Saturday, December 31, 2011
Saturday, December 10, 2011
जवान होती ये सोसिअल साईट कि दुनिया
जवान होती ये सोसिअल साईट कि दुनिया
कुछ रंगीन , कुछ ग़मगीन, कुछ यूँ ही
रोज कुछ न कुछ, कही न कही
गिले शिकवे, मेल मिलाप
अनुसंधान जारी है!
नए नए प्रोयोगे के द्वारा,
कुछ इधर से कुछ उधर से,
लगे हुए हैं, लुभाने में
एक दूसरे को,
कितना रंगीन आभास है
इस आभासी दुनिया का,
लेकिन जब आईने कि तरह
सब साफ़ होता जाता है,
तब वास्तविकता और इस आभासी
दुनिया का मतलब एक सा हो जाता है
कही भी कुछ बदला हुआ सा नजर
नही आता,
सिबाये खुद के!
कुछ रंगीन , कुछ ग़मगीन, कुछ यूँ ही
रोज कुछ न कुछ, कही न कही
गिले शिकवे, मेल मिलाप
अनुसंधान जारी है!
नए नए प्रोयोगे के द्वारा,
कुछ इधर से कुछ उधर से,
लगे हुए हैं, लुभाने में
एक दूसरे को,
कितना रंगीन आभास है
इस आभासी दुनिया का,
लेकिन जब आईने कि तरह
सब साफ़ होता जाता है,
तब वास्तविकता और इस आभासी
दुनिया का मतलब एक सा हो जाता है
कही भी कुछ बदला हुआ सा नजर
नही आता,
सिबाये खुद के!
Wednesday, November 9, 2011
कूड़ा करकट
जैसे ही हम घर से ऑफिस के लिए निकले! एक अजीब से बदबू हमारी नासिका में प्रवेश कर गयी!
हम रुके, और उस बदबू का कारन जानना चाहा, फिर श्रीमती जी को आवाज लगायी! कहा हो भाई,
श्रीमती जी किचेन से बद्बदाती हुई आई! और लगभग चिल्लाते हुए बोली, अब क्या हुआ! ऑफिस
नही जाना क्या! हमने कहा ऑफिस ही जा रहे थे, लेकिन ये बदबू , उन्होंने हमें बीच में ही रोकते
हुआ कहा, अच्छा हुआ तुमने बदबू सूंघ ली, मेरी तो नाक में कुछ भी गंध नही आती! बात ये हे
कि कूड़े उठाने वाला कई दिनों से आया नही है! इसीलिए ये बदबू इस डस्टबिन में से आ रही है!
हमने गौर से देखा डस्टबिन तो जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम कि तरह चमचमा रहा था, हमने श्रीमतीजी
से कहा , लगता है तुम भी कलमाड़ी बाबा कि राह पर चल पड़ी हो! श्रीमती जी तमतमाई, बोली गाली,
देनी हे तो दे लो, लेकिन हमारा नाम उस भिराष्ट नेता के साथ न जोडीये! अरे हमने कहा कि उन्होंने भी
चमचमाते हुए स्टेडियम बन्बाये थे, लेकिन सब मैं कुछ न कुछ घोटाला था! तो उसी से हमें डस्टबिन
के चमकने और उसमे बदबू आने का कारन का तर्ताम्ये बैठाने लगे! पत्नी जी बोली ठीक है, आप तारतम्ये
बिठाते रहना, पहले ये कूड़े कि थैली उठाइए और रास्ते में खिसका देना.
खैर! हमने मन मसोस कर कूड़े कि थैली थामी और चल पड़े ऑफिस, अब रास्ते में टेंशन कि कहा पर
सरकाए इस कूड़े को, खैर जैसे तैसे एक जगह कूड़े का ढेर देखा हमने इधर -उधर देखा और कूड़े कि थैली
उछाल दी! और ऐसे महसूस किया जैसे कि वन डे सिरीज का पहला मैच जीत लिया हो! जैसे ही आगे बढे,
एक साहब हथेली में तम्बाकू रगड़ते हुए सामने आ टपके, और हमें रुकने का इशारा किया, हम रुके, और
पूछा कहिये श्रीमान! उन्होंने हमें ऊपर से नीचे तौला और कहने लगा, देखने में तो सभ्य इंसान लगते हो,
पढ़े लिखे भी होगे ही, लेकिन दिमाग का इस्तेमाल नही करते!, हमने कहा यार सीधे सीधे कहो, क्या कहना है,
बी जे पी कि तरह राजनितिक बयां बाजी न करो! बोला हुन, आप पर सार्वजानिक स्थल को गन्दा करने का इल्जाम हे!
इसलिए आप पर पूरे 200 रूपये जुरमाना! हमने कहा यार, हमने तो कूड़े कि जगह ही कूड़ा डाला है! फिर ये जुरमाना
किस बात का! बोला एक तो गलती करते हो ऊपर से कानून झाड़ते हो, हमने उसके तेवर देखे, और कहा यार
कुछ ले देकर निपटा लो मामला! बोला एक और गलती रिश्वत देते हो! हमने सोचा यार ये अन्ना जी का समर्थक
यहाँ कहा से पैदा हो गया! हमने कहा क्या चाहते हो! बोला इधर आओ कौने में, फिर बोला चालान कटवाना हे या,
हमने जल्दी से उसके हाथ पर ५० का नोट रखा और खिसक लिए! फिर सोचा यार ज्यादा इमानदारी भी ठीक नही!
Wednesday, November 2, 2011
एक ख़याल अपना सा!
उस सर्द रात को आते ही तुमने
मेरे मन में उथल-पुथल मचा दी
मैं अचंभित हो गया था तुमको
अपने इतने करीब पाकर ,
यकीन ही नही हो रहा था कि
तुम इस तरह अचानक से
चली आओगी! और मुझे
अपने आगोश में छिपा लोगी,
बाकैई कितना सुन्दर एहसास
छिपा हे तुम्हारा, मेरे इन
नासमझ ख्यालों में,
पता नही ये क्या और कैसे
सोच लेते हैं इतना सब कुछ!
यूँ ही, और मैं बस मुस्करा
उठता हूँ, सोचकर तुमको
इस तरह अपने ख्यालों मैं!
मेरे मन में उथल-पुथल मचा दी
मैं अचंभित हो गया था तुमको
अपने इतने करीब पाकर ,
यकीन ही नही हो रहा था कि
तुम इस तरह अचानक से
चली आओगी! और मुझे
अपने आगोश में छिपा लोगी,
बाकैई कितना सुन्दर एहसास
छिपा हे तुम्हारा, मेरे इन
नासमझ ख्यालों में,
पता नही ये क्या और कैसे
सोच लेते हैं इतना सब कुछ!
यूँ ही, और मैं बस मुस्करा
उठता हूँ, सोचकर तुमको
इस तरह अपने ख्यालों मैं!
Saturday, October 1, 2011
Thursday, September 22, 2011
Tuesday, September 20, 2011
मन्नू बदनाम....
मन्नू बदनाम हुआ सोनिया तेरे लिए
महगाई कि मार हो या पेट्रोल के दाम =२
बेशर्म हुआ हूँ मैं नही दूजा काम =२
पब्लिक कि मार खाई डार्लिंग तेरे लिए
मन्नू बदनाम....
2G स्पक्ट्रम हो या CWG घोटाला=२
कलमाड़ी- राजा को मेने तिहाड़ में डाला = २
जिधर भी देखू में घोटाला ही घोटाला = २
विपक्ष कि मार खाई डार्लिंग तेरे लिए..
मन्नू बदनाम....
लोकपाल बिल बना मेरे गले का फंदा=२
अन्ना हजारे करे अनशन का धंदा =२
मार्केट मेरा जालिम हो गया मंदा=२
जेल में डाला उसको डार्लिंग तेरे लिए
मन्नू बदनाम....
संभालो अब तुम ये PM कि कुर्सी=२
मुझे तो करने दो अब तुम मातम-पुरसी=२
जनता-जनार्दन मेरे रहम को तरसी=२
अभिमन्यु तैयार हे तेरा PM बनने के लिए
मन्नू बदनाम हुआ डार्लिंग तेरे लिए
मन्नू बदनाम....
Tuesday, July 26, 2011
एक ख़याल अपना सा......
वक़्त के साथ दोस्ती शब्दों कि मोहताज नही होती
तू सोचता हे मुझको, इससे बढ़कर कोई सौगात नही होती
ख्यालों को शब्दों में उतार देना कुछ ऐसा ही है
कि तूने सोचा तो सही, मगर भुला भी दिया!
फिर कभी बाहार आएगी,तो समझ लेंगे हम
कोई तो था कभी, जिससे अब बात नही होती,
बस इतना सा ख़याल तुम रखना ए मेरे दोस्त
जब भी मिले तो न लगे, कि रोज बात नही होती,
जिन्दगी तो एहसासों का वो समुन्द्र हे "गौरव"
जितना भी पैठो गहरे, पर कोई थाह नही होती!
