हे न कुछ अजीब सा संबोधन
मगर हे ये सत्ये,
बात कुछ ऐसे ही चल रही थी
या कहे कि जुबान फिसल रही थी
बातों ही बातों में वो बोले
कुछ लिखने का मूड बना रहे हैं
हमने कहा हम भी ,मूड बनायेंगे
घर जाकर कुछ न कुछ पकाएंगे
सुरा पर तो अपना अधिकार हे
बिना सुन्दरी के मन बहलाएँगे!
वो बात को तुरंत ताड़ गए
बोले सुंदरी घर पर नही हे?
बात सुरा से शुरू होकर
सुन्दरी पर अटक गई
हमने कहा रोज दाल-रोटी
खाकर गुजारा करते हैं,
बोली आपका इशारा
हम समझ रहे हैं
लगता आप किसी मुर्गी
कि तलाश में भटक रहे हैं;
हमने मौके कि नजाकत को
तुरंत भांपा!
और अपना पासा तुरंत
मोह्तिर्मा पर फेंक डाला,
वो हमारी सोच से कही
ज्यादा, उस्ताद निकली,
और बोली, आपको
मटन -टिक्का, या चाहिए
चिक्केन चिली ?
आप रोंग नंबर डायल
कर रहे हैं,
यहाँ मुर्गी तो हे
मगर शाकाहारी हे
फिर क्यूँ आप गलत-फ़हमी में
पल रहे हैं!
उनके इस संबोधन से
हम पानी पानी हो गए
और उनकी इस अदा के
हम दीवाने हो गए!
हमने कहा हम इस
शाकाहारी मुर्गी को भी
पकाएंगे, मगर क्या पता था
कि बातों ही बातों में
ये कविता लिख जायेंगे!
Wednesday, December 29, 2010
Saturday, December 25, 2010
वर्चुअल मुलाकातें ........
मुझसे नाराज हे जिन्दगी,
हैरान हूँ मैं!
दिन , महीने , साल
यूँ गुजर गए,
पता ही नही चला!
रोज वर्चुअल मुलाकातें
ढेर सारी बातें,
कुछ काम कि, कुछ सिर्फ नाम कि
एक अंडरस्टेंडिंग सी हो गयी
और हम फोर्मल से हो गए
कब आप से,मैं और तुम हो गए
पता ही नही चला!
फिर एक दिन उन्हें एहसास हुआ
कि कुछ ज्यादा हो रहा हे,
वो बिफर गए, अचानक से
हमें आशचर्ये हुआ,
बोले अब बस, ज्यादा नही!
इतना ही ठीक हे,
हमने कहा न हम ज्यादा थे कभी
न कम थे,
बोले चुप रहो, जितना कहा
उतना समझो!
हमने कहा, हमें कुछ पल्ले नही पड़ा
आप कहना क्या कहते हो,
बोले तुम बाल कि खाल बहुत
निकालते हो;
हमने सोचा , यार ये ट्रैक पर
चलती हुई गड्डी, अचानक से
डी-रेल कैसे हो गयी !
हमें पूछा "कोई मिल गया"?
गुस्से से बिफरी वो,
फिर सोचा, यार ये
सुन्दर सपना टूट क्यूँ गया!
फिर हम बस यही गुनगुनाये......!
"हमने तो कोई कमी न कि थी
फिर भी न जाने क्यूँ उनको हमारा साथ, अखरा"
हैरान हूँ मैं!
दिन , महीने , साल
यूँ गुजर गए,
पता ही नही चला!
रोज वर्चुअल मुलाकातें
ढेर सारी बातें,
कुछ काम कि, कुछ सिर्फ नाम कि
एक अंडरस्टेंडिंग सी हो गयी
और हम फोर्मल से हो गए
कब आप से,मैं और तुम हो गए
पता ही नही चला!
फिर एक दिन उन्हें एहसास हुआ
कि कुछ ज्यादा हो रहा हे,
वो बिफर गए, अचानक से
हमें आशचर्ये हुआ,
बोले अब बस, ज्यादा नही!
इतना ही ठीक हे,
हमने कहा न हम ज्यादा थे कभी
न कम थे,
बोले चुप रहो, जितना कहा
उतना समझो!
हमने कहा, हमें कुछ पल्ले नही पड़ा
आप कहना क्या कहते हो,
बोले तुम बाल कि खाल बहुत
निकालते हो;
हमने सोचा , यार ये ट्रैक पर
चलती हुई गड्डी, अचानक से
डी-रेल कैसे हो गयी !
हमें पूछा "कोई मिल गया"?
गुस्से से बिफरी वो,
फिर सोचा, यार ये
सुन्दर सपना टूट क्यूँ गया!
फिर हम बस यही गुनगुनाये......!
"हमने तो कोई कमी न कि थी
फिर भी न जाने क्यूँ उनको हमारा साथ, अखरा"
Friday, December 10, 2010
मुझे आज भी याद है
हाँ मुझे याद हे
जब में पंजी/दस्सी (५ पैसे, १० पैसे)
ज्यादातर इस्तेमाल करता था
कभी कभी बिस्सी/चवन्नी (२० पैसे, २५ पैसे)
और अगर अठन्नी (५० पैसे)
मिल जाते, तो मैं शेर
हो जाया करता था,
रुपया कहा मिलता था तब
जेब खर्च के लिए!
तब रुपया नही मिलता था,
और अब रूपये कि
कीमत ही नही रही!
मुझे मलाल हे कि
मैं रुपया इस्तेमाल नही कर पाया!
बिटिया डैरेक्ट ही १० रूपये से
कम नही मांगती!
क्या वक़्त इतना बदल गया हे
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
में आना , इतना महगा हो गया हे
मुझे इसका एहसास नही था बिलकुल भी,
मुझे याद हे जब में ५ वी में पढता था
तो दश्हेरे के मेले में जब जाता था
तब मेरे पास २ रूपये होते थे
मालूम हे कैसे
आठ चवन्निया होती थी
जो में इकठ्ठी करता था
काफी दिन पहले से
मेले के लिए!
और अब तो मेले में जाने कि
हिम्मत ही नही होती!
बिटिया को भी शोक नही हे
कहती हे वहा जाओगे तो ज्यादा
खर्च होगा, आप मेरे को
टू हंड्रेड दे देना,
देखता हूँ कि आज रुपया
कितना छोटा हो गया,
अब बाजार थैला नही ले जाना पड़ता
पोलिथीन में ही काफी रूपये
समां जाते हैं!
भगवान् जाने आगे क्या होगा!
जब में पंजी/दस्सी (५ पैसे, १० पैसे)
ज्यादातर इस्तेमाल करता था
कभी कभी बिस्सी/चवन्नी (२० पैसे, २५ पैसे)
और अगर अठन्नी (५० पैसे)
मिल जाते, तो मैं शेर
हो जाया करता था,
रुपया कहा मिलता था तब
जेब खर्च के लिए!
तब रुपया नही मिलता था,
और अब रूपये कि
कीमत ही नही रही!
मुझे मलाल हे कि
मैं रुपया इस्तेमाल नही कर पाया!
बिटिया डैरेक्ट ही १० रूपये से
कम नही मांगती!
क्या वक़्त इतना बदल गया हे
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
में आना , इतना महगा हो गया हे
मुझे इसका एहसास नही था बिलकुल भी,
मुझे याद हे जब में ५ वी में पढता था
तो दश्हेरे के मेले में जब जाता था
तब मेरे पास २ रूपये होते थे
मालूम हे कैसे
आठ चवन्निया होती थी
जो में इकठ्ठी करता था
काफी दिन पहले से
मेले के लिए!
और अब तो मेले में जाने कि
हिम्मत ही नही होती!
बिटिया को भी शोक नही हे
कहती हे वहा जाओगे तो ज्यादा
खर्च होगा, आप मेरे को
टू हंड्रेड दे देना,
देखता हूँ कि आज रुपया
कितना छोटा हो गया,
अब बाजार थैला नही ले जाना पड़ता
पोलिथीन में ही काफी रूपये
समां जाते हैं!
भगवान् जाने आगे क्या होगा!
Wednesday, December 1, 2010
फासला ....
इक कदम तुम और इक कदम हम बढ़ाये
आओ अब हम कुछ इस तरह करीब आऐं
न हो फासला अब इक सांस का भी बाकि
मुद्दतों से हमने चाहतों के दीप हैं जलाये
आओ अब हम कुछ इस तरह करीब आऐं
न हो फासला अब इक सांस का भी बाकि
मुद्दतों से हमने चाहतों के दीप हैं जलाये
फासला ....
इक कदम तुम और इक कदम हम बढ़ाये
आओ अब हम कुछ इस तरह करीब आऐं
न हो फासला अब इक सांस का भी बाकि
मुद्दतों से हमने चाहतों के दीप हैं जलाये
आओ अब हम कुछ इस तरह करीब आऐं
न हो फासला अब इक सांस का भी बाकि
मुद्दतों से हमने चाहतों के दीप हैं जलाये
Sunday, November 21, 2010
गरीबों के लिए रोटी मांगता हूँ......
बस गरीबों के लिए रोटी मांगता हूँ
सुदामा के लिए श्री कृष्ण मांगता हूँ
जरुरत आज हे यहाँ तुम्हारी प्रभु
आज भूख से कितना त्रस्त हे मनुज
तोड़ दो प्रभु इन युगों के बंधन को
ऐसा वर मैं तुमसे आज मांगता हूँ
बस गरीबों के लिए रोटी मांगता हूँ
ये तंत्र अब कालातंत्र हो चूका हे
इंसानियत का इसकदर क्षरण हो चुका हे
मर चुकी हे आत्मा इन सभी कि
अब तो जीवन-मरण का प्रश्न हो चुका हे
नहीं भरते हैं पेट जिनके भरे हुए हैं
इस कद्र ये जमीन पर गिरे हुए हैं
नही दिखती भूख से तड़पती जिन्दगी
फिर भी ये गरीबो के रहनुमा बने हुए हैं
भर रहे हैं ये घर अपना दिनों-रात
नही सुनाई पड़ती इनको भूखो कि आवाज
बेशर्मी से कहते हैं कि गोदाम भरे हुए हैं
फिर भी वो लोग भूख से मर रहे हैं
जब किसी खून कि सजा फांसी हे यहाँ
फिर ये हत्यारे क्यूँ खुलेआम घूम रहे हैं
लटका दो इन हत्यारों को फांसी पर
मैं ऐसा ही कुछ कानून मांगता हूँ
बस गरीबों के लिए रोटी मांगता हूँ
सुदामा के लिए श्री कृष्ण मांगता हूँ
सुदामा के लिए श्री कृष्ण मांगता हूँ
जरुरत आज हे यहाँ तुम्हारी प्रभु
आज भूख से कितना त्रस्त हे मनुज
तोड़ दो प्रभु इन युगों के बंधन को
ऐसा वर मैं तुमसे आज मांगता हूँ
बस गरीबों के लिए रोटी मांगता हूँ
ये तंत्र अब कालातंत्र हो चूका हे
इंसानियत का इसकदर क्षरण हो चुका हे
मर चुकी हे आत्मा इन सभी कि
अब तो जीवन-मरण का प्रश्न हो चुका हे
नहीं भरते हैं पेट जिनके भरे हुए हैं
इस कद्र ये जमीन पर गिरे हुए हैं
नही दिखती भूख से तड़पती जिन्दगी
फिर भी ये गरीबो के रहनुमा बने हुए हैं
भर रहे हैं ये घर अपना दिनों-रात
नही सुनाई पड़ती इनको भूखो कि आवाज
बेशर्मी से कहते हैं कि गोदाम भरे हुए हैं
फिर भी वो लोग भूख से मर रहे हैं
जब किसी खून कि सजा फांसी हे यहाँ
फिर ये हत्यारे क्यूँ खुलेआम घूम रहे हैं
लटका दो इन हत्यारों को फांसी पर
मैं ऐसा ही कुछ कानून मांगता हूँ
बस गरीबों के लिए रोटी मांगता हूँ
सुदामा के लिए श्री कृष्ण मांगता हूँ
Thursday, November 18, 2010
ये नेट रिलेशन कि गड्डी यूँ ही...............
जैसे ही हमने मोहतिरमा जी को खटखटाया
उन्होंने फ़ौरन बेकफुट डिफेंसिव शोट खेला!
हाई; कैसे मालूम पड़ा कि में ऑनलाइन हूँ
हमने स्थिति को भांपा और अगली बाल
"दूसरा" बड़ी मासूमियत से फेंक डाला
हमें कहा इसमें कोई खास बात नही
कोई ओन हे या ऑफ हम पता लगा ही लेते हैं
बाय द वे क्या हाल-चाल हैं आपके
हमने झूठ कि कढ़ाई में एक छोंक
मारते हुए पूच्छा!
बहुत दिन बाद नजर आये
बैसे हमने उनको बहुत कम ऑफ लाइन
होते देखा था,
वो बेट-न-पेड क्लोस लाते हुए
हमारी गुगली के इफ्फेक्ट को कम करते
हुए बोली, हाँ आज कई दिन बाद ऑनलाइन हुई हूँ
टाइम ही नही मिलता,.
हमें तुरंत उनकी हाँ में हाँ मिलाई,
जी हाँ टाइम कहा हे आजकल किसी
के पास!
मोहतिरमा बहुत खुश हुई,
लेकिन वो ये नही जानती थी
कि अगर वो सारा दिन बेटिंग
कर सकती हैं तो हम भी
लेफ्ट-आर्म- रोउन्द द विक्केट
बौलिंग करते रहते हैं सारा दिन!
अब मोहतिरमा जी सोच रही थी कि
इससे कैसे छुटकारा पाया जाये!
