सब माल बारोबरा बाँट गया नि!
जी सरकार!
ठीक है कल तू भि बाहर आ जायेगा!
लेकिन ध्यान रहे, मुँह नि खोलना
वरना फिर से अन्दर कर दूँगा!
और आगे से ध्यान रहे, हिसाब
बरोबर करने का !
Saturday, May 12, 2012
Tuesday, May 1, 2012
Monday, April 30, 2012
Monday, April 23, 2012
वो मोहब्बत के मारे हुये हैं...........(ik khayaal apna sa)
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वो मोहब्बत के मारे हुये हैं
उनको चेहरा दिखा दीजिये |
मंजिले खो गई हैं मगर
उनको अपना पता दीजिये|
सांस अतकी हुई हे अभी तक
बस इक बार मुस्करा दीजिये |
इंतजार दिदार-ए-यार का
जरा पर्दा गिरा दीजिये|
आज मजनू ने आवाज दी है
मुझको लैला से मिला दीजिये|
वो मोहब्बत के मारे हुये हैं|
.............................. ........
Friday, March 23, 2012
वक़्त ने इस कद्र बीजी कर दिया है आलोक
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पत्नी जी बोली ए जी आप तो
हमारी तरफ देखते ही नही
हमने कहा क्यूँ कोई खास बात
वो मुस्करायी अपना फेस
हमारे और करीब लायी,
बोली आप भी न
एक दम बुध्धू हो,
हमने मन ही मन सोचा
ये बात तो एक दम सच बोली,
फिर वो बोली, जरा गौर फरमाए
और हमारा चेहरा देखकर
अंतर बतलाये,
हमने उचटती से नज़र
उनपर डाली, फिर कहा
क्या यार क्यूँ टाइम
खोटा करती हो,
एक दम जैसे कल थी
बैसी ही लगती हो,
वो गुस्से से तमतमाई
और जाकर ब्यूटी-पर्लोर
वाली से लड़ आई,
बोली मेरे पैसे बापिस कर
मेरे हबी को तो मैं
कल जैसे ही नज़र आई!
तब जाकर हमें
पूरी बात समझ आई,
फिर हम मन ही मन
अपनी बेवकूफी पे मुस्कराए,
और पत्नी कि और
इशारा किया और कहा
यार लूकिंग ग्रेट,
डू नोट लूस फेथ!
तुम बिना मकेउप के
हसीं लगती हो,
क्यूँ ब्यूटी-पर्लोर पर
इतना पैसा खर्च करती हो!
वक़्त ने इस कद्र बीजी कर दिया है आलोक
कि खुद से मिले हुए इक जमाना बीत गया!
Saturday, March 17, 2012
Saturday, March 3, 2012
Saturday, February 25, 2012
Thursday, January 12, 2012
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