Tuesday, June 14, 2011
बिडम्बना.................
कल तलक जो बाबा के साथ थे
पूरे जोश मैं, कि बाबा सही कर रहा है
आज उसी बाबा के अनशन तोड़ने पर
वो हंस रहे हैं!
कह रहे हैं, कि बाबा कमजोर निकला!
सिर्फ ९ दिन में ही बाबा का डिब्बा गोल हो गया
अरे ये तो पाखंडी निकला! जिन्दा बच गया!
मुद्दा भूल कर, बस यही बहस
कि बाबा मरा क्यूँ नही!
अचानक से ये दोगला चेहरा
देखकर मैं सोच मैं पड़ जाता हूँ!
शायद ये भी एक बिडम्बना है!
इस हिन्दुस्तान की! जहाँ
असली मुद्दे छूटते जाते हैं
और बेमनी मुद्दे चर्चा में आ जाते हैं
शायद व्यवस्था भी कुछ यही चाहती है
भ्रमित करना, पहले से ही भ्रमित जनता को!
लेकिन मैं कतई भ्रमित नही हूँ,
इसलिए मैने कभी भी किसी का
पक्ष नही लिया! मैं मौकापरस्त हूँ
जैसी हवा देखि, बैसा ही रुख कर लेता हूँ!
क्यूंकि मैं अपनी ज्निदगी नही जीता
वो तो पहले ही किसी की गुलाम है!
व्यवस्था की ?
अब इसका पता आप लगाओ!
पूरे जोश मैं, कि बाबा सही कर रहा है
आज उसी बाबा के अनशन तोड़ने पर
वो हंस रहे हैं!
कह रहे हैं, कि बाबा कमजोर निकला!
सिर्फ ९ दिन में ही बाबा का डिब्बा गोल हो गया
अरे ये तो पाखंडी निकला! जिन्दा बच गया!
मुद्दा भूल कर, बस यही बहस
कि बाबा मरा क्यूँ नही!
अचानक से ये दोगला चेहरा
देखकर मैं सोच मैं पड़ जाता हूँ!
शायद ये भी एक बिडम्बना है!
इस हिन्दुस्तान की! जहाँ
असली मुद्दे छूटते जाते हैं
और बेमनी मुद्दे चर्चा में आ जाते हैं
शायद व्यवस्था भी कुछ यही चाहती है
भ्रमित करना, पहले से ही भ्रमित जनता को!
लेकिन मैं कतई भ्रमित नही हूँ,
इसलिए मैने कभी भी किसी का
पक्ष नही लिया! मैं मौकापरस्त हूँ
जैसी हवा देखि, बैसा ही रुख कर लेता हूँ!
क्यूंकि मैं अपनी ज्निदगी नही जीता
वो तो पहले ही किसी की गुलाम है!
व्यवस्था की ?
अब इसका पता आप लगाओ!
Monday, June 6, 2011
एक पाती बाबा जी के नाम
अरे योगी, तू सिर्फ योगासन सिखा, ये पोलिटिकल आसान हमारे लिए छोड़ दे, अनुलोम-विलोम में से हमें सिर्फ विलोम ही आता है! ये अनुलोम तू अपने पास रख! अगर नही रखा अपने पास तो तू हमारे विलोम आसन को नही झेल पायेगा! ये बात इन पोलिटिकल योगी गुरुओं ने इस खालिस योगी बाबा को समझाई थी! लेकिन बाबा को अपने योग पर पूरा भरोसा था! क्यूंकि उसे जन-समर्थन बहुत प्राप्त था! लेकिन बावा को डंडा आसन कि ताकत का पता नही था! बाबा ने स्वप्न में भी नही सोचा होगा कि इस डंडा-आसन के आगे सारे आसन फ़ैल हैं! खैर बाबा तो बापिस अपने आश्रम में पहुँच गए! बहुत अपमान हुआ, जिसका असर बाबा के मुखमंडल पर देखा जा सकता है! और विजय जश्न का असर इन धूर्त, धोखेबाज ,चरित्रहीन और चोर एवं भिराष्ट नेताओं के चेहरे पर! खुश हो रहे हैं, प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं, बाबा को ठग बतला रहे हैं! कसाब और अफजल गुरु को चिच्किन बिरयानी खिला रहे हैं! नर्किये लादेन को अब्बा जी बोलते हैं! अरे बावा इन मक्कारों का कोई इमान्धर्म नही है! बैसे भी आप जानते हैं कि चोर से जब भी चोरी कि बात उगाल्बाई जाती है तो वो सीधे तरीके से नही कबूलता! उसपर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके, उल्टा-आसन करबा कर, फिर डंडा-आसन एप्लाई करते हुए, अनुलोम-बिलोम कि किर्या का आह्वान करते हुए! वो अपना जुर्म कबूलता है! और एक आप सिर्फ बात-चीत के माध्यम से इनसे कबूलवा रहे थे कि कबूलो! वो मना करते रहे और आप जिद पर अड़े रहे! तो हे योगी बाबा इन लुटेरों ने आपको ये बतला दिया है कि हम लातों के भूत हैं, आपके इस अनशन से मानने बाले नहीं हैं! हमें भी डंडा-आसन के द्वारा ही मानबाया जा सकता है! तो हे योगी बावा जब आपने बीड़ा उठा ही लिया है, इस व्यवस्था को सुधारने का, तो आप इस दुर्घटना के बाद से सबक लेते हुए, भविष्य मैं जब भी अनशन करे, उसके पाहिले आपके सारे अनुयाई को डंडा आसन , लात-आसन , घूंसा-आसन मैं पारंगत होना जरुरी है! तभी न आप इन चोरों से निपट पाएंगे! मैं आपको एक चौपाई कि याद दिलाना चाहता हूँ " जा कि रही भावना जैसी, प्रभु देखि तिन मूरत तैसी" तो इस चौपाई पर अमल करते हुए, अपने इस महान कार्य को सफल बनाये, हमारी शुभकामनाये आपके साथ हैं! आप सफ़ल हों, आने वाली पीढ़ी का भविष्य भिराश्ताचार से मुक्त हो, इसी शुभकामनाओ के साथ आपका एक शुभचिंतक!
Friday, June 3, 2011
Wednesday, June 1, 2011
Monday, May 30, 2011
पल पल बदलते ये चेहरे..............
राग द्वेष रंग भेष
पता नही मैं हूँ कौन
मैं हूँ भी कि नही
क्या बाकई
मेरा कोई अस्तित्व है,
मैं भ्रमित हूँ आज भी
जितना कि कल था,
लेकिन दिशा ज्ञान
आज भी बाँट रहा हूँ
और उसी में अपनी
दिशा भी खोज रहा हूँ,
अजीब सी मारममार है
गजब की रेलमपेल है
मैं इसी भीड़ का हिस्सा
होते हुए भी
अपने को अलग दिखाना
चाहता हूँ!
लेकिन क्यूँ , किसलिए
काश की मुझे
ये सब पता होता,
फिर मैं क्यूँ
इस तरह भटकता
फिर क्यूँ मैं अपना
रंग पल पल बदलता!
पता नही मैं हूँ कौन
मैं हूँ भी कि नही
क्या बाकई
मेरा कोई अस्तित्व है,
मैं भ्रमित हूँ आज भी
जितना कि कल था,
लेकिन दिशा ज्ञान
आज भी बाँट रहा हूँ
और उसी में अपनी
दिशा भी खोज रहा हूँ,
अजीब सी मारममार है
गजब की रेलमपेल है
मैं इसी भीड़ का हिस्सा
होते हुए भी
अपने को अलग दिखाना
चाहता हूँ!
लेकिन क्यूँ , किसलिए
काश की मुझे
ये सब पता होता,
फिर मैं क्यूँ
इस तरह भटकता
फिर क्यूँ मैं अपना
रंग पल पल बदलता!
Friday, May 27, 2011
फिर क्यूँ न ये जमाना .........
काश कि तू अपनी कविताओं कि तरह होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
बात चाँद कि और आसमान कि करते हो
जमीन पर तो तुम कीचड़ मैं फिसलते हो
थोडा ही सही तुझमे, कुछ तो असर उनका होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
झूठी वाह-वाही से क्यूँ गद गद होता है प्यारे
मजबूरिओं ने तुझको शमा-ए-महफ़िल बनाया होगा
रुख से तूने अगर नकाब हटाया होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता|
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
बात चाँद कि और आसमान कि करते हो
जमीन पर तो तुम कीचड़ मैं फिसलते हो
थोडा ही सही तुझमे, कुछ तो असर उनका होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता,
झूठी वाह-वाही से क्यूँ गद गद होता है प्यारे
मजबूरिओं ने तुझको शमा-ए-महफ़िल बनाया होगा
रुख से तूने अगर नकाब हटाया होता
फिर क्यूँ न ये जमाना तेरा दीवाना होता|
Thursday, May 19, 2011
तुझको भुलाया ही कब था ...............