तुरंत बोली, वेट कॉल हे
फिर बो वेट कॉल इतनी लम्बी होती हे
कि वो ख़त्म ही नही होती!
फिर एक ऑफ लाइन मेसेज
D.C. हो गया था!
मोहतिरमा जी ये सोच रही थी कि
हम उनका वेट कर रहे हैं,
उनको ये नही मालूम कि ये
रेलवे नेटवर्क नही हे, जब तलक
लाइन क्लेअर नही मिलेगी
गड्डी आगे नही बढती ,
अरे ये विर्चुअल नेटवर्क हैं
जिसे किसी सिग्नल कि या
क्लेअरेंस कि जरुरत नही पड़ती
लोगबाग अबाउट-टार्न होते देर नही लगाते
आपका स्टेशन बीजी तो किसी और स्टेशन पर
बढ़ जाते हैं!
सिलसिला यूँ ही चलता रहता हे
वेट और कॉल के चक्कर में
वेटिंग लिस्ट बहुत लम्बी होती जाती हे
और ये नेट रिलेशन कि गड्डी यूँ ही
आगे बढती जाती हे!
उन्होंने फ़ौरन बेकफुट डिफेंसिव शोट खेला!
हाई; कैसे मालूम पड़ा कि में ऑनलाइन हूँ
हमने स्थिति को भांपा और अगली बाल
"दूसरा" बड़ी मासूमियत से फेंक डाला
हमें कहा इसमें कोई खास बात नही
कोई ओन हे या ऑफ हम पता लगा ही लेते हैं
बाय द वे क्या हाल-चाल हैं आपके
हमने झूठ कि कढ़ाई में एक छोंक
मारते हुए पूच्छा!
बहुत दिन बाद नजर आये
बैसे हमने उनको बहुत कम ऑफ लाइन
होते देखा था,
वो बेट-न-पेड क्लोस लाते हुए
हमारी गुगली के इफ्फेक्ट को कम करते
हुए बोली, हाँ आज कई दिन बाद ऑनलाइन हुई हूँ
टाइम ही नही मिलता,.
हमें तुरंत उनकी हाँ में हाँ मिलाई,
जी हाँ टाइम कहा हे आजकल किसी
के पास!
मोहतिरमा बहुत खुश हुई,
लेकिन वो ये नही जानती थी
कि अगर वो सारा दिन बेटिंग
कर सकती हैं तो हम भी
लेफ्ट-आर्म- रोउन्द द विक्केट
बौलिंग करते रहते हैं सारा दिन!
अब मोहतिरमा जी सोच रही थी कि
इससे कैसे छुटकारा पाया जाये!
तुरंत बोली, वेट कॉल हे
फिर बो वेट कॉल इतनी लम्बी होती हे
कि वो ख़त्म ही नही होती!
फिर एक ऑफ लाइन मेसेज
D.C. हो गया था!
मोहतिरमा जी ये सोच रही थी कि
हम उनका वेट कर रहे हैं,
उनको ये नही मालूम कि ये
रेलवे नेटवर्क नही हे, जब तलक
लाइन क्लेअर नही मिलेगी
गड्डी आगे नही बढती ,
अरे ये विर्चुअल नेटवर्क हैं
जिसे किसी सिग्नल कि या
क्लेअरेंस कि जरुरत नही पड़ती
लोगबाग अबाउट-टार्न होते देर नही लगाते
आपका स्टेशन बीजी तो किसी और स्टेशन पर
बढ़ जाते हैं!
सिलसिला यूँ ही चलता रहता हे
वेट और कॉल के चक्कर में
वेटिंग लिस्ट बहुत लम्बी होती जाती हे
और ये नेट रिलेशन कि गड्डी यूँ ही
आगे बढती जाती हे!
Saturday, November 13, 2010
जिन्दगी और मौत का अंतर!.............
जिन्दगी !
एक उलझा हुआ प्रश्न;
मौत!
एक शाश्वत सत्ये!
इंसान !
जिन्दगी से मौत
तक का सफ़र
पूरा करने में लगा रहता हे,
बाबजूद इसके, कि उसको पता हे
मेरा अंत वही हे
फिर भी, जुटा हुआ हे,
बहुत कुछ पाने कि लालसा
समेटने कि चाह!
साम-दाम, दंड-भेद
जानता हे कि गलत हे
फिर भी सही ठहराता हे
अपने आप को धोखा
देते हुए,
आखिर में मौत को
गले लगाता हे!
ये चक्र चलता रहता हे,
कभी न ख़त्म होने वाला
सिलसिला,
कौन हारा, कौन जीता!
जिन्दगी बेरहम, बेनतीजा!
जन्म जन्मान्तर,युग युगांतर,
यही है जिन्दगी और मौत का
अंतर!
एक उलझा हुआ प्रश्न;
मौत!
एक शाश्वत सत्ये!
इंसान !
जिन्दगी से मौत
तक का सफ़र
पूरा करने में लगा रहता हे,
बाबजूद इसके, कि उसको पता हे
मेरा अंत वही हे
फिर भी, जुटा हुआ हे,
बहुत कुछ पाने कि लालसा
समेटने कि चाह!
साम-दाम, दंड-भेद
जानता हे कि गलत हे
फिर भी सही ठहराता हे
अपने आप को धोखा
देते हुए,
आखिर में मौत को
गले लगाता हे!
ये चक्र चलता रहता हे,
कभी न ख़त्म होने वाला
सिलसिला,
कौन हारा, कौन जीता!
जिन्दगी बेरहम, बेनतीजा!
जन्म जन्मान्तर,युग युगांतर,
यही है जिन्दगी और मौत का
अंतर!
Wednesday, November 10, 2010
एक कविता एक कोशिश...
दादा दादी, नाना नानी,
सबकी राजदुलारी बिटिया
मम्मी पापा , चाचा चाची
के आँखों कि ज्योति बिटिया
मामा बन हुआ बाबरा मन
गोद लिए घूमू इस उपबन
जब चहक उठती किलकारी इसकी
घर -आँगन कि खिलती बगिया
झूम उठता मन मयूर हे मेरा
मैं हूँ मामा, ये मेरी बिटिया
माँ माँ से बनता मामा है
जुग जुग जिए ये रानी बिटिया
दादा दादी, नाना नानी,
सबकी राजदुलारी बिटिया......
सबकी राजदुलारी बिटिया
मम्मी पापा , चाचा चाची
के आँखों कि ज्योति बिटिया
मामा बन हुआ बाबरा मन
गोद लिए घूमू इस उपबन
जब चहक उठती किलकारी इसकी
घर -आँगन कि खिलती बगिया
झूम उठता मन मयूर हे मेरा
मैं हूँ मामा, ये मेरी बिटिया
माँ माँ से बनता मामा है
जुग जुग जिए ये रानी बिटिया
दादा दादी, नाना नानी,
सबकी राजदुलारी बिटिया......
Tuesday, November 2, 2010
उनके घरों में भी उजाला हो.......
चेहरे कि चमक से जिस्म के जख्म छिपा नहीं करते
बनावटी फूलों से इस तरह चमन महका नहीं करते
लाख मुस्करा लो तुम भले ही ज़माने के सामने
दिलों में छिपे दर्द यूँ ही मिटा नही करते
खेलों में भी खेल, खेल गए मेरे ये रहनुमा
यूँ फकत रौशनी से ये अँधेरे मिटा नही करते
बात तो तब है उनके घरों में भी उजाला हो
यूँ अँधेरे में रख तुम्हारे दिल सहमा नही करते
ये कंगूरे देखकर क्यूँ इतराते हो तुम इस कदर
काश उस नीव कि ईंट पर तुम अपनी नजर रखते
बनावटी फूलों से इस तरह चमन महका नहीं करते
लाख मुस्करा लो तुम भले ही ज़माने के सामने
दिलों में छिपे दर्द यूँ ही मिटा नही करते
खेलों में भी खेल, खेल गए मेरे ये रहनुमा
यूँ फकत रौशनी से ये अँधेरे मिटा नही करते
बात तो तब है उनके घरों में भी उजाला हो
यूँ अँधेरे में रख तुम्हारे दिल सहमा नही करते
ये कंगूरे देखकर क्यूँ इतराते हो तुम इस कदर
काश उस नीव कि ईंट पर तुम अपनी नजर रखते
Sunday, October 31, 2010
ओ चाँद, तुझको ढूंढ़ता हे.......
ओ चाँद, तुझको ढूंढ़ता हे आज मेरा चाँद
तुझको तेरी चांदनी पर बहुत हे गुमान
आज मेरा चाँद सज-धज के तुझसे मुकाबिल हे
आ जा जल्दी से तू क्यूँ इतना शरमा रहा हे,
या मेरे चाँद से मुकाबले करने में घबरा रहा है
तुझको तेरी चांदनी पर बहुत हे गुमान
आज मेरा चाँद सज-धज के तुझसे मुकाबिल हे
आ जा जल्दी से तू क्यूँ इतना शरमा रहा हे,
या मेरे चाँद से मुकाबले करने में घबरा रहा है
Thursday, October 28, 2010
सोलिड स्टेट..........
यूँ तो शादी को हुए करीब १३ साल हो गए,लेकिन शादी के पहले ही घर का जो भी सामान हम लाये, सोलिड ही लाये,सिर्फ अपनी धर्म-पत्नी के अलावा, जैसे कि हमारा केल्विनेटर फ्रीज़ हुआ, अल्मीराह हुई, वाशिंग मशीन हुई, यूँ डबल बेड हुआ, खूब पैसा लगाया और भैये, लाइफ टर्म प्लानिंग कर ली, मन में बहुत खुश, कि भाई अपुन तो हलकी -फुलकी चीज़ लेते नही, जो भी लेते सोलिड, लेकिन जब हर 1 साल बाद, मकान बदली करनी होती, तब नानी याद आती, दोस्तों को बुलाते कि भैये जरा सन्डे को आ जाना, तो पहले तो मन ही मन गलिआते , फिर खुल कर गलिआने लगे, कि यार अब तू न लेबर का इंतजाम कियाकर, अपने बस का नही हे, कुछ टाइम बाद दोस्तों ने बहाना ही बनाना शुरू कर दिया, कि इस सन्डे तो हम बाहर जा रहे हैं, और अपनी हर चीज़ सोलिड लेने कि मानसिकता के होते हुए भी, हमने सोचा अब बहुत हो चुका, फिर सोचा, क्या हमने सोलिड सामान खरीद कर कोई गलती तो नही कर दी, जब जिन्दगी का सबसे अहम् फैसला करना था अपनी लाइफ पार्टनर का, तो अपनी आदत के विपरीत हमने सोचा यार ये तो लाइट वेट ही होनी चाहिए सो बड़ी मुश्किलों से एक का चुनाव किया, लेकिन किस्मत के मारे वो २ साल के भीतर ही वो भी देखने में सोलिड स्टेट हो गयी, मेने सोचा यार इंसान के सोचने से कुछ नही होता, जिसकी किस्मत में जैसा लिखा होता हे बैसा ही होता हे, अब क्या करते, हो गयी भारी तो हो गयी, अब पत्नी जी को चिंता सताने लगी, की ये तो एक दम से स्लिम ट्रिम दिखते हैं और मैं इनकी सबसे बड़ी भावी, अब यही दिन-रात सोच सोच कर वो और तेजी से सोलिड स्टेट होने लगी, मेने कहा प्रिये कुछ करो, बरना अगर आपकी ग्रोथ की स्पीड यही रही तो आप भी अमेरिका की अर्थव्यवस्था की माफिक ढुल-मुल हो जाएँगी! अभी से उपाए करो, बोली हम्म ! आज ही एक add देखा था टीवी पर ! ,बोली ६ मंथ का कोर्से हे, हम भी आपकी तरह स्लिम-ट्रिम हो जायेंगे! अब कोर्स की बात सुनते ही हम सन्न रह गए, और हमें अपनी पॉकेट की चिंता सताने लगी, फिर भी हमने चेहरे पर बनाबटी मुस्कराहट लाते हुए कहा, की फ़ौरन ज्वाइन कर लो, पैसे की कोई चिंता नही!, में तुमको स्लिम ही देखन चाहता हूँ. जैसे की तुम शादी के वक़्त थी, अब पत्नी जी ऐसे शरमाई कि जैसे उनकी दूसरी शादी की बात हो रही हे, खैर उन्होंने कोर्स ज्वाइन किया, १ हफ्ते के बाद हमने पत्नी जी से पूछा क्या इम्प्रोवेमेंट हे, बोली वेट तो अभी रुका हुआ हे, वट आई एम् फीलिंग बेटर लेकिन इस बीच पत्नी जी का वजन घटा या न घटा, लेकिन हमारी पॉकेट का बजन जरुरत से ज्यादा घटने लगा! आज श्रीमती जी को स्लिम कोर्स ज्वाइन किये हुए पुरे ४ महीने हो गए, लेकिन हमें कही से भी इम्प्रोव्मेंट नजर नही आया, सिवाए हमारी पॉकेट के, हाँ इस बीच, चिंता के मारे हमारी कमर ३४ से स्वीट ३२ हो गयी, एक दिन श्रीमती जी ने पूछा आपको कोई फर्क नजर आ रहा हे क्या, हमने कहा हां न, आ रहा हे, बोली देखा में न कहती थी कि में जरूर पतली हो जाउंगी, मेने कहा भाग्यवान तुम में तो कोई फर्क नही आया, मेरी पॉकेट और कमर जरूर पतले हो गए इस बीच में. वो बोली आप भी मजाक खूब कर लेते हैं, मेने कहा भाग्यवान हम मजाक नही कर रहे , हम सिरिअस हैं! खैर अब हम, २ महीने और ख़त्म होने का इंतजार करने लगे, ताकि श्रीमती जी को तसल्ली हो जाये, हमने सोचा, जब ४ महीने में कुछ नही हुआ, तो बचे हुए २ महीने कुछ नही होने वाला, बस हुया तो एक ही बात हुई हमारी पॉकेट का बलात्कार हुआ, हमने add वालों को जी भर के कौसा, और मन ही मन सोचा कि किस घडी में श्रीमती जी ने वो add देखा था!