तुझको भुलाया ही कब था जो याद करते
तुझसे ख्यालों में अक्सर हम बात करते,
ये बात और है कि तुझे हमसे क्या हे लेना-देना
मगर हम जब भी बात करते, तेरी ही बात करते,
यूँ और भी हैं इस ज़माने में, चाहने वाले मेरे
मगर तेरी चाहत का जिक्र हम अक्सर ही किया करते,
लोग कहते हैं कि इश्क नही हे आसान ये जान लीजिये
हम तो मुश्किलों में भी इश्क कि ही बात किया करते,
जब दिल लगा ही लिया तो अंजाम कि परवाह क्या करनी
लोग तो यूँ भी हमें, अक्सर ही बदनाम किया करते,
परवाह ज़माने कि करते , तो उन पाक मुहब्बतों का क्या होता
फिर क्यूँ लोग लैला-मजनू और शिरी-फरहाद को याद किया करते!
तुझसे ख्यालों में अक्सर हम बात करते,
ये बात और है कि तुझे हमसे क्या हे लेना-देना
मगर हम जब भी बात करते, तेरी ही बात करते,
यूँ और भी हैं इस ज़माने में, चाहने वाले मेरे
मगर तेरी चाहत का जिक्र हम अक्सर ही किया करते,
लोग कहते हैं कि इश्क नही हे आसान ये जान लीजिये
हम तो मुश्किलों में भी इश्क कि ही बात किया करते,
जब दिल लगा ही लिया तो अंजाम कि परवाह क्या करनी
लोग तो यूँ भी हमें, अक्सर ही बदनाम किया करते,
परवाह ज़माने कि करते , तो उन पाक मुहब्बतों का क्या होता
फिर क्यूँ लोग लैला-मजनू और शिरी-फरहाद को याद किया करते!
Tuesday, May 10, 2011
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
**एक बिना छपे राइटर कि व्यथा...
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
जिसे देखो यहाँ छप रहा हे
जिसे देखो वहां छप रहा हे
एक हम ही हैं जो नही छप रहे !
लेकिन भला हो इस इन्टरनेट का
कि जिसने हमें सेल्फ मोड में
छपने का अधिकार दिया है !
बरना हम बिना छपे ही रह जाते
फिर आप हमें कैसे पढ़/जान पाते!
कई बार सोचता हूँ कि हम साला
एक नीम-हकीम कि तरह ही तो है
कितना भी बढ़िया दवाई दे दो
लेकिन बिना डिग्री सब बेकार हे
क्यूंकि छपने के बाद मिलती है
डिग्री , तब न डॉ बन पाते!
इलाज तो हम भी बहुत करते हैं
कइओं को हम भी ठीक करते हैं
लेकिन फिर भी नीम-हकीम ही कहलाते हैं
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
जिसे देखो यहाँ छप रहा हे
जिसे देखो वहां छप रहा हे
एक हम ही हैं जो नही छप रहे !
लेकिन भला हो इस इन्टरनेट का
कि जिसने हमें सेल्फ मोड में
छपने का अधिकार दिया है !
बरना हम बिना छपे ही रह जाते
फिर आप हमें कैसे पढ़/जान पाते!
कई बार सोचता हूँ कि हम साला
एक नीम-हकीम कि तरह ही तो है
कितना भी बढ़िया दवाई दे दो
लेकिन बिना डिग्री सब बेकार हे
क्यूंकि छपने के बाद मिलती है
डिग्री , तब न डॉ बन पाते!
इलाज तो हम भी बहुत करते हैं
कइओं को हम भी ठीक करते हैं
लेकिन फिर भी नीम-हकीम ही कहलाते हैं
क्यूंकि हम हैं कि छप नही पाते!
Saturday, April 30, 2011
किस्सा "किस" का
जैसा कि आप सभी ने सुना/पढ़ा/देखा होगा अलग अलग माध्यम से, ब्रिटेन कि राजशी शादी का किस्सा! काफी बड़े पैमाने पर इसका आयोजन किया गया, लाइव टेलेकास्ट भी किया गया! जहाँ तक
मीडिया कि बात है, इस मामले मैं हमारा मीडिया बाकि मीडिया से बहुत ही आगे है! क्यूंकि हमारे मीडिया को ख़बरों कि खबर बनाने में महारत हासिल है! लेकिन हमारे मीडिया कि बजहा से जो
हाल हमारा हुआ! कि क्या कहे!
जैसे ही हम ऑफिस से घर पहुंचे, और १ ग्लास ठन्डे पानी का इंतजार रोज कि तरह करने लगे, मगर हमारी पत्नी जी ठन्डे पानी का ग्लास लेकर ही नही आई! हमने कहा, कहाँ बीजी जो आज! कभी इजी भी रह लिया करो, "वेयर इस माय ग्लास ऑफ़ वाटर" हमने अंग्रेजी झड़ने कि एक नाकाम कोशिश कि, पत्नी जी बोली, भाड़ में गया तुम्हारा ठन्डे पानी का ग्लास! कहने लगी ये कोल्ड वाटर पी पी कर तुम वक़्त से पहले ही कोल्ड हो चुके हो! हमारी समझ में कुछ नही आया, कि पत्नी जी कहना क्या चाह रही हैं! फिर भी हमने पूछ ही लिया, आज ये तेवर "किस" लिए! बोली बस इस "किस" कि ही तो बात है! सुबह से टीवी पर ये "किस" ही तो देख रही हूँ!हमने सोचा लगता हे पत्नी जी का दिमाग फिर गया है! या कोई ऊपरी हवा का चक्कर तो नही! आज ये सती सावित्री बहकी बहकी बातें क्यूँ कर रही है! मेने कहा यार क्या बात है, सीधे सीधे कहो, यूँ पहेलिआं न बुझाओ कहने लगी, मैंने जलाई ही कब थी जो बुझायुंगी! मैंने सोचा यार आज ये पत्नी जी, बात मे से बात क्यूँ निकाल रही हैं! मैंने अपना सर धुन लिया और बोला, यार सीधे सीधे बताती हो तो ठीक, नही तो भाड़ में जाओ! मैं ऑफिस थक कर तुम्हारी बकवास सुनें नही आया हूँ! हमारे इस एवर-ग्रीन पीछा-छुडाऊ डायेलोग से पत्नी जी बडबड़ाती हुई किचेन में चली गयी! और हमने रिमोट हाथ में लेते हुए , टीवी ओन किया, खुशकिस्मत से हमारा प्रिये न्यूज़ चैनल लगा हुआ था! और उस वक़्त प्रिन्स विल्लियम कि शादी का चर्चा चल रहा था, कोई २-३ बुजुर्ग विद्वान बैठे हुए थे और २-३ जवान न्यूज़ एंकर! सवाल जवाब चल रहे थे! हमें माजरा समझने में थोडा ही वक़्त लगा!
तभी एक ६० साल के बुजुर्ग विद्वान अपनी राय व्यक्त कर रहे थे! न्यूज़ एंकर के सवाल पर! सवाल था सर जी आपने अभी अभी जो "किस" वाला क्लिप देखा, क्या आपको नही लगता कि ये जो "रोयल किस" प्रिन्स विल्लियम ने कैट को किया! इसमें वो बात नही आई जो आनी चाहिए थी! हम्म! बुजुर्ग विद्वान ने अपने होंठो पर जीभ फेरी, और फिर गला साफ़ किया, ऐसे लगा कि अब "किस" लेने कि बारी उन्ही कि है! फिर बड़ी विद्वता से बोले, आपने सही कहा, और मैं दाद देना चाहूँगा आपकी बारीक नज़र को, कि आपने इतने ध्यान से इस बात को भी नोट किया, कि इस "रोयल किस" में वो बात नही थी जो आज से ३० साल पहले इसी मौके पर प्रिन्स चार्ल्स और डायना के किस में थी! तभी दूसरा एंकर बोला, १-१----१ मिनट मैं आपको यही रोकना चाहूँगा, हमारे साथ टेलीफोन लाइन पर डॉ.किस्स्या जी जुड़ गए हैं, डॉ. साब आपका स्वागत है, डॉ. साब आप ये बताये, कि इस "किस" में और ३० साल पहले वाले "किस" में क्या फर्क है! डॉ: बहुत फर्क है जनाब, डॉ साब कि आवाज साफ नही आ रही थी, डॉ. साब कोई ७०+ के रहे होंगे! उनकी जुबान कम और वो ज्यादा हिल रहे थे! कहने लगे, जब चाल्र्स ने डायना का "किस" लिया था तो डायना उस वक़्त २० साल कि नाजुक/कमसिन लड़की थी! १ बात तो ये! दूसरी बात प्रिन्स चाल्र्स एक परिपक्व इंसान थे! कोई ३५ साल के!, तो उस "किस" में जो एहसास था, वो डायना के चेहरे पर साफ दिख रहा था!, लेकिन इस "किस" में वो बात नही आ पाई जो कि आनी चाहिए थी! फिर भी "किस" तो ये भी रोयल ही था!, मेरे ख्याल से इस "किस" के मिस होने में उम्र कसूरबार है! कैट ! कोई ३० साला हैं, और प्रिन्स विल्लियम उनसे कुछ छोटे हैं! ये एक कारन हो सकता है! अब ये चर्चा सुनकर-देखकर हमें सारा माजरा समझ आ गया, और फिर हम किचेन कि तरफ दौड़े, बस!, अब आगे नही लिखेंगे! हा हा हा अह हा अह आहा!
Friday, April 15, 2011
अजीब शै है.........
वो अपनी आँखों पर पर्दा डालकर
उनके पीछे कि हकीकत को
महज एक पर्दा बता रहे हैं!
पता नही वो किस मुगालते मैं
रहकर अपना मन बहला रहे हैं!
वो गाते हैं तो तराना बतलाते हैं
और हम गाएं तो ताना बताते हैं
उनकी हिस्टरी, कुछ मिस्ट्री सी है
बाते यहाँ कि बहां कि, सारे जहाँ कि
वो अक्सर ही किया करते हैं
पर हकीकत में वो जिन्दगी को
ऐवें ही जिया करते हैं
नाम बड़े और दर्शन छोटे
अल्फाज सुन्दर पर भाव हैं खोटे
मैं अक्सर ही सोचता हूँ कि
आज कल के तथा -कथित बाबाओं
कि कहानी भी कुछ ऐसे ही है
जिस स्टेज पर वो प्रवचन करते हैं
उसके पीछे भी एक पर्दा होता हे
लेकिन वो झीना नही होता हे
वही पर्दा हकीकत में पर्दा होता हे
जिसके आगे सत्संग और
पीछे रासरंग होता हे
उनके पीछे कि हकीकत को
महज एक पर्दा बता रहे हैं!
पता नही वो किस मुगालते मैं
रहकर अपना मन बहला रहे हैं!
वो गाते हैं तो तराना बतलाते हैं
और हम गाएं तो ताना बताते हैं
उनकी हिस्टरी, कुछ मिस्ट्री सी है
बाते यहाँ कि बहां कि, सारे जहाँ कि
वो अक्सर ही किया करते हैं
पर हकीकत में वो जिन्दगी को
ऐवें ही जिया करते हैं
नाम बड़े और दर्शन छोटे
अल्फाज सुन्दर पर भाव हैं खोटे
मैं अक्सर ही सोचता हूँ कि
आज कल के तथा -कथित बाबाओं
कि कहानी भी कुछ ऐसे ही है
जिस स्टेज पर वो प्रवचन करते हैं
उसके पीछे भी एक पर्दा होता हे
लेकिन वो झीना नही होता हे
वही पर्दा हकीकत में पर्दा होता हे
जिसके आगे सत्संग और
पीछे रासरंग होता हे
Thursday, April 7, 2011
मैं भी धीरे धीरे जानने लगा हूँ..........
तेरे शब्दों कि सजावट
तेरी बातों कि बनावट
कहा चली जाती हे
जब तुझे बाकई
सच बोलना होता हे
सच बोलने के नाम पर
तुम अक्सर बगले
क्यूँ झाँकने लगते हो!
तुम बाकई छलिया हो
या ये मेरे सोचने का
एक गलत ढंग,
जो तुम्हरी रचनाओ से
प्रेरित करता है मुझे
कि तुम शायद ऐसे ही हो
एक सच्चे दिल वाले इंसान,
लेकिन मैं भी कितना पागल हूँ
कि मैं ये कैसे भूल जाता हूँ
कि तुम सबसे पहले
हो एक इंसान,
जिसकी सामाजिक बाध्येताए
उसको रोकती हैं
सच बोलने से,
उसे मालूम हे कि उसको
सिर्फ कहलाने भर का
इंसान ही बनना हे
दिखावा करना हे.
ताकि उसका अस्तित्व
बना रहे, इस मिथ्या संसार में
अगर उसने सच बोलने कि
हिम्मत कि, तो उसको भी
"अन्ना हजारे" कि तरहा
शायद जंतर-मंतर पर
आमरण अनशन पर बैठना
होगा!,
वो जानता हे कि सच बोलना
भी कभी इतना आसान होता हे
शायद नही!
अब मुझे उससे कोई
गिला-शिकवा नही हे!
मैं भी धीरे धीरे
जानने लगा हूँ!
तेरी बातों कि बनावट
कहा चली जाती हे
जब तुझे बाकई
सच बोलना होता हे
सच बोलने के नाम पर
तुम अक्सर बगले
क्यूँ झाँकने लगते हो!
तुम बाकई छलिया हो
या ये मेरे सोचने का
एक गलत ढंग,
जो तुम्हरी रचनाओ से
प्रेरित करता है मुझे
कि तुम शायद ऐसे ही हो
एक सच्चे दिल वाले इंसान,
लेकिन मैं भी कितना पागल हूँ
कि मैं ये कैसे भूल जाता हूँ
कि तुम सबसे पहले
हो एक इंसान,
जिसकी सामाजिक बाध्येताए
उसको रोकती हैं
सच बोलने से,
उसे मालूम हे कि उसको
सिर्फ कहलाने भर का
इंसान ही बनना हे
दिखावा करना हे.
ताकि उसका अस्तित्व
बना रहे, इस मिथ्या संसार में
अगर उसने सच बोलने कि
हिम्मत कि, तो उसको भी
"अन्ना हजारे" कि तरहा
शायद जंतर-मंतर पर
आमरण अनशन पर बैठना
होगा!,
वो जानता हे कि सच बोलना
भी कभी इतना आसान होता हे
शायद नही!
अब मुझे उससे कोई
गिला-शिकवा नही हे!
मैं भी धीरे धीरे
जानने लगा हूँ!
Wednesday, April 6, 2011
सुबह सुबह चालू हो गए.....
.
जैसे ही हमने अपनी मित्र को
हाई हेल्लो बोला, और पूछा
आज इतनी सुबह, इतनी जल्दी
नेट पर कैसे नजर आ रही हो,
रात भर नींद नहीं आई ?
उन्होंने तुरंत दी सफाई ,
मेल देखने थी आई !
हमने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा
हाँ हाँ , ठीक हे, हमने कब कहा
कि हमें देखने हो आई !
बैसे हम काफी दिनों के बाद
चाट पर उनसे रु-बा-रु हो रहे थे!
उन्होंने तपाक से दिया रिप्लाई
क्या हे, तुम भी न! (कितनी मिठास हे इन शब्दों मैं)
सुबह सुबह चालू हो गए,
हमने तुरंत उनकी बात को पकड़ा
और कहा आज तो आप एक दम
से पोजिटिव हो रहे हो,
फिर बोला कोई नहीं, आफ्टर नून ही सही
हम बाद में चालू हो लेंगे,
बस आपको सहूलियत होनी चाहिए!
टाइम आपके एक्कोर्डिंग ही रहेगा,
इतना कहते ही उन्होंने
ग्राफिकली अपनी आँखे तरेरी
और फिर धीरे से कहा "चुप्प"
फिर कई सारी स्माइली(मुस्कान)
एक साथ ही चेप दी,
और कहा बाद में मिलती हूँ!
हमें कह ओके डियर , इट्स ओके
सी यू देन! हेव अ वोंड़ेर्फुल डे अहेड!
जैसे ही हमने अपनी मित्र को
हाई हेल्लो बोला, और पूछा
आज इतनी सुबह, इतनी जल्दी
नेट पर कैसे नजर आ रही हो,
रात भर नींद नहीं आई ?
उन्होंने तुरंत दी सफाई ,
मेल देखने थी आई !
हमने मन ही मन मुस्कराते हुए कहा
हाँ हाँ , ठीक हे, हमने कब कहा
कि हमें देखने हो आई !
बैसे हम काफी दिनों के बाद
चाट पर उनसे रु-बा-रु हो रहे थे!
उन्होंने तपाक से दिया रिप्लाई
क्या हे, तुम भी न! (कितनी मिठास हे इन शब्दों मैं)
सुबह सुबह चालू हो गए,
हमने तुरंत उनकी बात को पकड़ा
और कहा आज तो आप एक दम
से पोजिटिव हो रहे हो,
फिर बोला कोई नहीं, आफ्टर नून ही सही
हम बाद में चालू हो लेंगे,
बस आपको सहूलियत होनी चाहिए!