Tuesday, October 19, 2010
हम भी राइटर हैं,मियां .......................
हमें भी मुगालता हो ही गया, कि हम भी राइटर हैं,मियां फेंकना शुरू किया, लोग दाद देने आने लगे
अब क्या कहे, सर चकराया, यार तुम बाकई लिख लेते हो,फिर कुछ लिखा, थोडा सोच -विचार के लिखा, और परोस दिया मियां कमाल हो गया, दोस्तों ने हमें राइटर बना ही दिया, बोले कहा छिपे थे, अब तक, क्या कमाल लिखते हो, अब हमें काटो तो खून नही, यकीं ही नही आया, कि हम लिखने लगे हैं, बातों ही बातों में लेखक बन गए! लेकिन अपनी तो उलटी खोपड़ी, जो सीधी सोचती ही नही गिनती भी १०० से १ तक ही गिनती हे!, देखा देखि
ब्लॉग बना लिया, इधर -उधर से हेडर कि पंक्तियाँ चुराकर और एक पुराना -जवानी के दिनों का पिक चेप दिया,
लो भाई हो गया ब्लॉग तैयार, अब यहाँ बड़ी मुश्किल, ये हमारे राइटर बनने का सबसे मुश्किल दौर था, मियां इकठ्ठा करो लोगो को, आओ भाई ज्वाइन करो, किसकी बुध्धि ख़राब जो करे, किसके पास फालतू टाइम हे,
जो आपकी बकबास पढ़े, होगे राइटर अपने ब्लॉग के, फिर किसी महा-ब्लोगेर मित्र से सलाह ली, कि क्या करे
कैसे लोगो को इकठ्ठा करे, वो बहुत जोरो का हँसे, मेने कहा मित्र हंसने का राज, हमने ऐसा क्या पूछ लिया आपसे, वो बोले , ऐसा हे, पहले लोगो के बलोग पर जाकर कमेंट्स दो, तब न कोई आएगा!, हमने कहा क्या मतलब, ये कौन सी विधा है भाई, वो बोले ज्यादा दिमाग मत छोडो जो कहा उतना करो, अगर ब्लोग्गिस्ट बनना हे तो ये सब करना पड़ेगा! हमें कहा मान गए उस्ताद, आपकी सलाह सर आँखों पर, हमें सोचा , कि यार जब इतनी मेहनत कि हे तो ये आखरी दाव खेल ही लो, शुरू हो गए, वाह वाह , बहुत अच्छा , टू गुड, वैरी नाईस बगैरा बगैरा रिमार्क देने लगे, और उसके बाद भी वो आते ही नही, बड़ा गुस्सा आया, कि यार हम तो दे रहे हैं लेकिन कोई आता ही नही, हम फिर से गए अपने मित्र के पास, कहा यार फुद्दू बनाते हो, कोई नहीं आया, बोले यार पेशेंस रखो, किसी को इन्वईट किया क्या ! हमें कहा नही, बोले करो फिर, सबको निमंतरण भेजो, हमने एक गहरी साँस ली, सोचा यार इतना भी आसान नही राइटर बनना, बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं, बैसे हमारी कोशिश आज भी जारी हे, देखो सफलता कब मिलती हे!
अब क्या कहे, सर चकराया, यार तुम बाकई लिख लेते हो,फिर कुछ लिखा, थोडा सोच -विचार के लिखा, और परोस दिया मियां कमाल हो गया, दोस्तों ने हमें राइटर बना ही दिया, बोले कहा छिपे थे, अब तक, क्या कमाल लिखते हो, अब हमें काटो तो खून नही, यकीं ही नही आया, कि हम लिखने लगे हैं, बातों ही बातों में लेखक बन गए! लेकिन अपनी तो उलटी खोपड़ी, जो सीधी सोचती ही नही गिनती भी १०० से १ तक ही गिनती हे!, देखा देखि
ब्लॉग बना लिया, इधर -उधर से हेडर कि पंक्तियाँ चुराकर और एक पुराना -जवानी के दिनों का पिक चेप दिया,
लो भाई हो गया ब्लॉग तैयार, अब यहाँ बड़ी मुश्किल, ये हमारे राइटर बनने का सबसे मुश्किल दौर था, मियां इकठ्ठा करो लोगो को, आओ भाई ज्वाइन करो, किसकी बुध्धि ख़राब जो करे, किसके पास फालतू टाइम हे,
जो आपकी बकबास पढ़े, होगे राइटर अपने ब्लॉग के, फिर किसी महा-ब्लोगेर मित्र से सलाह ली, कि क्या करे
कैसे लोगो को इकठ्ठा करे, वो बहुत जोरो का हँसे, मेने कहा मित्र हंसने का राज, हमने ऐसा क्या पूछ लिया आपसे, वो बोले , ऐसा हे, पहले लोगो के बलोग पर जाकर कमेंट्स दो, तब न कोई आएगा!, हमने कहा क्या मतलब, ये कौन सी विधा है भाई, वो बोले ज्यादा दिमाग मत छोडो जो कहा उतना करो, अगर ब्लोग्गिस्ट बनना हे तो ये सब करना पड़ेगा! हमें कहा मान गए उस्ताद, आपकी सलाह सर आँखों पर, हमें सोचा , कि यार जब इतनी मेहनत कि हे तो ये आखरी दाव खेल ही लो, शुरू हो गए, वाह वाह , बहुत अच्छा , टू गुड, वैरी नाईस बगैरा बगैरा रिमार्क देने लगे, और उसके बाद भी वो आते ही नही, बड़ा गुस्सा आया, कि यार हम तो दे रहे हैं लेकिन कोई आता ही नही, हम फिर से गए अपने मित्र के पास, कहा यार फुद्दू बनाते हो, कोई नहीं आया, बोले यार पेशेंस रखो, किसी को इन्वईट किया क्या ! हमें कहा नही, बोले करो फिर, सबको निमंतरण भेजो, हमने एक गहरी साँस ली, सोचा यार इतना भी आसान नही राइटर बनना, बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं, बैसे हमारी कोशिश आज भी जारी हे, देखो सफलता कब मिलती हे!
Saturday, October 16, 2010
जमाना बहुत जालिम हे ............
जिन्दगी इस कद्र बेजार क्यूँ हे
फिर भी हमें ऐतबार क्यूँ हे,
हमने गुनाह-ए-इश्क कब किया
फिर भी उनको हमारा इंतजार क्यूँ है,
सोचा था इश्क नही हे मेरी मंजिल
फिर भी जेहन में ये खुमार क्यूँ हे,
जोड़ते हैं नाम उनसे बेबजह मेरा
ज़माने को मुझसे ही खार क्यूँ हे,
हमने बदल दिए हैं रास्ते फिर भी
लोगों के मन में, ये सवाल क्यूँ हे,
ये जमाना बहुत जालिम हे "गौरव"
तू यूँ ही , खामखा परेशान क्यूँ हे!
फिर भी हमें ऐतबार क्यूँ हे,
हमने गुनाह-ए-इश्क कब किया
फिर भी उनको हमारा इंतजार क्यूँ है,
सोचा था इश्क नही हे मेरी मंजिल
फिर भी जेहन में ये खुमार क्यूँ हे,
जोड़ते हैं नाम उनसे बेबजह मेरा
ज़माने को मुझसे ही खार क्यूँ हे,
हमने बदल दिए हैं रास्ते फिर भी
लोगों के मन में, ये सवाल क्यूँ हे,
ये जमाना बहुत जालिम हे "गौरव"
तू यूँ ही , खामखा परेशान क्यूँ हे!
Wednesday, October 13, 2010
हमने कसम खा ही ली............
उस दिन हमने कसम खा ही ली थी
कि आज से हम आशिकी नही करेंगे
ये सब बेकार कि बाते हैं,
जिसमे न बाते, न मुलाकते हैं
हम आने-जाने के वक़्त
नुक्कड़ पर खड़े रहते
उधर अम्मा चूल्हे पर
बैठी इंतजार करती रहती
कि बेटा पता नहीं कब आएगा
दाल ओट ओट कर आधी हो गयी
अब इसमें हल्दी कौन मिलाएगा
लेकिन हमारी अम्मा को कहाँ पता
कि उसके बेटे पर तो आशिकी
अपना रंग जमा चुकी हे
अब चाहे दाल जले या घुटे
उसे तो वो लड़की भा चुकी थी
वो रोज हमें अपने रास्ते पर खड़ा पाती
न हम कुछ कह पाते न वो कुछ कह पाती
उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ
जब ओ हमारी नजरों से ओझल होगई
तब हमें याद आया कि
अम्मा ने तो हल्दी थी मगाई,
अब तो अम्मा चूल्हा बुझा चुकी होगी
क्यूंकि टाइम का पता ही नही चला
जैसे ही हम हल्दी लेकर घर पहुंचे
अम्मा ने चूल्हे कि लकड़ी से कि पिटाई
बोली तू नालायक कहा रह गया था
या लाला दूकान छोड़ कर कही चला गया था
हमने कहा नही अम्मा लाला कही नहीं गया
तेरा लल्ला लड़की के चक्कर में फंस गया
अम्मा बोली नालायक
तुझसे एक मक्खी तो मारी नही जाती
लड़की क्या पटायेगा
बड़ा आया लड़की पटाने वाला
सच बोल तुने इतनी देर क्यूँ लगाई
मेने कहा अम्मा में सच ही बोल रहा हूँ
अम्मा ने कस के एक लकड़ी और जमाई
तब हमें अपनी अम्मा कि अम्मा
यानि कि अपनी नानी याद आई
उसदिन से हमने आशिकी न
करने कि कसम खाई!
कि आज से हम आशिकी नही करेंगे
ये सब बेकार कि बाते हैं,
जिसमे न बाते, न मुलाकते हैं
हम आने-जाने के वक़्त
नुक्कड़ पर खड़े रहते
उधर अम्मा चूल्हे पर
बैठी इंतजार करती रहती
कि बेटा पता नहीं कब आएगा
दाल ओट ओट कर आधी हो गयी
अब इसमें हल्दी कौन मिलाएगा
लेकिन हमारी अम्मा को कहाँ पता
कि उसके बेटे पर तो आशिकी
अपना रंग जमा चुकी हे
अब चाहे दाल जले या घुटे
उसे तो वो लड़की भा चुकी थी
वो रोज हमें अपने रास्ते पर खड़ा पाती
न हम कुछ कह पाते न वो कुछ कह पाती
उस दिन भी ऐसा ही कुछ हुआ
जब ओ हमारी नजरों से ओझल होगई
तब हमें याद आया कि
अम्मा ने तो हल्दी थी मगाई,
अब तो अम्मा चूल्हा बुझा चुकी होगी
क्यूंकि टाइम का पता ही नही चला
जैसे ही हम हल्दी लेकर घर पहुंचे
अम्मा ने चूल्हे कि लकड़ी से कि पिटाई
बोली तू नालायक कहा रह गया था
या लाला दूकान छोड़ कर कही चला गया था
हमने कहा नही अम्मा लाला कही नहीं गया
तेरा लल्ला लड़की के चक्कर में फंस गया
अम्मा बोली नालायक
तुझसे एक मक्खी तो मारी नही जाती
लड़की क्या पटायेगा
बड़ा आया लड़की पटाने वाला
सच बोल तुने इतनी देर क्यूँ लगाई
मेने कहा अम्मा में सच ही बोल रहा हूँ
अम्मा ने कस के एक लकड़ी और जमाई
तब हमें अपनी अम्मा कि अम्मा
यानि कि अपनी नानी याद आई
उसदिन से हमने आशिकी न
करने कि कसम खाई!
Monday, October 11, 2010
किसी के बाप का, क्या जायेगा.........
फैसला जो आना, आ ही जायेगा
किसी के बाप का, क्या जायेगा
मस्जिद बने या वो मंदिर रहे
क्या तू वहां मत्था टेकने जायेगा
बहुतों को तो पता ही नही कि मसला क्या हे
फिर भी वो इस सैलाव ने बह ही जायेगा
क्या जरुरी हे कि झगडे -फसाद हों
पर तू पहले से ही शोर मचाएगा
क्यूँ खेलते हो तुम नादानों कि जिन्दगी से
बिना इसके क्या तू रह नही पायेगा
खून राम का बहे या रहीम का बहे
बहा खून किसका है, क्या तू बता पायेगा
ये सब फालतू कि बाते जो करते हैं लोग
किसी के घर का चिराग, तो किसी का
चुहला बुझ ही जायेगा
फैसला जो आना, आ ही जायेगा
किसी के बाप का, क्या जायेगा.........
किसी के बाप का, क्या जायेगा
मस्जिद बने या वो मंदिर रहे
क्या तू वहां मत्था टेकने जायेगा
बहुतों को तो पता ही नही कि मसला क्या हे
फिर भी वो इस सैलाव ने बह ही जायेगा
क्या जरुरी हे कि झगडे -फसाद हों
पर तू पहले से ही शोर मचाएगा
क्यूँ खेलते हो तुम नादानों कि जिन्दगी से
बिना इसके क्या तू रह नही पायेगा
खून राम का बहे या रहीम का बहे
बहा खून किसका है, क्या तू बता पायेगा
ये सब फालतू कि बाते जो करते हैं लोग
किसी के घर का चिराग, तो किसी का
चुहला बुझ ही जायेगा
फैसला जो आना, आ ही जायेगा
किसी के बाप का, क्या जायेगा.........