टाइम आपके एक्कोर्डिंग ही रहेगा,
इतना कहते ही उन्होंने
ग्राफिकली अपनी आँखे तरेरी
और फिर धीरे से कहा "चुप्प"
फिर कई सारी स्माइली(मुस्कान)
एक साथ ही चेप दी,
और कहा बाद में मिलती हूँ!
हमें कह ओके डियर , इट्स ओके
सी यू देन! हेव अ वोंड़ेर्फुल डे अहेड!
Tuesday, March 15, 2011
बाकि कि किधर...................
"अहम्" किस बात का
ये शब्द कुछ तथा-कथित
बुधि-जीवी लोगो द्वारा अकसर ही
कहते या बखानते सुना
जाता हे!
लेकिन खुद के "मैं"
में डूबी हुई उनकी "अहम्"
कि परिभाषा,
सब कुछ साफ़ कर देती हे
और दिखा देती हे हकीकत
का आइना!
उठी हुई वो इक ऊँगली
दूसरों कि तरफ,
बाकि कि किधर!
ये शब्द कुछ तथा-कथित
बुधि-जीवी लोगो द्वारा अकसर ही
कहते या बखानते सुना
जाता हे!
लेकिन खुद के "मैं"
में डूबी हुई उनकी "अहम्"
कि परिभाषा,
सब कुछ साफ़ कर देती हे
और दिखा देती हे हकीकत
का आइना!
उठी हुई वो इक ऊँगली
दूसरों कि तरफ,
बाकि कि किधर!
Thursday, March 10, 2011
मुल्ला जी का भ्रम...............
यूँ तो मुल्ला जी को भ्रम में जीने कि आदत पड़ चुकी थी, और ये भी एक प्रकार का गंभीर रोग होता हे| लेकिन आदत से मजबूर मुल्ला जी हर वक्त किसी न किसी कि चुस्की लेने के चक्कर में रहते थे! अब जैसे उस दिन उस तथा कथित महिला कि औकात बता दी! बस यही पंगा पा लिया मुल्ला जी ने, यूँ समझो कि अपनी कब्र खोद ली! जबसे मुल्ला जी ने उस महिला कि औकात ५ रूपये बताई, तभी से वो मुल्ला जी कि फिराक में रहने लगी, कि इस मुल्ला के बच्चे को बिना मुहर्रम के रोजे न रखवा दिए तो मेरा भी नाम नही!
और इत्तेफाक से वो दिन आ ही पहुंचा, एक दिन पैठ के बाजार में दोनों का आमना सामना हो गया, उस दिन वो महिला बुर्के में थी,. और उस दिन मुल्ला जी का अंदाज़ निराला था, झक सफ़ेद कुरता -पैजामा, जालीदार टोपी, आँखों में बरेली के मियां जी का सुरमा, मुह में खुशबूदार तम्बाकू वाला पान, हाथ में गिफ्टेड घडी और इत्र बगैरा लगा कर मुल्ला जी मस्त अंदाज में बाज़ार में घूम रहे थे! अब महिला ने मुल्ला जी को देखा, उनके पास ही एक फड बाले के पास जाकर अपनी हील कि सेंडिल से मुल्ला जी का पांव जोर से कुचल दिया! मुल्ला जी जोरों का चिल्लाये, गोया उनको तपती दोपहरी में ही ईद का चाँद नज़र आ गया! उई उई करते हुए मुल्ला उस बुर्के वाली पर सीधे हो लिए, और कहने लगे,. मोह्तिर्मा ये क्या मजाक हे, आपको दीखता नही क्या? कितनी बेरहमी से आपने हमारा पांव कुचला हे!, महिला बुर्के के अंदर जोरो का मुस्कराई, और बोली मियां दीखते तो जवान हो, और इतना भी झटका नही झेल सके! अब मुल्ला थोडा भरमाये, उम्र पचपन कि और दिल बचपन का! महिला के जवान कहते ही मुल्ला कि तीसरी आँख फाड़फाड़ाइ, सोचने लगे बात में दम हे, कहने लगे अब कहाँ वो बात मोह्तिर्मा, (मुल्ला जी का दर्द महिला के चाशनी में डूबे शब्दों में कही खो गया!) जो पहले थी! महिला ने मुल्ला जी को उकसाया, क्यूँ अब चूक गए क्या आप? मुल्ला बोले, नही ऐसी बात तो नही है| तो फिर क्या बात हे, बात तो कुछ भी नही, मुल्ला ने इंटरेस्ट लेते हुए कहा! .
तो फिर चले, महिला के इतना कहते ही, मुल्ला जी को चककर आने लगे, लेकिन मुल्ला जी ने तुरंत ही अपने आप को संभाला, और बोले कहाँ चलना है, महिला बोली आपको आम खाने से मतलब..., मुल्ला जी ने उसको बीच में ही टोका, ठीक है मोह्तिर्मा जी, जहाँ आप कहे हम चलने को तईयार हैं, दोनों ने एक रिक्शा किया और महिला ने रिक्शा वाले के कान में से धीरे से कुछ कहा, थोड़ी ही देर बाद रिक्शा एक थाने के सामने रुका!
जब तक मुल्ला को कुछ समझ आता महिला ने जोरो से चिल्लाना शुरू कर दिया, कि ये आदमी मुझे छेड़ रहा हे, तब थाने में बैठा दीवान बाहर आया, और दोनो को पकड़ कर अंदर ले गया, फिर महिला से पूछा कि क्या बात हुई, महिला ने सीधे सीधे मुल्ला जी पर छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया, अब मुल्ला जी कि हालत ऐसी कि पूछोमत, मियां जी नमाज़ छुड़ाने चले थे कि रोजे गले पड़ गए! दीवान जी ने मुल्ला जी को आड़े हाथों लिया, और बोला,क्यूँ मियां जी शक्ल से तो शरीफ लगते हो, लेकिन हरकते बहुत ही नीच हैं तुम्हारी, अब मुल्ला जी हकबकाए करे तो करे क्या, मुल्ला जी कि हालत ईद के बकरे कि माफिक, मिमयाने लगे मुल्ला जी, कहने लगे दीवान जी बात वो नही जो आप समझ रहे हैं, हमने इनको नही छेड़ा है, बल्कि इन्होने खुद ही हमें अपने साथ चलने को कहा! दीवान बोला अच्छा एक तो गन्दी हरकत करते हो ऊपर से सीनाजोरी भी, अभी अंदर कर दूँगा तो बात समझ में आएगी, अब मुल्ला जी कि हालत पतली, अंदर होने के नाम से! ....
बोले नही दीवान जी ऐसा मत करना, कसम मुल्लियाइन और उसके पोन् दर्ज़न बच्चों कि, आगे से ऐसी हरकत नही होगी, दीवान जी बोले एक ही शर्त पर छूट सकते हो, कुछ माल-ताल है जेब में, या यूँ ही मजनू बने घूम रहे हो!, मुल्ला ने हड़बड़ी में कुर्ते कि जेब में हाथ डाला, तो हाथ आर-पार हो गया, मुल्ला ने सोचा आज मुसीबत के वक्त ये जेब भी धोखा दे गई! अब मुल्ला जी से न रोते बने न हँसते! दीवान ने पूछा क्या हुआ, मुल्ला जी ये शक्ल पर १२ क्यूँ बज रहे हैं!, पैसे नही है न जेब में, इसका मतलब तुम यहाँ बाजार करने नही, लड़किओं को ही छेड़ने आये थे! मुल्ला जी बोले हुजूर माय बाप, कुछ कीजिये, तभी दीवान जी कि नज़र मुल्ला जी कि गिफ्टेड इम्पोर्टेड घडी पर पढ़ी, बोला कोई बात नही, पैसे नही है, तो ये घडी ही सही! मरता क्या न करता, मुल्ला जी को वो घडी देकर ही अपनी जान छुडानी पढ़ी! और मुल्ला यही रटते हुए घर को आये कि जान बची तो लाखों पाए, लौट के मुल्ला घर को आये!....
Monday, March 7, 2011
गलत फेह्मी का भी कोई इलाज होता है.?.