Monday, October 4, 2010
वो क्या हे पुराना जो याद आता हे...................
अब यह मत पूछना कि वो क्या हे पुराना जो याद आता हे
क्यूँ अक्सर हमें आपकी वो बातें, वो तराना याद आता हे
कितनी हसरतों से बनाये थे हमने कुछ हमराज अपने
हमें अब गुजरा हुआ वो जमाना, अक्सर याद आता हे
भुला भी दें तो क्यूँकर भुला दे वो यादें
जिसमे शामिल थे हमारे कुछ वादे
तुम्हे भूलना गर इतना आसान होता
क्यूँ कर तुम्हारा मुस्कराना भरी महफ़िल में
अक्सर याद आता हे!
ए-वक़्त ले चल तू जरा उसी दौरे-जमाँ में
हमें उनका बात-बात पर मचलना अक्सर याद आता हे
हमें याद आती हैं उनकी वो शोख-चंचल निगाहें
उनका यूँ देखकर न देखने की वो कातिल अदाएँ
हमें वो सावन का महिना याद आता हे
उनका यूँ बारिश में भीगना अक्सर याद आता हे
अब यह मत पूछना कि वो क्या हे पुराना जो याद आता हे
क्यूँ अक्सर हमें आपकी वो बातें, वो तराना याद आता हे.......
EK-kHAYAAL APNA SA........
क्यूँ अक्सर हमें आपकी वो बातें, वो तराना याद आता हे
कितनी हसरतों से बनाये थे हमने कुछ हमराज अपने
हमें अब गुजरा हुआ वो जमाना, अक्सर याद आता हे
भुला भी दें तो क्यूँकर भुला दे वो यादें
जिसमे शामिल थे हमारे कुछ वादे
तुम्हे भूलना गर इतना आसान होता
क्यूँ कर तुम्हारा मुस्कराना भरी महफ़िल में
अक्सर याद आता हे!
ए-वक़्त ले चल तू जरा उसी दौरे-जमाँ में
हमें उनका बात-बात पर मचलना अक्सर याद आता हे
हमें याद आती हैं उनकी वो शोख-चंचल निगाहें
उनका यूँ देखकर न देखने की वो कातिल अदाएँ
हमें वो सावन का महिना याद आता हे
उनका यूँ बारिश में भीगना अक्सर याद आता हे
अब यह मत पूछना कि वो क्या हे पुराना जो याद आता हे
क्यूँ अक्सर हमें आपकी वो बातें, वो तराना याद आता हे.......
EK-kHAYAAL APNA SA........
Thursday, September 30, 2010
देश का बंटाधार................
दुनिया थू थू कर रही, मचा रही हे शोर
कलमाड़ी बाबा चुप हैं, मन अंदर से चकोर
मन अन्दर से चकोर, चिल्लाओ जितना प्यारे
सत्तर पुश्ते सुधर गयी, हो गए वारे न्यारे
हो गए वारे न्यारे, ये हे CWG कि माया
इस भ्रम में मत रहो,अकेले मेने ही खाया
अकेले मेने ही खाया, दिया सबका हिस्सा वार
हम सबने मिलकर कर दिया, देश का बंटाधार
देश का बंटाधार, नही था दूजा कोई उपाए
भिराष्टचार कि जद से कोई हे जो बच के दिखाए
हे जो बच के दिखाए , ये परंपरा बहुत पुरानी
कोशिश कि जिसने भी, उसको याद दिला दी नानी
काहे बाबा गौरव, हे ये बीमारी ला-इलाज
हो सके तो कर दो, इन नेताओं को खल्लास!
कलमाड़ी बाबा चुप हैं, मन अंदर से चकोर
मन अन्दर से चकोर, चिल्लाओ जितना प्यारे
सत्तर पुश्ते सुधर गयी, हो गए वारे न्यारे
हो गए वारे न्यारे, ये हे CWG कि माया
इस भ्रम में मत रहो,अकेले मेने ही खाया
अकेले मेने ही खाया, दिया सबका हिस्सा वार
हम सबने मिलकर कर दिया, देश का बंटाधार
देश का बंटाधार, नही था दूजा कोई उपाए
भिराष्टचार कि जद से कोई हे जो बच के दिखाए
हे जो बच के दिखाए , ये परंपरा बहुत पुरानी
कोशिश कि जिसने भी, उसको याद दिला दी नानी
काहे बाबा गौरव, हे ये बीमारी ला-इलाज
हो सके तो कर दो, इन नेताओं को खल्लास!
Monday, September 27, 2010
कलमाड़ी-बाबा.........
जिसे देखो, सब कलमाड़ी बाबा के ऊपर पेले जा रहे हैं! ये कर दिया, वो कर दिया
कोई दुनिया भर के चुटकले छोड़ रहा हे,कोई कहानी कह रहा हे, कोई कलमाड़ी -भ्रष्ट-चलीषा का गुणगान कर रहा हे! अब चुटकलों का क्या कहे, पिछले कई बर्षों से इंडियन चुटकलों के बेताज बादशाह "सरदार जी" का पद खतरे में पड़ गया हे, क्यूंकि जिधर देखो कलमाड़ी-बाबा ही कि चर्चा हे! जिस किसी शख्श के जेहन में जो भी गंदगी भरी हे सब कलमाड़ी -बाबा कि ऊपर ही डाल रहे हैं, गोया कलमाड़ी-बाबा न होकर वो कोई MCD- का कूड़े-दान हो गए!
फिर मेने सोचा यार में इस भेड़-चाल में नही पडूंगा, जिसका कोई नही उसका तो अपुन हे यारों, तो कलमाड़ी बावा आप चिंता न करे, में हूँ न आपकी तरफ, आप अकेला कतई महसूस न कीजिये, बस इत्ती सी इल्तजा हे, कि थोड़ी हे न बस थोड़ी सी नजरे इनायत हम पर भी कर दीजियेगा, उसी से हमारी कई पीड़ियाँ तर जाएगी! और माँ-कसम हम आपकी तारीफ में जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम से भी मजबूत पुल बांध देंगे, जिस पर सिर्फ और सिर्फ आपका भला सोचने वाले ही आ जा सकेंगे, आप चिंता न कीजिये, बैसे आपकी महिमा तो अब अपरम्पार हो चुकी हे, दुनिया भर के महान आंकड़े विशेषगये आपकी कमाई कि रफ़्तार कि तुलना बिल-गेट्स कि रोज-आना कि कमाई से करने लगे हैं, और अनोपचारिक रूप से सभी आंकड़ा ज्ञाता इस बात पर सहमत थे कि आपने बाकई बिल-गेट्स को इस मामले में बहुत पीछे छोड़ दिया हे, जिस रफ़्तार को पाने में बिल-गेट्स ने कई वर्ष लगा दिए, उसे आपने महज कुछ महीनो में ही पा लिया, तो सबसे पहले इस नाचीज़ कि बधाई स्वीकारे! और रही इल्जामो कि बात, तो येकोई नयी बात नही हे, कि किसी नेता पर या अधिकारी पर इल्जाम लगे बिना कम पूरा हो जाये, ये पब्लिक हे बाबा और आप ठहरे बाबा और ऊपर से नेता जी, किसकी मजाल जो आपका बाल भी बांका कर जाये, न तो आज तक किसी बावा का कुछ बिगड़ा न ही किसी नेता का, और आप तो डबल बोनान्जा हो बाबा, तो चिंता नोट, बस नोटों कि ठिकाने लगाने कि चिंता करो, और कुछ इधर भी बाबा, इस बच्चे का भी ख्याल करना, इसकी सात पीड़ियाँ आपको याद रखेंगी बाबा! बोलो श्री श्री कलमाड़ी-बाबा CWG अनंत बार ४२० जी महाराज कि जय!
कोई दुनिया भर के चुटकले छोड़ रहा हे,कोई कहानी कह रहा हे, कोई कलमाड़ी -भ्रष्ट-चलीषा का गुणगान कर रहा हे! अब चुटकलों का क्या कहे, पिछले कई बर्षों से इंडियन चुटकलों के बेताज बादशाह "सरदार जी" का पद खतरे में पड़ गया हे, क्यूंकि जिधर देखो कलमाड़ी-बाबा ही कि चर्चा हे! जिस किसी शख्श के जेहन में जो भी गंदगी भरी हे सब कलमाड़ी -बाबा कि ऊपर ही डाल रहे हैं, गोया कलमाड़ी-बाबा न होकर वो कोई MCD- का कूड़े-दान हो गए!
फिर मेने सोचा यार में इस भेड़-चाल में नही पडूंगा, जिसका कोई नही उसका तो अपुन हे यारों, तो कलमाड़ी बावा आप चिंता न करे, में हूँ न आपकी तरफ, आप अकेला कतई महसूस न कीजिये, बस इत्ती सी इल्तजा हे, कि थोड़ी हे न बस थोड़ी सी नजरे इनायत हम पर भी कर दीजियेगा, उसी से हमारी कई पीड़ियाँ तर जाएगी! और माँ-कसम हम आपकी तारीफ में जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम से भी मजबूत पुल बांध देंगे, जिस पर सिर्फ और सिर्फ आपका भला सोचने वाले ही आ जा सकेंगे, आप चिंता न कीजिये, बैसे आपकी महिमा तो अब अपरम्पार हो चुकी हे, दुनिया भर के महान आंकड़े विशेषगये आपकी कमाई कि रफ़्तार कि तुलना बिल-गेट्स कि रोज-आना कि कमाई से करने लगे हैं, और अनोपचारिक रूप से सभी आंकड़ा ज्ञाता इस बात पर सहमत थे कि आपने बाकई बिल-गेट्स को इस मामले में बहुत पीछे छोड़ दिया हे, जिस रफ़्तार को पाने में बिल-गेट्स ने कई वर्ष लगा दिए, उसे आपने महज कुछ महीनो में ही पा लिया, तो सबसे पहले इस नाचीज़ कि बधाई स्वीकारे! और रही इल्जामो कि बात, तो येकोई नयी बात नही हे, कि किसी नेता पर या अधिकारी पर इल्जाम लगे बिना कम पूरा हो जाये, ये पब्लिक हे बाबा और आप ठहरे बाबा और ऊपर से नेता जी, किसकी मजाल जो आपका बाल भी बांका कर जाये, न तो आज तक किसी बावा का कुछ बिगड़ा न ही किसी नेता का, और आप तो डबल बोनान्जा हो बाबा, तो चिंता नोट, बस नोटों कि ठिकाने लगाने कि चिंता करो, और कुछ इधर भी बाबा, इस बच्चे का भी ख्याल करना, इसकी सात पीड़ियाँ आपको याद रखेंगी बाबा! बोलो श्री श्री कलमाड़ी-बाबा CWG अनंत बार ४२० जी महाराज कि जय!
Saturday, September 25, 2010
मेरा प्रिये नेता.......
भाई से भाई लड़ाते चलो
खून कि नदियाँ बहाते चलो
कोई मरे या कोई जिए यहाँ
राजनीती कि रोटियां पकाते चलो
देश कि हालत पर घडयाली आंसू बहाते चलो!
ना कोई अपना ना कोई पराया
भोली जनता को जो बेवकूफ बनाता
नेता कि तो यही हे परिभाषा
यूँ ही बेबजह मुद्दा उठाते चलो
देश कि लुटिया डुबाते चलो !
ना कोई कर्म हे ना कोई शर्म है
दिखता ऐसे जैसे कोई दबंग हे
देख के रंग इसका जनता दंग हे
गेम जाये गड्ढे में इसको क्या रंज हे
बेशर्मी से यूँ ही मुस्कराते चलो
देश कि नाक कटवाते चलो !
अनाज सड़ता हे, सड़ता रहेगा
मर जाये कोई भूखा इसका क्या हे
भूखी जनता में पर ये न बटेगा
हिसाब तुम कैमरे पर समझाते चलो
कानून कि धज्जियाँ उड़ाते चलो!
भाई से भाई लड़ाते चलो
खून कि नदियाँ बहाते चलो......
खून कि नदियाँ बहाते चलो
कोई मरे या कोई जिए यहाँ
राजनीती कि रोटियां पकाते चलो
देश कि हालत पर घडयाली आंसू बहाते चलो!
ना कोई अपना ना कोई पराया
भोली जनता को जो बेवकूफ बनाता
नेता कि तो यही हे परिभाषा
यूँ ही बेबजह मुद्दा उठाते चलो
देश कि लुटिया डुबाते चलो !
ना कोई कर्म हे ना कोई शर्म है
दिखता ऐसे जैसे कोई दबंग हे
देख के रंग इसका जनता दंग हे
गेम जाये गड्ढे में इसको क्या रंज हे
बेशर्मी से यूँ ही मुस्कराते चलो
देश कि नाक कटवाते चलो !
अनाज सड़ता हे, सड़ता रहेगा
मर जाये कोई भूखा इसका क्या हे
भूखी जनता में पर ये न बटेगा
हिसाब तुम कैमरे पर समझाते चलो
कानून कि धज्जियाँ उड़ाते चलो!
भाई से भाई लड़ाते चलो
खून कि नदियाँ बहाते चलो......