.एक दिन शर्मा जी कही जा रहे थे, दूसरी तरफ से आते हुए उनके एक परिचित मिल गए, उन्होंने स्वभिक्तावश पूछ लिया, शर्मा जी कहाँ जा रहे हो, शर्मा जी थोडा अकड़े, की चलो भाई किसी ने तो पूछा और उस अकड को दर्शाते हुए बोले, क्यूँ तुम्हे नही पता कि मैं कहाँ जा रहा हूँ! ये रास्ता कहा जाता है, बाज़ार को जाता है न, फिर भी बेवकूफों की तरह पूछते हो की कहाँ जा रहे हो! अब परिचित थोडा अचंभित हुआ, ये शर्मा जी को क्या हुआ, मेने तो यूँ ही पूछ लिया और ये पता नही क्यूँ सीधे हो रहे हैं मुझ पर! लगता है की शर्मा जी का किसे से झगडा हुआ है, तभी इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं! उसने फिर हिम्मत बटोरी और बोला, शर्मा जी आप कह तो ठीक रहे हैं, लेकि ये रास्ता बाज़ार में होकर तो बंद नही हो जाता, बाज़ार पार करने के बाद आपके परम मित्र चौबे जी के भी तो मकान पड़ता है न, हो सकता हे आप बही जा रहे हो!अब शर्मा जी बोले तो क्या बोले, लेकिन कहते हैं न की आदत जाती नही, बोले तुम्हे कुछ पता नही, मुझे देखों मैं इंसान की चाल से उसका गंतव्य बता सकता हूँ, और एक तुम हो की कुछ पता ही नही, यूँ ही उलटे-सीधे सवाल करते हो, की अफ़सोस होता है की तुम मेरे मित्र हो! मेरी तरह सोचा करो, और अगर सही नही सोच सकते तो, टोका मत करो! इतना कहकर शर्मा जी आगे बढ़ गए!
लेकिन शर्मा जी ने एक बात मन में सोची, की यार वो कह तो ठीक ही रहा था, की बाज़ार से आगे चौवे जी का माकन है, चलो इसी बहाने उनसे भी मुलाकात करता चलूँगाi सो शर्मा जी ने चौबे जी का दरवाजा खटखटाया, चौबे जी ने शर्मा जी की देखते ही, एक जबरदस्ती की मुस्कराहट अपने चेहरे पर सजाई, और मन ही मन सोच की आज एक चाय का कूणडा हो गया, मरते क्या न करते, अथिति देवो-भवो की तर्ज पर शर्मा जी का बेमन से स्वागत किया! उन्हें बिठाया, फिर हाल- चाल लिए, और बोले क्या लोगे! शर्मा जीने कुछ न लेने का नाटक करते हुए कहा कि यार बस तेरी यद् आ रही थी तो सोचा कि मिलता चलूँ, और बैठते हुए अपने कुर्ते कि जेब में हाथ डालने लगे, चौबे जी ने उत्सुक्ताबश पूछ लिया, शर्मा जी आज क्या निकल रहे हो जेब से, और बस शर्मा जी को तो जैसे उनके मन माफिक सवाल मिल गया, बोले चौबे तू बता क्या हो सकता है मेरी जेब में, चौबे जी बोले यार क्या होगा तेरी जेब में, ५०२ पताका बीडी का बण्डल, और माचिस तो तू रखता ही नही,
अभी मेरे से मांगेगा! शर्मा जी बोले चौबे तू रहेगा बही का बही, थोडा दिमाग लड़ा, चौबे जी बोले रहने दे पंडत (चौबे जी प्यार से शर्मा जी को इसी नाम से बुलाते थे), मुझे पता हे तेरी जेब में इसके अलावा और कुछ हो ही नही सकता! फिर शर्मा जी ने हँसते हुए अपनी जेब से "छिपकली छाप "तम्बाकू कि पुडिया निकली, और बोले चौबे देख तू गलत हे न, ५०२ पताका बीडी नही है न, लेकिन चौबे जी भी कम नही थे, बोले पंडत रहने दे, ज्यादा होशियारी न झाडा कर, अबे पंडत बीडी का बण्डल हो या तम्बाकू कि पुडिया, बात तो एक ही है न, दोनों ही में तम्बाकू होता जो सेहत के लिए हानिकारक होता ! अब शर्मा जी चुप, कोई जवाब हो तो कुछ कहे, फिर बड़ी बेशर्मी से अपनी खींसे निपोर दिए, इतने चाय आ गयी, शर्मा जी ने जल्दी से चाय गुटकी, और पतली गली से निकलते बने! पता नही शर्मा जी को किस बात का मुगालता था, वो अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नही थे, उनका हाल कुछ ऐसा ही था, जैसे कि कुऐं का मेढक, जब भी वो टरर टरर करता तो उसकी आवाज बापिस ही उसके कानो में बहुत जोरो कि गूंजती, और वो यही समझता कि एक वो ही है इस दुनिया में, मजाल है किसी कि कोई उसे चुनौती दे!
गलत फेह्मी का भी कोई इलाज होता है!...
लेकिन शर्मा जी ने एक बात मन में सोची, की यार वो कह तो ठीक ही रहा था, की बाज़ार से आगे चौवे जी का माकन है, चलो इसी बहाने उनसे भी मुलाकात करता चलूँगाi सो शर्मा जी ने चौबे जी का दरवाजा खटखटाया, चौबे जी ने शर्मा जी की देखते ही, एक जबरदस्ती की मुस्कराहट अपने चेहरे पर सजाई, और मन ही मन सोच की आज एक चाय का कूणडा हो गया, मरते क्या न करते, अथिति देवो-भवो की तर्ज पर शर्मा जी का बेमन से स्वागत किया! उन्हें बिठाया, फिर हाल- चाल लिए, और बोले क्या लोगे! शर्मा जीने कुछ न लेने का नाटक करते हुए कहा कि यार बस तेरी यद् आ रही थी तो सोचा कि मिलता चलूँ, और बैठते हुए अपने कुर्ते कि जेब में हाथ डालने लगे, चौबे जी ने उत्सुक्ताबश पूछ लिया, शर्मा जी आज क्या निकल रहे हो जेब से, और बस शर्मा जी को तो जैसे उनके मन माफिक सवाल मिल गया, बोले चौबे तू बता क्या हो सकता है मेरी जेब में, चौबे जी बोले यार क्या होगा तेरी जेब में, ५०२ पताका बीडी का बण्डल, और माचिस तो तू रखता ही नही,
अभी मेरे से मांगेगा! शर्मा जी बोले चौबे तू रहेगा बही का बही, थोडा दिमाग लड़ा, चौबे जी बोले रहने दे पंडत (चौबे जी प्यार से शर्मा जी को इसी नाम से बुलाते थे), मुझे पता हे तेरी जेब में इसके अलावा और कुछ हो ही नही सकता! फिर शर्मा जी ने हँसते हुए अपनी जेब से "छिपकली छाप "तम्बाकू कि पुडिया निकली, और बोले चौबे देख तू गलत हे न, ५०२ पताका बीडी नही है न, लेकिन चौबे जी भी कम नही थे, बोले पंडत रहने दे, ज्यादा होशियारी न झाडा कर, अबे पंडत बीडी का बण्डल हो या तम्बाकू कि पुडिया, बात तो एक ही है न, दोनों ही में तम्बाकू होता जो सेहत के लिए हानिकारक होता ! अब शर्मा जी चुप, कोई जवाब हो तो कुछ कहे, फिर बड़ी बेशर्मी से अपनी खींसे निपोर दिए, इतने चाय आ गयी, शर्मा जी ने जल्दी से चाय गुटकी, और पतली गली से निकलते बने! पता नही शर्मा जी को किस बात का मुगालता था, वो अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नही थे, उनका हाल कुछ ऐसा ही था, जैसे कि कुऐं का मेढक, जब भी वो टरर टरर करता तो उसकी आवाज बापिस ही उसके कानो में बहुत जोरो कि गूंजती, और वो यही समझता कि एक वो ही है इस दुनिया में, मजाल है किसी कि कोई उसे चुनौती दे!
गलत फेह्मी का भी कोई इलाज होता है!...
Wednesday, March 2, 2011
बजट का खेल
अजीब हे ये बजट का झमेला
मदारी कि तरह हे इसका थैला
जो अन्दर डालकर डंडा हिलाता है
ख़ाली हाथ में पैसा आ जाता है!
जब भी ये बजट का एपिसोड आता है
मुझे हमेशा ही वो मदारी याद आता है
वो तमाशा दिखाकर लोगो कि जेबे ख़ाली करता
और ये घोषणाओं के नाम पर सरकारी खज़ाना!
योजनाओं-परियोजनाओ कि घोषणाएँ खूब होती हैं
उनके हिस्से का पैसा आवंटित कर दिया जाता है
बाद में ये नेताओं/ अफसरों में बाँट लिया जाता है
इस तरह से योजनाओ का किर्यांवन कियाजाता है!
शिक्षा का बजट इस बार ४०% बढ़ा दिया गया
महकमे से सम्बंधित लोगो को रुला दिया गया
शायद इधर भीड़ कुछ ज्यादा हे लूटने वालों कि
कह रहे हैं ,इसे बढ़ाकर हमारा क्या भला किया गया!
सरकारी स्कूल आज भी पेड़ों के नीचे चलरहे हैं
जो ईमारत बनी भी हैं, उसमे जानवर चर रहे हैं
कही दिवार नही है, तो कही छत चु/गिर रही है
सरकार आज भी सर्व-शिक्षा अभियान को लेकर चलरही है!