Wednesday, September 22, 2010
जी का जंजाल (माया जाल)
आज हमारी श्रीमती जी का पारा सातवे आसमान पर था, बोली बंद करो ये सब कविता/ग़ज़ल लिखना! मेने आश्चर्ये-चकित होकर पूछा अरे ये अचानक आपको क्या हुआ, इस तरह दहाड़ने का मतलब, कुछ तो हमारी इज्जत कहा ख्याल रखो, पडोसी बैसे ही फिराक में रहते हैं, की
यार इन दोनों में कब बजे और हम मजा ले, जो कहना हे धीरे से कहो, क्यूँ खामखा बखेड़ा खड़ा करती हो, हमें इस तरह गिड़गिड़ाता देख , वो और जोर से चिल्लाई, बोली आज फैसला होकर ही रहेगा, या तो ये कविता रहेगी या में , पता नही आप कविताके बहाने न जाने किस किस से अपना मन बहलाते रहते हो!, न जाने क्या लिखते हो कविता में,मेने कहा प्रिये में तुमको ही तो लिखता हूँ, बात ये है कि तुम गहराई में तो जाती नही हो, ऊपर ही ऊपर तैरती रहती हो, बोली हां आप यही चाहते हैं कि में डूब कर मर जाऊ, ताकि आप फ्री हो जाओ, हे न, बैसे मेने आपकी कई कविताएँ पढ़ी हैं , ये देखो इस गजल में पता नही क्या क्या लिखा हे
"है तू ही मकसद मेरी जिन्दगी का
जिस्म में रूह की जगह बस तू है.
तेरे बिन कैसे जिऊं मेरी जान
मेरी जिन्दगी की सदा भी तू है
तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का
मेरी तो मुकम्मल ग़ज़ल तू है "
सच्ची बात तो ये है, हमें कहते हुए शर्म आती हे, की आप इस कविता का २०% भी नही हैं,
आज बता ही दो ये किसके लिए लिखी थी आपने, मेने कहा भाग्येवान तुम्हरे अलावा और किसको लिख सकता हूँ में, तुम ही तो हो, जो हर वक़्त खयालो में रहती हो, और मेरी कविता /ग़ज़ल की तुम आधारशिला हो प्रिये, वो तमतमाई और गुस्से में बोली, रहने दीजिये, आप हमें मत लिखा कीजिये, आप हमें हकीकत में तो प्यार करते नही, खयालो में क्या ढूढते होंगे, किसी और को बनाइएगा, बैसे भी आप अब ४० के होने वाले हैं अगले साल, हमें तो डर ही लगने लगा हे, की कही वो कहावत सच न हो जाये , हमें कहा कहावत कौन सी कहावत!
वो बोली "MAN IS NAUGHTY AT 40" , मैंने कहा हे भगवन तो ये बात हे, तुम कहावत पढ़कर परेशां हो रही हो, ऐसी कोई बात नही हे घबराने की, निश्चिन्त रहो, बोली कैसे निश्चिन्त रहे, आजकल फिसलते देर नही लगती, और जिस तरह आप सुबह शाम नेट पर लगे रहते हैं , हमें चिंता होने लगी हे, हाँ! मैंने कहा अब शक का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नही था, आप यकीं करो या न करो फिलहाल ऐसी कोई सम्भावना नही है, वो बोली नही मानोगे आप, इस मुए नेट में रखा क्या हे, मेने कहा भाग्यवान नेट आज की जरुरत बन चूका हे, बोली अगर ऐसा हे तो में भी नेट पर कम करुँगी, मेरा भी एक ईमेल आई डी बना दीजिये
फिर हम भी अपने दोस्तों से बात क्या करंगे, और आज से चूल्हा चौका आप संभालिये,!
मेने कहा ये बात हुई न, ऐसा करते हैं की एक काम वाली को रख लेते हैं, तो आप किचन से फ्री हो जाएँगी, और घर के काम में भी सहूलियत हो जाएगी, वो जोर का चिल्लाई, कोई काम वाली नही आएगी, पता नही हमें सहूलियत होगी, या आप अपनी सहूलियत ढूढ़ रहे इसमें भी, मेने कहा भाग्येवान तुम्हारी बीमारी का कोई इलाज नही हे, कुछ नही हो सकता
तुम्हारा.. दोस्तों आपके पास हे क्या कोई इलाज, ....
यार इन दोनों में कब बजे और हम मजा ले, जो कहना हे धीरे से कहो, क्यूँ खामखा बखेड़ा खड़ा करती हो, हमें इस तरह गिड़गिड़ाता देख , वो और जोर से चिल्लाई, बोली आज फैसला होकर ही रहेगा, या तो ये कविता रहेगी या में , पता नही आप कविताके बहाने न जाने किस किस से अपना मन बहलाते रहते हो!, न जाने क्या लिखते हो कविता में,मेने कहा प्रिये में तुमको ही तो लिखता हूँ, बात ये है कि तुम गहराई में तो जाती नही हो, ऊपर ही ऊपर तैरती रहती हो, बोली हां आप यही चाहते हैं कि में डूब कर मर जाऊ, ताकि आप फ्री हो जाओ, हे न, बैसे मेने आपकी कई कविताएँ पढ़ी हैं , ये देखो इस गजल में पता नही क्या क्या लिखा हे
"है तू ही मकसद मेरी जिन्दगी का
जिस्म में रूह की जगह बस तू है.
तेरे बिन कैसे जिऊं मेरी जान
मेरी जिन्दगी की सदा भी तू है
तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का
मेरी तो मुकम्मल ग़ज़ल तू है "
सच्ची बात तो ये है, हमें कहते हुए शर्म आती हे, की आप इस कविता का २०% भी नही हैं,
आज बता ही दो ये किसके लिए लिखी थी आपने, मेने कहा भाग्येवान तुम्हरे अलावा और किसको लिख सकता हूँ में, तुम ही तो हो, जो हर वक़्त खयालो में रहती हो, और मेरी कविता /ग़ज़ल की तुम आधारशिला हो प्रिये, वो तमतमाई और गुस्से में बोली, रहने दीजिये, आप हमें मत लिखा कीजिये, आप हमें हकीकत में तो प्यार करते नही, खयालो में क्या ढूढते होंगे, किसी और को बनाइएगा, बैसे भी आप अब ४० के होने वाले हैं अगले साल, हमें तो डर ही लगने लगा हे, की कही वो कहावत सच न हो जाये , हमें कहा कहावत कौन सी कहावत!
वो बोली "MAN IS NAUGHTY AT 40" , मैंने कहा हे भगवन तो ये बात हे, तुम कहावत पढ़कर परेशां हो रही हो, ऐसी कोई बात नही हे घबराने की, निश्चिन्त रहो, बोली कैसे निश्चिन्त रहे, आजकल फिसलते देर नही लगती, और जिस तरह आप सुबह शाम नेट पर लगे रहते हैं , हमें चिंता होने लगी हे, हाँ! मैंने कहा अब शक का इलाज तो हकीम लुकमान के पास भी नही था, आप यकीं करो या न करो फिलहाल ऐसी कोई सम्भावना नही है, वो बोली नही मानोगे आप, इस मुए नेट में रखा क्या हे, मेने कहा भाग्यवान नेट आज की जरुरत बन चूका हे, बोली अगर ऐसा हे तो में भी नेट पर कम करुँगी, मेरा भी एक ईमेल आई डी बना दीजिये
फिर हम भी अपने दोस्तों से बात क्या करंगे, और आज से चूल्हा चौका आप संभालिये,!
मेने कहा ये बात हुई न, ऐसा करते हैं की एक काम वाली को रख लेते हैं, तो आप किचन से फ्री हो जाएँगी, और घर के काम में भी सहूलियत हो जाएगी, वो जोर का चिल्लाई, कोई काम वाली नही आएगी, पता नही हमें सहूलियत होगी, या आप अपनी सहूलियत ढूढ़ रहे इसमें भी, मेने कहा भाग्येवान तुम्हारी बीमारी का कोई इलाज नही हे, कुछ नही हो सकता
तुम्हारा.. दोस्तों आपके पास हे क्या कोई इलाज, ....
Sunday, September 19, 2010
यहाँ तो भ्राताश्री से भी बड़े बड़े नाम हैं........
आज कुम्भकरण को भी गुस्सा आ गया
वो भी ब्रहम्मा जी से टकरा गया
बोला मुझे सिर्फ ६ महीने कि महुलत
और इनको पूरे ६२ सालों कि सहूलत
बोला भगवन मेने तो बर्षों के कठिन तप से
ये वरदान पाया है
ये कौन लोग हैं भगवन जिन्हें
आपने इतने बर्षों से सुलाया है
ब्रहम्मा जी घबराये,
और बोले वत्स शांत हो जाओ
तुम थोडा सा दिमाग लगाओ
वो त्रेता युग कि माया थी
ये कलयुग कि काया हे
यहाँ मेरा कोई नहीं हे काम
ये तो भोले और विष्णु जी कि हे दूकान
वत्स तुम विष्णुलोक जाओ
अपनी समस्या उनको बताओ
कुम्भकर्ण विष्णुलोक पहुंचा
वहा देखा उसने अजीब लोचा
जैसे ही वो अन्दर घुसने लगा
दरवान ने उसको वही पे रोका
बोला आप किस लोक के वासी हैं
कहा से आये हैं क्या नाम हे
कुम्भकर्ण बोला मैं त्रिलोक विजेता
रावन का छोटा भाई हूँ
संत्री बोला यहाँ लोग कोई न कोई
सिफारिस लेकर ही आते हैं,
बैसे नाम तो ये सुना हुआ हे
बैसे ये नेता जी किस पार्टी से आते हैं
क्या इनको कोई मंत्री पद मिला हुआ हे
कुम्भकर्ण का सर चकराया
उसको जोरो का गुस्सा आया
बोला क्या बकवास करते हो
खामखा हमसे भिड़ते हो
संतरी समझ गया और बोला
किस्से मिलना है, और क्या काम हे
खाली आये हो या पास में कुछ दाम हे
कुम्भकर्ण बोला दाम कैसा दाम
दरवान समझ गया, बोला ठीक हैं जाइये
और ये जो लम्बी लाइन है
इसमें सबसे पीछे लग जाइये
कुम्भकर्ण ने एक निगाह दौड़ाई
उसे तो लाइन बहुत लम्बी नजर आई
बोला यहाँ खड़े खड़े तो
में पागल हो जाऊंगा
उसने दरवान से पूछा
ये जो लाइन में लगे हैं कौन हैं
दरवान बोला श्रीमान ये सब कलयुगी हैं
और इंडिया से आये हैं
कुम्भकर्ण ने देखा कि कुछ लोग
जो सफ़ेद कुरता-पजामा पहने हुए हैं
वो डैरेक्ट ही अन्दर जा रहे हैं
उसने दरवान से पूछा ये कौन लोग हैं
दरवान बोला ये वि वि आई पि हैं
इन्होने प्रभु जी से मिलने का स्पेशल पास है
बनबाया है,
इसीलिए प्रभु जी ने इनको पीछे के
दरवाजे से अन्दर बुलाया है
दरवान बोला ये सब कलयुग कि व्यवस्था है
आप ठहरे त्रेतायुग के प्राणी
आप के लिए तो ये सब झमेला है
कुम्भकर्ण सोचने लगा
यार काफी हद तक तो बात
इस दरवान ने समझा दी
और बिना दाम के प्रभु जी से
मुलाकात होगी नही इससे अच्छा यही है
कि बापिस चला जाये
जो हो रहा हे होने दो
बैसे भी मेरा यहाँ क्या काम है
यहाँ तो भ्राताश्री से भी बड़े बड़े नाम हैं
वो भी ब्रहम्मा जी से टकरा गया
बोला मुझे सिर्फ ६ महीने कि महुलत
और इनको पूरे ६२ सालों कि सहूलत
बोला भगवन मेने तो बर्षों के कठिन तप से
ये वरदान पाया है
ये कौन लोग हैं भगवन जिन्हें
आपने इतने बर्षों से सुलाया है
ब्रहम्मा जी घबराये,
और बोले वत्स शांत हो जाओ
तुम थोडा सा दिमाग लगाओ
वो त्रेता युग कि माया थी
ये कलयुग कि काया हे
यहाँ मेरा कोई नहीं हे काम
ये तो भोले और विष्णु जी कि हे दूकान
वत्स तुम विष्णुलोक जाओ
अपनी समस्या उनको बताओ
कुम्भकर्ण विष्णुलोक पहुंचा
वहा देखा उसने अजीब लोचा
जैसे ही वो अन्दर घुसने लगा
दरवान ने उसको वही पे रोका
बोला आप किस लोक के वासी हैं
कहा से आये हैं क्या नाम हे
कुम्भकर्ण बोला मैं त्रिलोक विजेता
रावन का छोटा भाई हूँ
संत्री बोला यहाँ लोग कोई न कोई
सिफारिस लेकर ही आते हैं,
बैसे नाम तो ये सुना हुआ हे
बैसे ये नेता जी किस पार्टी से आते हैं
क्या इनको कोई मंत्री पद मिला हुआ हे
कुम्भकर्ण का सर चकराया
उसको जोरो का गुस्सा आया
बोला क्या बकवास करते हो
खामखा हमसे भिड़ते हो
संतरी समझ गया और बोला
किस्से मिलना है, और क्या काम हे
खाली आये हो या पास में कुछ दाम हे
कुम्भकर्ण बोला दाम कैसा दाम
दरवान समझ गया, बोला ठीक हैं जाइये
और ये जो लम्बी लाइन है
इसमें सबसे पीछे लग जाइये
कुम्भकर्ण ने एक निगाह दौड़ाई
उसे तो लाइन बहुत लम्बी नजर आई
बोला यहाँ खड़े खड़े तो
में पागल हो जाऊंगा
उसने दरवान से पूछा
ये जो लाइन में लगे हैं कौन हैं
दरवान बोला श्रीमान ये सब कलयुगी हैं