लूट-तंत्र का ये खेल काफी पुराना है
इसमें पक्ष-विपक्ष दोनों का ही नजराना है
मिलाकर कोई ५५० अभिनेता(नेता), औए अशंख्ये अफसर
१२० करोर का भाग्य बनाते हैं
जनता को बिना लेन्स के चश्मे से
उनका भविष्य दिखलाते हैं!
जनता तो बेचारी हे, ये उसकी लाचारी है
ये नेता और अफसर इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं
इस भोली जनता-जनार्दन कि नब्ज अच्छी से पहचानते हैं
उन्हें पता हे ये रोयेंगे और चिल्लायेंगे
इनके पास दूसरा कोई उपाए नही है
लौटकर हमारे ही तो पास आयेंगे
और हम फिर से इनका बैंड बजायेंगे!
मदारी कि तरह हे इसका थैला
जो अन्दर डालकर डंडा हिलाता है
ख़ाली हाथ में पैसा आ जाता है!
जब भी ये बजट का एपिसोड आता है
मुझे हमेशा ही वो मदारी याद आता है
वो तमाशा दिखाकर लोगो कि जेबे ख़ाली करता
और ये घोषणाओं के नाम पर सरकारी खज़ाना!
योजनाओं-परियोजनाओ कि घोषणाएँ खूब होती हैं
उनके हिस्से का पैसा आवंटित कर दिया जाता है
बाद में ये नेताओं/ अफसरों में बाँट लिया जाता है
इस तरह से योजनाओ का किर्यांवन कियाजाता है!
शिक्षा का बजट इस बार ४०% बढ़ा दिया गया
महकमे से सम्बंधित लोगो को रुला दिया गया
शायद इधर भीड़ कुछ ज्यादा हे लूटने वालों कि
कह रहे हैं ,इसे बढ़ाकर हमारा क्या भला किया गया!
सरकारी स्कूल आज भी पेड़ों के नीचे चलरहे हैं
जो ईमारत बनी भी हैं, उसमे जानवर चर रहे हैं
कही दिवार नही है, तो कही छत चु/गिर रही है
सरकार आज भी सर्व-शिक्षा अभियान को लेकर चलरही है!
लूट-तंत्र का ये खेल काफी पुराना है
इसमें पक्ष-विपक्ष दोनों का ही नजराना है
मिलाकर कोई ५५० अभिनेता(नेता), औए अशंख्ये अफसर
१२० करोर का भाग्य बनाते हैं
जनता को बिना लेन्स के चश्मे से
उनका भविष्य दिखलाते हैं!
जनता तो बेचारी हे, ये उसकी लाचारी है
ये नेता और अफसर इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं
इस भोली जनता-जनार्दन कि नब्ज अच्छी से पहचानते हैं
उन्हें पता हे ये रोयेंगे और चिल्लायेंगे
इनके पास दूसरा कोई उपाए नही है
लौटकर हमारे ही तो पास आयेंगे
और हम फिर से इनका बैंड बजायेंगे!
Saturday, February 26, 2011
हर किसी को मयस्सर नही..........
वो रहे हैं जो लोग कांटे , तुम्हारे रास्तों पर
उनको भी इक दिन, इस राह से गुजरना होगा,
वक़्त थम सा गया हे कुछ पल के लिए ही सही
यूँ हर अन्धकार के बाद तो उजाला ही होगा,
ये दस्तूरे दुनिया है, जिसे तुम बदल नही सकते
हर शख्श को इन हालातों से लड़ना ही होगा,
कौन कहता हे कि मंजिले आसानी से मिलती हैं
मिलने वालों से पूछो,फासला तो मुश्किल होगा,
हर किसी को मयस्सर नही ये आसान जिदंगी
हसीन बनाने के लिए कुछ तो कर गुजरना होगा,
फकत अपनी ख़ुशी के लिए, बुझाते हैं चिराग औरों का
क्या उनके अँधेरे से इनके घर में उजाला होगा,
जिदगी खुद भी तो एक इम्तिहान है ए मेरे दोस्त
पास हो जाये तो समझो, कितना खुशकिस्मत होगा,
क्यूँ नही समझती ये जालिम दुनिया
कि आज वक़्त तेरा, तो कल उसकी नज़र होगा,
जो वक़्त रहते संभल जाये तो क्या कहना
हर कोई हर किसी का हम निवाला होगा,
ये तो मन का बहम है जो ये सोचते हैं "गौरव"
उजाड़कर आशियाना किसी का, कोई चैन से सोया होगा
उनको भी इक दिन, इस राह से गुजरना होगा,
वक़्त थम सा गया हे कुछ पल के लिए ही सही
यूँ हर अन्धकार के बाद तो उजाला ही होगा,
ये दस्तूरे दुनिया है, जिसे तुम बदल नही सकते
हर शख्श को इन हालातों से लड़ना ही होगा,
कौन कहता हे कि मंजिले आसानी से मिलती हैं
मिलने वालों से पूछो,फासला तो मुश्किल होगा,
हर किसी को मयस्सर नही ये आसान जिदंगी
हसीन बनाने के लिए कुछ तो कर गुजरना होगा,
फकत अपनी ख़ुशी के लिए, बुझाते हैं चिराग औरों का
क्या उनके अँधेरे से इनके घर में उजाला होगा,
जिदगी खुद भी तो एक इम्तिहान है ए मेरे दोस्त
पास हो जाये तो समझो, कितना खुशकिस्मत होगा,
क्यूँ नही समझती ये जालिम दुनिया
कि आज वक़्त तेरा, तो कल उसकी नज़र होगा,
जो वक़्त रहते संभल जाये तो क्या कहना
हर कोई हर किसी का हम निवाला होगा,
ये तो मन का बहम है जो ये सोचते हैं "गौरव"
उजाड़कर आशियाना किसी का, कोई चैन से सोया होगा
Wednesday, February 16, 2011
मेरा बेटा हे जापानी.....
..
जब माँ कहती हे कि अपनी पुत्र-बधू के लिए, कि इसने आते ही मेरे बेटे को मुझसे दूर कर दिया
तो उसी सन्दर्भ में कुछ कहने कि कोशिश......
मेरा बेटा हे जापानी,
ये बहु इंगलिश्तानी
सर पे लाल चोटी रुसी
हरकत इसकी पाकिस्तानी..
मेरा बेटा हे जापानी...
बेटा हुआ दीवाना बीवी का
माँ बैठी आंसू बहाए,
बैठी आंसू बहाए....
कोसती रहती दिन भर बहु को
दिल को चैन न आये
दिल को चैन न आये!
छीन लिया मेरा बेटा
कैसी है ये बहु कुलटा
शर्म नही जरा सी भी
आँख ये है मुझे दिखाए!
कितना अंध विश्वाश बेटे पर
दोष सारा बहू के माथे पर
भूल के रिश्ते सारे ये बेटा
हे ये दूध माँ का लजाये
दूध माँ का लजाये!
क्यूँ नही समझती माँ ये भोली
अकेली बहू नही हे दोषी
तेरा बेटा भी उतना ही दोषी
फिर क्यूँ बहू को तू है सुनाये
तो उसी सन्दर्भ में कुछ कहने कि कोशिश......
मेरा बेटा हे जापानी,
ये बहु इंगलिश्तानी
सर पे लाल चोटी रुसी
हरकत इसकी पाकिस्तानी..
मेरा बेटा हे जापानी...
बेटा हुआ दीवाना बीवी का
माँ बैठी आंसू बहाए,
बैठी आंसू बहाए....
कोसती रहती दिन भर बहु को
दिल को चैन न आये
दिल को चैन न आये!
छीन लिया मेरा बेटा
कैसी है ये बहु कुलटा
शर्म नही जरा सी भी
आँख ये है मुझे दिखाए!
कितना अंध विश्वाश बेटे पर
दोष सारा बहू के माथे पर
भूल के रिश्ते सारे ये बेटा
हे ये दूध माँ का लजाये
दूध माँ का लजाये!
क्यूँ नही समझती माँ ये भोली
अकेली बहू नही हे दोषी
तेरा बेटा भी उतना ही दोषी
फिर क्यूँ बहू को तू है सुनाये
Monday, February 7, 2011
कहाँ जाते हो रुक........
कहाँ जाते हो रुक जाओ
तुम्हे कम्युनिटी कि कसम देखो
बिना पोलिटिक्स न रह पाओगे
जाकर इक कदम देखो,
बनाये रिश्ते लाखों तो क्या
निभा इक भी न पाए तुम
दिखावा इतना किया जालिम
कि अब पछताते क्यूँ हो तुम,
मुंह में रखते हो तुम "रामा"
बगल मैं छुरी देखो पैनी
बहाया खून रिश्तों का
कि आत्मा भी हुई छलनी,
क्यूँकर ऐसा किया तुमने
ये तुमको भी शायद पता न हो
वक़्त रहते जो समझ जाते
फिर क्यूँ किस से खता ये हो,
अब जो हुआ सो हो चूका
सुधरकर तुम संभल जाओ
इल्तजा इतनी सी हे जानम
तुम बापिस लौटकर आओ!