और इंडिया से आये हैं
कुम्भकर्ण ने देखा कि कुछ लोग
जो सफ़ेद कुरता-पजामा पहने हुए हैं
वो डैरेक्ट ही अन्दर जा रहे हैं
उसने दरवान से पूछा ये कौन लोग हैं
दरवान बोला ये वि वि आई पि हैं
इन्होने प्रभु जी से मिलने का स्पेशल पास है
बनबाया है,
इसीलिए प्रभु जी ने इनको पीछे के
दरवाजे से अन्दर बुलाया है
दरवान बोला ये सब कलयुग कि व्यवस्था है
आप ठहरे त्रेतायुग के प्राणी
आप के लिए तो ये सब झमेला है
कुम्भकर्ण सोचने लगा
यार काफी हद तक तो बात
इस दरवान ने समझा दी
और बिना दाम के प्रभु जी से
मुलाकात होगी नही इससे अच्छा यही है
कि बापिस चला जाये
जो हो रहा हे होने दो
बैसे भी मेरा यहाँ क्या काम है
यहाँ तो भ्राताश्री से भी बड़े बड़े नाम हैं
Friday, September 17, 2010
तू यहाँ खामखा सेंटीमेंटल होता हे
जैसे ही हमने ऑरकुट पर विजिट किया
अपनी स्क्रैप बुक में शानदार स्क्रैप
देखकर , भेजने वाले को दिल से सराहा
और सोचा यार ये कितना प्रेम करता हे हमसे
यूँ लिखने कि आदत के अनुसार सोचा
इसको भी कुछ अच्छा सा लिखा जाये
जो कि इसको हमारा प्रेम दर्शाए
हम सोचते रहे, १,२ दिन,
फिर एक सुन्दर सा शेर उसको
स्क्रैप किया, उसने तुंरत ही
उसका रिप्लाई किया
हमने सोचा यार ये तो दीवाना हे अपना
टाइम ही नही लगाता, हम फिर से रिप्लाई
करने के बारे में सोचने लगे
फिर एक दिन यूँ ही सोचते सोचते
हमारी निगाह ऑरकुट कि
टॉप स्टेटस लाइन पर पड़ी
लिखा था "try the new orkut"
हमसे जैसे ही क्लिक किया
स्क्रीन चेंज हो गया,
नए नए ओप्सन आ गए
फिर हम अपनी स्क्द्रप बुक
में गए, तो देखा जो स्क्रैप हमें
आ रहे थे, वो तो उनकी लिस्ट के
सभी फ्रिएंड्स को जा रहे थे
हमारा सर चकराया,
हमें काफी देर से होश आया
मेने कह यार भेजने वाले को तो
पता ही नही होगा कि हम कौन हे
वो तो सेंड टू आल फ्रेंड करके मौन हे
इधर हम उनके लिए नयी नयी कविता रच रहे हैं
उधर वो एक ही क्लिक में सबको खुश कर रहे हैं
फिर सोचा यार ये तो नेट कि दुनिया हे
जहा सभी कुछ तो वर्चुअल होता हे
तू यहाँ खामखा सेंटीमेंटल होता हे
अपनी स्क्रैप बुक में शानदार स्क्रैप
देखकर , भेजने वाले को दिल से सराहा
और सोचा यार ये कितना प्रेम करता हे हमसे
यूँ लिखने कि आदत के अनुसार सोचा
इसको भी कुछ अच्छा सा लिखा जाये
जो कि इसको हमारा प्रेम दर्शाए
हम सोचते रहे, १,२ दिन,
फिर एक सुन्दर सा शेर उसको
स्क्रैप किया, उसने तुंरत ही
उसका रिप्लाई किया
हमने सोचा यार ये तो दीवाना हे अपना
टाइम ही नही लगाता, हम फिर से रिप्लाई
करने के बारे में सोचने लगे
फिर एक दिन यूँ ही सोचते सोचते
हमारी निगाह ऑरकुट कि
टॉप स्टेटस लाइन पर पड़ी
लिखा था "try the new orkut"
हमसे जैसे ही क्लिक किया
स्क्रीन चेंज हो गया,
नए नए ओप्सन आ गए
फिर हम अपनी स्क्द्रप बुक
में गए, तो देखा जो स्क्रैप हमें
आ रहे थे, वो तो उनकी लिस्ट के
सभी फ्रिएंड्स को जा रहे थे
हमारा सर चकराया,
हमें काफी देर से होश आया
मेने कह यार भेजने वाले को तो
पता ही नही होगा कि हम कौन हे
वो तो सेंड टू आल फ्रेंड करके मौन हे
इधर हम उनके लिए नयी नयी कविता रच रहे हैं
उधर वो एक ही क्लिक में सबको खुश कर रहे हैं
फिर सोचा यार ये तो नेट कि दुनिया हे
जहा सभी कुछ तो वर्चुअल होता हे
तू यहाँ खामखा सेंटीमेंटल होता हे
Tuesday, September 14, 2010
रामआसरे...................
आज मुह लटकाए हुए
चुपचाप बैठा था
मेने पूछा क्या हुआ रामआसरे
कुछ नही बोला
बोला घर जा रहा हूँ
तो मेने कहा, ये तो ख़ुशी कि बात हे
बोला मै नहीं जा रहा,
मालिक भेज रहे हैं
टिकेट भी करबा दिया हे अडवांस में
मेने कहा ये तो और भी ख़ुशी कि बात हे
बरना तो कई बार टिकेट होता ही नही
धक्के खाकर जाना पड़ता हे
बोला वो बात नही,
अभी तो हम आये रहे हैं
पिछले महीने गाँव से
जब भी २० दिनों कि तन-खा
कटवाये रहे, तब माँ बीमार रही
उ कि दवा-दारू में पैसा लगाये रहे
अब फिर से जाना पड़ेगा
फिर १५-२० दिन कि तनखा कटेगी
क्युकी कॉमन वेअल्थ गेम हुई रह न
ऊ कि बजहा से ऑफिस/फैक्ट्री बंद रहेंगे
मालिक कहे रहे, जब ऑफिस बंद तो
तुम सबका छुट्टी,
ऐसे कैसे काम चलेगा,
उसी चिंता में घुले जा रहे हैं'
मैं भी सोच मै पड़ गया
रामआसरे क्या कहना चाह रहा हे
आखिर देश कि इज्जत का सवाल जो हे
हमें इतनी क़ुरबानी तो ही देनी होगी
सिर्फ १५-२० दिन कि ही तो बात हे
देश कि इज्जत बचाना जरुरी हे
चुपचाप बैठा था
मेने पूछा क्या हुआ रामआसरे
कुछ नही बोला
बोला घर जा रहा हूँ
तो मेने कहा, ये तो ख़ुशी कि बात हे
बोला मै नहीं जा रहा,
मालिक भेज रहे हैं
टिकेट भी करबा दिया हे अडवांस में
मेने कहा ये तो और भी ख़ुशी कि बात हे
बरना तो कई बार टिकेट होता ही नही
धक्के खाकर जाना पड़ता हे
बोला वो बात नही,
अभी तो हम आये रहे हैं
पिछले महीने गाँव से
जब भी २० दिनों कि तन-खा
कटवाये रहे, तब माँ बीमार रही
उ कि दवा-दारू में पैसा लगाये रहे
अब फिर से जाना पड़ेगा
फिर १५-२० दिन कि तनखा कटेगी
क्युकी कॉमन वेअल्थ गेम हुई रह न
ऊ कि बजहा से ऑफिस/फैक्ट्री बंद रहेंगे
मालिक कहे रहे, जब ऑफिस बंद तो
तुम सबका छुट्टी,
ऐसे कैसे काम चलेगा,
उसी चिंता में घुले जा रहे हैं'
मैं भी सोच मै पड़ गया
रामआसरे क्या कहना चाह रहा हे
आखिर देश कि इज्जत का सवाल जो हे
हमें इतनी क़ुरबानी तो ही देनी होगी
सिर्फ १५-२० दिन कि ही तो बात हे
देश कि इज्जत बचाना जरुरी हे
Monday, September 13, 2010
चकल्लस....................
आज कल सब कुछ फिक्स हे
बैसे ये फिक्सिंग शब्द क्रिकेट से शुरू हुआ
कॉमनवेअल्थ गेम से होता हुआ
इस साहित्य में भी आ पहुंचा
जहाँ तक प्रोफ़ेसिओनलिस्म कि बात हे
वहा तक तो ठीक हे,
लेकिन जहा सिर्फ लोग शौक पूरा
करते हैं, वह भी इसने पैर पासार लिए हैं
अब आप सोच रहे होंगे कि
ये यानि कि मैं, क्या ऊल-जलूल
बाते लिखता रहता हूँ
लेकिन करे क्या भैये,
रह ही नही पते
जब भी मामला इधर से
उधर होते हुए देखते हैं,
नही कहेंगे तो पेट दर्दियायेगा
और जब पेट में हलचल हो
तो शांत कैसे बैठ सकते हैं
लिखना तो पड़ेगा
तब न जाकर शांति मिलेगी
तो महानुभावों, मेरे कद्रदानो
अब हम सीधी मुद्दे कि बात पर आते हैं
और आपको वाकये से रूबरू करबाते हैं
हुआ यूँ कि एक महोदय
यूँ ही , खामखा नाराज हो गए
हो गए तो हो गए,बिना बात के
कौन पूछता हे, हो जाओ!
किसी ने ध्यान ही नही दिया
अब मिया फंस गए चक्कर में
क्या करे क्या न करे
कोई पूछता ही नही
फिर अपने किसी अजीज से कहा
यार तुम ही कुछ करो
किसी तरह से हमारा नाम उछालो
ऐसा कैसे चलेगा, कुछ करो
अब एक ढूढो हज़ार मिलते हैं
तो जनाब का काम चल गया
कई दिनों से सुप्त पड़ा नाम उछल गया
होने लगे तर्क-वितर्क
और वो मिया, उन्हें यही चाहिए था
दूर से तमाशा देख मुस्कराते रहे
हमें तो इसमें भी फिक्सिंग कि बू आ रही हे
मामला स्कोटलैंड- यार्ड पुलिस को सौंपना पड़ेगा
और फिक्सिंग के सारे आरोपिओं को
जनता के सामने लाना होगा
बैसे ये फिक्सिंग शब्द क्रिकेट से शुरू हुआ
कॉमनवेअल्थ गेम से होता हुआ
इस साहित्य में भी आ पहुंचा
जहाँ तक प्रोफ़ेसिओनलिस्म कि बात हे
वहा तक तो ठीक हे,
लेकिन जहा सिर्फ लोग शौक पूरा
करते हैं, वह भी इसने पैर पासार लिए हैं
अब आप सोच रहे होंगे कि
ये यानि कि मैं, क्या ऊल-जलूल
बाते लिखता रहता हूँ
लेकिन करे क्या भैये,
रह ही नही पते
जब भी मामला इधर से
उधर होते हुए देखते हैं,
नही कहेंगे तो पेट दर्दियायेगा
और जब पेट में हलचल हो
तो शांत कैसे बैठ सकते हैं
लिखना तो पड़ेगा
तब न जाकर शांति मिलेगी
तो महानुभावों, मेरे कद्रदानो
अब हम सीधी मुद्दे कि बात पर आते हैं
और आपको वाकये से रूबरू करबाते हैं
हुआ यूँ कि एक महोदय
यूँ ही , खामखा नाराज हो गए
हो गए तो हो गए,बिना बात के
कौन पूछता हे, हो जाओ!
किसी ने ध्यान ही नही दिया
अब मिया फंस गए चक्कर में
क्या करे क्या न करे
कोई पूछता ही नही
फिर अपने किसी अजीज से कहा
यार तुम ही कुछ करो
किसी तरह से हमारा नाम उछालो
ऐसा कैसे चलेगा, कुछ करो
अब एक ढूढो हज़ार मिलते हैं
तो जनाब का काम चल गया
कई दिनों से सुप्त पड़ा नाम उछल गया
होने लगे तर्क-वितर्क
और वो मिया, उन्हें यही चाहिए था
दूर से तमाशा देख मुस्कराते रहे
हमें तो इसमें भी फिक्सिंग कि बू आ रही हे
मामला स्कोटलैंड- यार्ड पुलिस को सौंपना पड़ेगा
और फिक्सिंग के सारे आरोपिओं को
जनता के सामने लाना होगा
Tuesday, September 7, 2010
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे
ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे
ढुंढता हूँ वो रिश्ते जो खो गए हें कही
कुछ इधर तो कुछ दीवारों के उधर हैं
...लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..
घुट घुट के जी रहा हूँ मैं इस कदर
यहाँ तो सांस लेना भी दूभर हे
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........
बाहर निकलता हूँ तो सुकून पाता हूँ
फिर ढूंढता हूँ मेरा आशियाँ किधर हे
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........
लोग मकां में रहने के आदि हैं "गौरव"
कहने को घर, तो बस दिखावा भर हें
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे...
ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे!
ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे
ढुंढता हूँ वो रिश्ते जो खो गए हें कही
कुछ इधर तो कुछ दीवारों के उधर हैं
...लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे..
घुट घुट के जी रहा हूँ मैं इस कदर
यहाँ तो सांस लेना भी दूभर हे
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........
बाहर निकलता हूँ तो सुकून पाता हूँ
फिर ढूंढता हूँ मेरा आशियाँ किधर हे
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे........
लोग मकां में रहने के आदि हैं "गौरव"
कहने को घर, तो बस दिखावा भर हें
लोग कहते हैं कि ये मेरा घर हे...
ये तो ईंट-गारे से चिना मकां भर हे!
Saturday, September 4, 2010
दोस्ती कि खातिर.....(HASYE)
हाँ आप भी सोच रहे होंगे ऐसा भी कही होता हे
लेकिन ये सच हे, जो में आपके सामने
रख रहा हूँ!