Friday, February 4, 2011
कुछ कुंडलिया -एक कोशिश
चेहरा रोज बदल कर, मचा रहे हैं शोर
दुनिया थू-थू कर रही, मन में इनके चोर,
मन में इनके चोर, खींचे किसकी ये टंगिया
ऐसा जोता हल , कि उजड़ गयी सारी बगिया,
उजड़ गयी सारी बगिया, बने फिर अनजान
अच्छे खासे चमन को, बना दिया शमशान.
बना दिया शमशान ,बहाए घडियाली आंसू
घर में पिटते रोज, इनको याद आये सासू,
कह बाबा "गौरव" ,न दूजा कोई उपाए
जूते मारो १०० इनको, दो उल्टा लटकाए,
दो उल्टा लटकाए, कि तबियत हरी हो जाये
जिदंगी में फिर न, कभी ये ऐसा कदम उठाएं !!
Wednesday, February 2, 2011
"बस ये मत पूछना कि क्यूँ लिखा"
जाने वाला तो चला गया
वो किसी ने नही पूछा
क्यूँ चला गया, क्या हुआ ऐसा!
हाँ कई कविताएँ जरूर लिख दी
अपनी अपनी समझ के साथ
कोई कहता कि गाँधी जी के
बाद भी देश चल रहा हे
कोई न जाने कहा से किसी कि
लिखी हुई कविता पोस्ट कर
'अपनी भड़ास निकल रहा हे
अरे इतनी ऊर्जा ये जानने में
लगायी होती कि वो क्यूँ गया
तो न बात बनती!
जाने वाले को भी लगता कि
उसके चाहने वाले भी हैं यहाँ
लेकिन नही,
अपनी ढपली अपना राग,
अलापते रहो, भाई लोगो
अरे घरों में मौत भी होती हे
लोग रोते-बिलखते हैं
कुछ दिन ऐसा ही रहता हे
फिर जिन्दगी बापिस पटरी पर
लौटने लगती हे!
धीरे धीरे सब सामान्य हो जाता हे!
फिर क्यूँ ये कविताएँ लिखी जा रही हे
उसी बात को लेकर, जाने वाला ये
सोच कर नही गया, कि
उसकें जाने के बाद
ये होगा या वो होगा,
ऐसा कोई भी नही सोचता
उसकी ख़ामोशी को ,
उसकी कमजोरी न समझो,
वो चला गया , उसको जाने दो
क्यूँ इतना चर्चा, इस जाने जहाँ मैं
किसलिए, किसके लिए!
अब बस भी करो, बहुत हो चूका!
Wednesday, January 19, 2011
दीवारों के भी कान होते हैं
!
कितना आसान होता हे
कह देना कि दीवारों
के भी कान होते हैं,
इतना कमजोर कब से
हो गया ये आज का इंसान
जिसे खुद पर नही हे
जरा सा भी इत्मिनान
कि अपनी गुस्ताखिओं
का जिम्मा, फोड़ देता हे
एक बेजान दिवार का
सहारा लेकर !
और कह देता है कि
दीवारों के भी कान होते हैं!
गनीमत हे कि उसने
ये कभी नही कहा
कि दीवारों कि
भी जुबान होती हे
कह देना कि दीवारों
के भी कान होते हैं,
इतना कमजोर कब से
हो गया ये आज का इंसान
जिसे खुद पर नही हे
जरा सा भी इत्मिनान
कि अपनी गुस्ताखिओं
का जिम्मा, फोड़ देता हे
एक बेजान दिवार का
सहारा लेकर !
और कह देता है कि
दीवारों के भी कान होते हैं!
गनीमत हे कि उसने
ये कभी नही कहा
कि दीवारों कि
भी जुबान होती हे
Monday, January 10, 2011
दूर के ढोल सुहावने होते हैं!
दूर के ढोल सुहावने होते हैं!
ये मुहावरा ९वि -१०वि कक्षा में पढ़ा था
लेकिन बचपना होने के कारण
मुझे इसका अर्थ समझ नही आता था
या कहो कि कोन्फ़ुइज हो जाता था
क्यूंकि जब भी कही ढोल बजते थे,
कानो मैं आवाज आते ही,
हम सब बच्चे, मोहल्ले के
शोर मचाते हुए वह पहुँच जाते थे
और ढोल के आवाज पर नाचते हुए
लोगो को देखकर, खूब हँसते थे,
तो अब आप बताइए कि
ढोल नजदीक से सुहावने हुए
या दूर से, !
लेकिन वो बचपना था
या कहो कि नासमझी
अब जवानी से होते हुए
अधेड्ता कि और कदम बढ़ा चूका
ये वक़्त, बकाई, उस समय के
पढ़े मुहावरों को कितनी चपलता
से उनका मतलव समझाता चला
जा रहा हे, आज के इस व्यावसायिक
समय में,
क्यूंकि बहुत सी चीजें
दूर से ही सुहावनी लगती हैं
और जैसे ही आप उनके नजदीक
आते हैं, तो हकीकत कि पोल
आपके सारे भ्रम तोड़ देती हैं
और आपको उस वक़्त पढ़े हुए
मुहावरे का वास्तविक और यथार्थ
के धरातल पर परखा हुआ
प्रमाणिक सच सामने आ जाता हे
फिर हम सोचने लगते हैं
कि काश वो बचपना फिर से
आ जाये! और इस मुहावरे को
फिर से गलत सवित करे!
ये मुहावरा ९वि -१०वि कक्षा में पढ़ा था
लेकिन बचपना होने के कारण
मुझे इसका अर्थ समझ नही आता था
या कहो कि कोन्फ़ुइज हो जाता था
क्यूंकि जब भी कही ढोल बजते थे,
कानो मैं आवाज आते ही,
हम सब बच्चे, मोहल्ले के
शोर मचाते हुए वह पहुँच जाते थे
और ढोल के आवाज पर नाचते हुए
लोगो को देखकर, खूब हँसते थे,
तो अब आप बताइए कि
ढोल नजदीक से सुहावने हुए
या दूर से, !
लेकिन वो बचपना था
या कहो कि नासमझी
अब जवानी से होते हुए
अधेड्ता कि और कदम बढ़ा चूका
ये वक़्त, बकाई, उस समय के
पढ़े मुहावरों को कितनी चपलता
से उनका मतलव समझाता चला
जा रहा हे, आज के इस व्यावसायिक
समय में,
क्यूंकि बहुत सी चीजें
दूर से ही सुहावनी लगती हैं
और जैसे ही आप उनके नजदीक
आते हैं, तो हकीकत कि पोल
आपके सारे भ्रम तोड़ देती हैं
और आपको उस वक़्त पढ़े हुए
मुहावरे का वास्तविक और यथार्थ
के धरातल पर परखा हुआ
प्रमाणिक सच सामने आ जाता हे
फिर हम सोचने लगते हैं
कि काश वो बचपना फिर से
आ जाये! और इस मुहावरे को
फिर से गलत सवित करे!
Friday, January 7, 2011
आज का इंसान
आज का इंसान
इस कद्र है हैवान
सांप से भी
ज्यादा दंशवान
इंसान, मरता हे
सांप के काटने से,
लेकिन ये इंसान
इंसान के काटे बिना
ही, इंसान द्वारा ,
मार दिया जाता है,
सांप काटने से
पहले फुंफकारता है
लेकिन ये इंसान
चुपचाप, बिना फुफकारे
ही डस लेता हे,
जब तक समझ
में आता है!
तब तक उसका काम
तमाम हो जाता हे!
सांप तो अक्सर ही
केंचुली बदलता हे
लेकिन ये , इंसान
ओढ़े रहता हे
केंचुली पर केंचुली;
कैसे पहचानोगे
इस इंसान को
जिसकी खुद कि
खुद को नही होती हे
कोई पहचान!
इस कद्र है हैवान
सांप से भी
ज्यादा दंशवान
इंसान, मरता हे
सांप के काटने से,
लेकिन ये इंसान
इंसान के काटे बिना
ही, इंसान द्वारा ,
मार दिया जाता है,
सांप काटने से
पहले फुंफकारता है
लेकिन ये इंसान
चुपचाप, बिना फुफकारे
ही डस लेता हे,
जब तक समझ
में आता है!
तब तक उसका काम
तमाम हो जाता हे!
सांप तो अक्सर ही
केंचुली बदलता हे
लेकिन ये , इंसान
ओढ़े रहता हे
केंचुली पर केंचुली;
कैसे पहचानोगे
इस इंसान को
जिसकी खुद कि
खुद को नही होती हे
कोई पहचान!
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