आखिर हमने भी आशिकी
करने का जिम्मा उठा ही लिया
दोस्त के कहने पर उनसे
टांका भिड़ाने का मन बना ही लिया,
बात उस समय कि हे जब हम जवानी कि
प्री नर्सरी क्लास में थे
दोस्त हमसे इस मामले
में काफी एक्सपेरिएंस हो चूका था
क्यूंकि वो आशिकी में
हमसे ३ महीने सिनिअर था,
हमने दोस्त से पूछा
शुरुआत कैसे करनी है
बोला कुछ नही करना हे
बस जब भी वो दिखे
उसकी तरफ देख जबरदस्ती मुस्कराना हे
धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना हे
हम बोले बस इत्ती सी बात
अगले दिन हम उस रास्ते पर खड़े हो गए
जहा वो टिउसन पढने आती थी
अपनी दोस्त के साथ,
जैसे ही वो हमें आती नजर आयीं
हमने अपनी कमीज कि आस्तीन चढ़ाई ,
जैसे ही वो हमारी आँखों के रेंज में आई
हमें बहुत ही भावुक मुस्कराहट आई
हमें तो इतना पता था कि हँसना हे
अब वो देखे या कोई और ..
उन्होंने तो देखा नही उनकी दोस्त ने
हमें घूर कर देखा, हमने कहा यार
ये तो क्रोस कनेक्सन हो गया
बैठे बिठाये लफड़ा हो गया
हमें मुस्कराते देख उनकी दोस्त
बही पर रुक गयी,
और बोली कोई प्रोब्लम हे क्या
में कहा नही जी,
बोली फिर कोई बीमारी हे
या हँसना तुम्हारी लाचारी हे
हमने हिम्मत बटोरी, और कहा
ऐसी कोई बात नही हे,
हम आपको देख कर नही मुस्कराए थे
तो फिर क्या हमारी सहेली को देखकर
हमें सोचा अब क्या काहे यार
ये कहाँ फंस गए,
दोस्त दूर खड़ा सब देख हंस रहा था
वो सोच रहा था कि मामला पट रहा था
हमने उनकी दोस्त को कहा, गलती हो गयी
अब हम जिन्दगी में कभी भी लड़की को
देखकर नही मुस्करायेंगे,
हमें मुआफी मागता देख वो होले से
मुस्कराई, बोली ठीक हे
आगे से ध्यान रखना
इस तरह खुले-आम आशिकी मत करना
अपनी नही तो हमारी इज्जत का
ख़याल रखना
गर बात करनी ही है तो सड़क पर नही
किसी मंदिर या शिवाले पर मिलना
उनके इतना कहते ही हमारी जान में जान आई
हमने इश्वर को धन्येबाद कर, अपनी आशिकी कि
अगली क्लास उसी के दरबार में लगाई!
लेकिन ये सच हे, जो में आपके सामने
रख रहा हूँ!
आखिर हमने भी आशिकी
करने का जिम्मा उठा ही लिया
दोस्त के कहने पर उनसे
टांका भिड़ाने का मन बना ही लिया,
बात उस समय कि हे जब हम जवानी कि
प्री नर्सरी क्लास में थे
दोस्त हमसे इस मामले
में काफी एक्सपेरिएंस हो चूका था
क्यूंकि वो आशिकी में
हमसे ३ महीने सिनिअर था,
हमने दोस्त से पूछा
शुरुआत कैसे करनी है
बोला कुछ नही करना हे
बस जब भी वो दिखे
उसकी तरफ देख जबरदस्ती मुस्कराना हे
धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना हे
हम बोले बस इत्ती सी बात
अगले दिन हम उस रास्ते पर खड़े हो गए
जहा वो टिउसन पढने आती थी
अपनी दोस्त के साथ,
जैसे ही वो हमें आती नजर आयीं
हमने अपनी कमीज कि आस्तीन चढ़ाई ,
जैसे ही वो हमारी आँखों के रेंज में आई
हमें बहुत ही भावुक मुस्कराहट आई
हमें तो इतना पता था कि हँसना हे
अब वो देखे या कोई और ..
उन्होंने तो देखा नही उनकी दोस्त ने
हमें घूर कर देखा, हमने कहा यार
ये तो क्रोस कनेक्सन हो गया
बैठे बिठाये लफड़ा हो गया
हमें मुस्कराते देख उनकी दोस्त
बही पर रुक गयी,
और बोली कोई प्रोब्लम हे क्या
में कहा नही जी,
बोली फिर कोई बीमारी हे
या हँसना तुम्हारी लाचारी हे
हमने हिम्मत बटोरी, और कहा
ऐसी कोई बात नही हे,
हम आपको देख कर नही मुस्कराए थे
तो फिर क्या हमारी सहेली को देखकर
हमें सोचा अब क्या काहे यार
ये कहाँ फंस गए,
दोस्त दूर खड़ा सब देख हंस रहा था
वो सोच रहा था कि मामला पट रहा था
हमने उनकी दोस्त को कहा, गलती हो गयी
अब हम जिन्दगी में कभी भी लड़की को
देखकर नही मुस्करायेंगे,
हमें मुआफी मागता देख वो होले से
मुस्कराई, बोली ठीक हे
आगे से ध्यान रखना
इस तरह खुले-आम आशिकी मत करना
अपनी नही तो हमारी इज्जत का
ख़याल रखना
गर बात करनी ही है तो सड़क पर नही
किसी मंदिर या शिवाले पर मिलना
उनके इतना कहते ही हमारी जान में जान आई
हमने इश्वर को धन्येबाद कर, अपनी आशिकी कि
अगली क्लास उसी के दरबार में लगाई!
Tuesday, August 31, 2010
ये स्टाइल हे काफी पुराना
न गीत हे, न मीत हे
हम अपने मनमीत हैं
प्यार होता हे क्या
ये गजलों से जाना
फिर भी न आया
हमसे बनना दीवाना
जब भी ख्यालों में
डूबे किसी के हम
निकली मन कि बात
बनके एक नज्म
उन्होंने पढ़ा उसको
इक दिन फुर्सत से
और बोले वाह वाह
आप शायर बहुत अच्छे
अब दिल कि बात
उन तक पहुचाएँ कैसे
जुबान से कह नही सकते
लिखते हैं तो शायर कहते
अब तुम ही बताओ
हम आशिक कैसे बनते
रास न आया हमको
दिल का लगाना
पढ़ के मेरी नज्म
वो बोले रहने भी दीजिये
ये स्टाइल हे काफी पुराना
हम अपने मनमीत हैं
प्यार होता हे क्या
ये गजलों से जाना
फिर भी न आया
हमसे बनना दीवाना
जब भी ख्यालों में
डूबे किसी के हम
निकली मन कि बात
बनके एक नज्म
उन्होंने पढ़ा उसको
इक दिन फुर्सत से
और बोले वाह वाह
आप शायर बहुत अच्छे
अब दिल कि बात
उन तक पहुचाएँ कैसे
जुबान से कह नही सकते
लिखते हैं तो शायर कहते
अब तुम ही बताओ
हम आशिक कैसे बनते
रास न आया हमको
दिल का लगाना
पढ़ के मेरी नज्म
वो बोले रहने भी दीजिये
ये स्टाइल हे काफी पुराना
Monday, August 23, 2010
ये बंधन तो प्यार का बंधन हे........
१- मेरी दीदी
हाँ अब बो नानी भी बन चुकी हे
लेकिन राखी बांधना नही भूली
राखी पर उनका फोन आ ही जाता हे
क्या प्रोग्राम हे , कब आ रहे हो
या हर बार कि तरह इस बार भी.....
राखी पोस्ट कर दूँ....
शादी के बाद ये बंधन इतना कमजोर
क्यूँ हो जाता हे.....
में दुविधा में सोचता ही रह जाता हूँ...
२. पत्नी
ए जी सुनो .......
मोनू इस बार भी नही आ पायेगा
मुझे ही उसको राखी बांधने जाना होगा
मेने दबी सी आवाज में कहा
दीदी का फोन आया था ....
उसने इग्नोर किया , और बोली..
शाम को ऑफिस से जल्दी आ जाना
मोनू के लिए राखी खरीदनी है
मेरी दुविधा काफी हद्द तक
ख़तम हो चुकी हे....
३..अंतर
भाई (मोनू) कि शादी हो चुकी हे...
इस बार मोनू का फोन आया
दीदी आप इस बार राखी पर मत आना
मैं शिवाली को उसके भाई के यहाँ लेकर जाऊंगा
पत्नी बड़बड़ाती है....
ये आज कल कि लडकिया तो
आते ही संबंधों में दरार डाल देती हैं
और मोनू को भी देखो
कितनी जल्दी उसका गुलाम बन बैठा
मेरी दुविधा का कोई अंत नही.....
हाँ अब बो नानी भी बन चुकी हे
लेकिन राखी बांधना नही भूली
राखी पर उनका फोन आ ही जाता हे
क्या प्रोग्राम हे , कब आ रहे हो
या हर बार कि तरह इस बार भी.....
राखी पोस्ट कर दूँ....
शादी के बाद ये बंधन इतना कमजोर
क्यूँ हो जाता हे.....
में दुविधा में सोचता ही रह जाता हूँ...
२. पत्नी
ए जी सुनो .......
मोनू इस बार भी नही आ पायेगा
मुझे ही उसको राखी बांधने जाना होगा
मेने दबी सी आवाज में कहा
दीदी का फोन आया था ....
उसने इग्नोर किया , और बोली..
शाम को ऑफिस से जल्दी आ जाना
मोनू के लिए राखी खरीदनी है
मेरी दुविधा काफी हद्द तक
ख़तम हो चुकी हे....
३..अंतर
भाई (मोनू) कि शादी हो चुकी हे...
इस बार मोनू का फोन आया
दीदी आप इस बार राखी पर मत आना
मैं शिवाली को उसके भाई के यहाँ लेकर जाऊंगा
पत्नी बड़बड़ाती है....
ये आज कल कि लडकिया तो
आते ही संबंधों में दरार डाल देती हैं
और मोनू को भी देखो
कितनी जल्दी उसका गुलाम बन बैठा
मेरी दुविधा का कोई अंत नही.....
Thursday, August 19, 2010
सेटिंग या जुगाड़
सेटिंग या जुगाड़
ये शब्द जितना छोटा हे
उतन ही प्रभावशाली हे
बिना जुगाड़ के आप सफल हो
बहुत ही कम होता हे,
एक दिन वाइफ ने कहा
आप सेट्टिंग क्यूँ नही करते
हमने गुस्सा दिखाया
वाइफ को धमकाया
ख़बरदार आगे कभी ऐसा कहा
हमसे ये सब नही होता,
बटरिंग बाज़ी,
हम रुखा-सुखा खाई के ही खुश हे
वाइफ गुस्से में बोली,
ठीक हे फिर ऐसी ही काटो जिन्दगी
फिर हमने वाइफ कि बात पर
गंभीर चिंतन किया
और सोचा यार आधी तो
ऐसी ही कट चुकी हे
अब नही कटने देंगे
आप लोग मलाई मारो
और हम रूखे में
नही, अब ऐसा नही होगा
मैं कितने दिन ठूंठ बना रहूँगा
जिसका तना सूखा हुआ हे,
जिस पर न टहनियां हैं
जिस न हरी पत्तियां हैं
न ही परिंदे आकर बैठते हैं
न ही राहगीर के लिए छाँव है
तो अब मेने भी सेट्टिंग शुरू कर दी
अब में भी हरा होने लगा हूँ
परिंदे भी आकर करलव करने लगे हैं
राहगीर भी छाँव पाने लगे हैं
में सोचता हूँ अगर में सेट्टिंग नहीं करता
तो मेरा अस्तित्व ख़त्म हो जाता
भले ही मेने इस अस्तित्व को बचाने में
अपनी आत्मा को बेच डाला हो,
ऐसा नही करता तो में मारा जाता
आज अस्तित्व कि लड़ाई हे
आत्मा या परमात्मा कि नही
जिसको हम रोज़ ही मारते हैं
आज मेरी एक शान हे, भले ही झूठी
मेरा एक स्वाभिमान हे, भले ही झूठा
लेकिन में जिन्दा हूँ, हूँ भी कि नही
मुझे इन पचड़ों में नही पड़ना
जान हे तो जहान हे
भले ही बाकि हिन्दुस्तान
शमशान हे
पता नही में क्या क्या लिख जाता हूँ
क्यूंकि लिखना मेरी मज़बूरी हे
क्यूंकि सेटिंग के बिना जिन्दगी अधूरी हे
अलोक जब भी लिखता हे ...कुछ यूँ ही लिखता हे
ये शब्द जितना छोटा हे
उतन ही प्रभावशाली हे
बिना जुगाड़ के आप सफल हो
बहुत ही कम होता हे,
एक दिन वाइफ ने कहा
आप सेट्टिंग क्यूँ नही करते
हमने गुस्सा दिखाया
वाइफ को धमकाया
ख़बरदार आगे कभी ऐसा कहा
हमसे ये सब नही होता,
बटरिंग बाज़ी,
हम रुखा-सुखा खाई के ही खुश हे
वाइफ गुस्से में बोली,
ठीक हे फिर ऐसी ही काटो जिन्दगी
फिर हमने वाइफ कि बात पर
गंभीर चिंतन किया
और सोचा यार आधी तो
ऐसी ही कट चुकी हे
अब नही कटने देंगे
आप लोग मलाई मारो
और हम रूखे में
नही, अब ऐसा नही होगा
मैं कितने दिन ठूंठ बना रहूँगा
जिसका तना सूखा हुआ हे,
जिस पर न टहनियां हैं
जिस न हरी पत्तियां हैं
न ही परिंदे आकर बैठते हैं
न ही राहगीर के लिए छाँव है
तो अब मेने भी सेट्टिंग शुरू कर दी
अब में भी हरा होने लगा हूँ
परिंदे भी आकर करलव करने लगे हैं
राहगीर भी छाँव पाने लगे हैं
में सोचता हूँ अगर में सेट्टिंग नहीं करता
तो मेरा अस्तित्व ख़त्म हो जाता
भले ही मेने इस अस्तित्व को बचाने में
अपनी आत्मा को बेच डाला हो,
ऐसा नही करता तो में मारा जाता
आज अस्तित्व कि लड़ाई हे
आत्मा या परमात्मा कि नही
जिसको हम रोज़ ही मारते हैं
आज मेरी एक शान हे, भले ही झूठी
मेरा एक स्वाभिमान हे, भले ही झूठा
लेकिन में जिन्दा हूँ, हूँ भी कि नही
मुझे इन पचड़ों में नही पड़ना
जान हे तो जहान हे
भले ही बाकि हिन्दुस्तान
शमशान हे
पता नही में क्या क्या लिख जाता हूँ
क्यूंकि लिखना मेरी मज़बूरी हे
क्यूंकि सेटिंग के बिना जिन्दगी अधूरी हे
अलोक जब भी लिखता हे ...कुछ यूँ ही लिखता हे
Wednesday, August 18, 2010
गुलामी और आज़ादी .......
.
एक दिन हमारी श्रीमती जी का
परा सातवे आसमान के पार पहुच गया
बोली मेरी किस्मत फूट गयी
जो तुमसे मेरी शादी हुई
इससे तो होती ही नही, तो ही अच्छी थी
मेने कहा प्रिये, सिर्फ १३ साल में ही
हमसे ऊब गयी,
लगता हे तुम सच्ची हिन्दुस्तानी नही हो
कही से इम्पोर्ट किया हुआ आइटम हो
बोली क्या फालतू बकवास करते हो
मेरे हिन्दुस्तानी होने पर शक करते हो
मेने कहा अभी आपने जो कहा
उसी से अंदाज़ा लगाया हे हमने
अरे अगर तुम सच्ची हिन्दुस्तानी होती
तो उनके सब्र कि तरह अपना भी सब्र रखती
उनको देखो वो पिछले ६३ साल से नही ऊबे
उन्होंने तो कभी नही कहा
कि आज़ादी क्यूँ मिली
इससे तो गुलाम ही अच्छे थे
देखो वो आज भी कितनी शिद्दत से
अपनी आज़ादी का जश्न मनाते हैं
जिन्हें न सोने को छत
ना खाने को रोटी, न पीने का पानी
फिर भी उनके जज्बे को देखो
सीखो उनसे से कुछ,
जिन्हें कुछ भी मयस्सर नही हे
वो भी कहते हे कि हम आज़ाद हे
तुम्हे तो ये सब हासिल हे
फिर भी कहती हो कि
गुलामी कि जिन्दगी नही जीनी
श्रीमती जी कि समझ में
कुछ आया , कुछ नही आया
बोली, आप भी कितने अजीब हैं
हम कौन से रोज़ रोज़ नाराज होते हैं
जब भी होते हैं, आप ऐसे ही हमें
समझा देते हैं, लोग तो
आज़ादी का जश्न मनाते हैं
लेकिन आप तो हमें नही मनाते हैं
मेने मन ही मन सोचा
यार श्रीमती जी सच कह रही हे
ये तो बैसे भी घर का मामला हे
यहाँ कौन देख रहा हे, मना ही लेता हूँ
ये कौन सी गुलामी हे
आज़ादी का जश्न भी तो हम मनाते हैं
क्या हम हकीकत में आजाद हैं
मेरी सोच इस गुलामी और आज़ादी
कि चक्कर को समझने में भटक गयी
मेरी कलम भी अब यही पे अटक गई
परा सातवे आसमान के पार पहुच गया
बोली मेरी किस्मत फूट गयी
जो तुमसे मेरी शादी हुई
इससे तो होती ही नही, तो ही अच्छी थी
मेने कहा प्रिये, सिर्फ १३ साल में ही
हमसे ऊब गयी,
लगता हे तुम सच्ची हिन्दुस्तानी नही हो
कही से इम्पोर्ट किया हुआ आइटम हो
बोली क्या फालतू बकवास करते हो
मेरे हिन्दुस्तानी होने पर शक करते हो
मेने कहा अभी आपने जो कहा
उसी से अंदाज़ा लगाया हे हमने
अरे अगर तुम सच्ची हिन्दुस्तानी होती
तो उनके सब्र कि तरह अपना भी सब्र रखती
उनको देखो वो पिछले ६३ साल से नही ऊबे
उन्होंने तो कभी नही कहा
कि आज़ादी क्यूँ मिली
इससे तो गुलाम ही अच्छे थे
देखो वो आज भी कितनी शिद्दत से
अपनी आज़ादी का जश्न मनाते हैं
जिन्हें न सोने को छत
ना खाने को रोटी, न पीने का पानी
फिर भी उनके जज्बे को देखो
सीखो उनसे से कुछ,
जिन्हें कुछ भी मयस्सर नही हे
वो भी कहते हे कि हम आज़ाद हे
तुम्हे तो ये सब हासिल हे
फिर भी कहती हो कि
गुलामी कि जिन्दगी नही जीनी
श्रीमती जी कि समझ में
कुछ आया , कुछ नही आया
बोली, आप भी कितने अजीब हैं
हम कौन से रोज़ रोज़ नाराज होते हैं
जब भी होते हैं, आप ऐसे ही हमें
समझा देते हैं, लोग तो
आज़ादी का जश्न मनाते हैं
लेकिन आप तो हमें नही मनाते हैं
मेने मन ही मन सोचा
यार श्रीमती जी सच कह रही हे
ये तो बैसे भी घर का मामला हे
यहाँ कौन देख रहा हे, मना ही लेता हूँ
ये कौन सी गुलामी हे
आज़ादी का जश्न भी तो हम मनाते हैं
क्या हम हकीकत में आजाद हैं
मेरी सोच इस गुलामी और आज़ादी
कि चक्कर को समझने में भटक गयी
मेरी कलम भी अब यही पे अटक गई
Tuesday, August 17, 2010
एक बार और जग जाओ..........
में थक गया,
कितना लिखू, क्या लिखू
मुझे नही था संज्ञान कि ये
जिन्दा-मुर्दों कि बस्ती हे
मुर्दों कि भी कही आत्माए जागती हे
शैतानो को भी, कभी शर्म आती हे
कब तक यूँ ही देख देख कर, खून खौलाता रहूँगा
अब बस, अब कलम तोडनी पड़ेगी
हाँ अब कलम छोडनी पड़ेगी
उठानी हो होगी बन्दूक,
और बनानी होगी निशाना
उस शैतान कि खोपड़ी
जिसने हमें इतने सालो से छला हे
जो हमारी मात्र भूमि पर वला हे
अपनी मात्र-भूमि को आजाद कराना होगा
वो कितने सालों से सो नही पाई हे
इन शैतानो ने उसका बलात्कार किया हे
जागो मेरे भारत के सच्चे सपूतों
एक बार और जग जाओ
अगर तुम आज जाग जाओगे
तो आने वाली पीढ़ी का भाग्य बनाओगे
और उन शहीदों कि आत्माओं को
जिन्होंने इस मात्रभूमि को
हमारे लिए आजाद कराया था
को सच्ची श्रधाअंजली दे पाओगे
......अलोक खरे
.....
कितना लिखू, क्या लिखू
मुझे नही था संज्ञान कि ये
जिन्दा-मुर्दों कि बस्ती हे
मुर्दों कि भी कही आत्माए जागती हे
शैतानो को भी, कभी शर्म आती हे
कब तक यूँ ही देख देख कर, खून खौलाता रहूँगा
अब बस, अब कलम तोडनी पड़ेगी
हाँ अब कलम छोडनी पड़ेगी
उठानी हो होगी बन्दूक,
और बनानी होगी निशाना
उस शैतान कि खोपड़ी
जिसने हमें इतने सालो से छला हे
जो हमारी मात्र भूमि पर वला हे
अपनी मात्र-भूमि को आजाद कराना होगा
वो कितने सालों से सो नही पाई हे
इन शैतानो ने उसका बलात्कार किया हे
जागो मेरे भारत के सच्चे सपूतों
एक बार और जग जाओ
अगर तुम आज जाग जाओगे
तो आने वाली पीढ़ी का भाग्य बनाओगे
और उन शहीदों कि आत्माओं को
जिन्होंने इस मात्रभूमि को
हमारे लिए आजाद कराया था
को सच्ची श्रधाअंजली दे पाओगे
......अलोक खरे
.....
Sunday, August 15, 2010
आज़ादी का गीत ......
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिता हमारा
आम आदमी हे यहाँ कितना मगर बेचारा,
सारे जहाँ से अच्छा........
चारों तरफ हे जिसके, भुखमरी, गरीबी कि दुनिया
बेईमान हैं , हम भ्रष्ट हैं, यही है हमारा नारा,
सारे जहाँ से अच्छा..........
निकम्मी हे ये सरकार, बेईमान हे इसके मंत्री
योजनाओं के नाम पर तो, सारा पैसा हे हमारा,
सारे जहाँ से अच्छा ....
घोषणाओं पे घोषणा करते, नहीं थकते हमारे नेता
आम आदमी तो बस, इंतजार करता रहता बेचारा,
सारे जहाँ से अच्छा .......
पूछती हे ये जनता, ओ तुमसे निकम्मों नेता
लालची हो तुम कितने,और पेट कितना बड़ा तुम्हारा,
सारे जहाँ से अच्छा ..........
अब तो करो तुम ओ नेता, कुछ तो शर्म जरा सी
अब तो निकल चूका हे, इज्जत का जनाजा तुम्हारा,
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिता हमारा
आम आदमी हे यहाँ कितना मगर बेचारा,
आम आदमी हे यहाँ कितना मगर बेचारा,
सारे जहाँ से अच्छा........
चारों तरफ हे जिसके, भुखमरी, गरीबी कि दुनिया
बेईमान हैं , हम भ्रष्ट हैं, यही है हमारा नारा,
सारे जहाँ से अच्छा..........
निकम्मी हे ये सरकार, बेईमान हे इसके मंत्री
योजनाओं के नाम पर तो, सारा पैसा हे हमारा,
सारे जहाँ से अच्छा ....
घोषणाओं पे घोषणा करते, नहीं थकते हमारे नेता
आम आदमी तो बस, इंतजार करता रहता बेचारा,
सारे जहाँ से अच्छा .......
पूछती हे ये जनता, ओ तुमसे निकम्मों नेता
लालची हो तुम कितने,और पेट कितना बड़ा तुम्हारा,
सारे जहाँ से अच्छा ..........
अब तो करो तुम ओ नेता, कुछ तो शर्म जरा सी
अब तो निकल चूका हे, इज्जत का जनाजा तुम्हारा,
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिता हमारा
आम आदमी हे यहाँ कितना मगर बेचारा,
Saturday, August 14, 2010
ये कैसी आज़ादी....................
आज़ादी मोडर्न इंडिया
का सबसे भद्दा मजाक
जो हम करते चले आ रहे है
पिछले ६२ साल से
मेने अंग्रेजो का शासन नही देखा,
लोग कहते हे कि हम उस वक़्त
गुलाम थे "अंग्रेजों के"
अब किसके गुलाम हे
गुलामी कहना तो ठीक नही है
हाँ, अपनों से ही ठगे जा रहे हैं हम!
मेने सुना था अंग्रेजों के शासन में
किसी को कुछ भी बोलने कि आज़ादी नही थी
लेकिन अब हे, हम कुछ भी बोल सकते हैं
लेकिन क्या उसका किसी को कोई फर्क पड़ता हे
नही , नही पड़ता, आप चिल्लाइये , रोईये ,
गिड़गिड़ाइए कुछ भी करिए,
यहाँ तक कि आत्महत्या करिए
किसी को कोई भी फर्क नही पड़ता
मेरे हिसाब से हमको आज़ादी बस इसी
बात कि मिली हे, कि आप प्रदर्शन
धरना या आत्महत्या कुछ भी कर सकते हैं
किसी भी राजनेता/अफसर को गाली दे सकते हैं
जो शायद उस वक़्त नही था
ये आज़ादी हमको मिली हे
जी हाँ बस यही आज़ादी मिली हे
आप कहते हे कि हम आज़ाद हैं
खुशिया मनाओ, कि पहले
हमें अंग्रेज लूट रहे थे
अब हमें अपने ही चुनिन्दा लोग
लूट रहे हे!,
हमें बस लुटना हे,
लूटने वाले कौन हे
अगर वो अंग्रेज हे
तो हम गुलाम कहलायेंगे
अगर वो हिन्दुस्तानी हे
तो हम आज़ाद गुलाम कहलायेंगे
अगर इसीका नाम आज़ादी हे
तो आप खुश होइए,
में आपकी ख़ुशी में शामिल नही
जिस दिन हमें इन अपने घर वाले
लुटेरों से आज़ादी मिल जाएगी
तब जाकर हम आज़ाद होंगे
किस खुशफ़हमी में आप जी रहे हैं
अगर आज़ादी का मतलब तिरंगा हे
कम से कम उसका तो अपमान न करो
यूँ लालकिले पर फेह्राकर लुटेरों के हाथों
उसे सरेआम न करो
ये कैसी आज़ादी हे
बताइए ना!
का सबसे भद्दा मजाक
जो हम करते चले आ रहे है
पिछले ६२ साल से
मेने अंग्रेजो का शासन नही देखा,
लोग कहते हे कि हम उस वक़्त
गुलाम थे "अंग्रेजों के"
अब किसके गुलाम हे
गुलामी कहना तो ठीक नही है
हाँ, अपनों से ही ठगे जा रहे हैं हम!
मेने सुना था अंग्रेजों के शासन में
किसी को कुछ भी बोलने कि आज़ादी नही थी
लेकिन अब हे, हम कुछ भी बोल सकते हैं
लेकिन क्या उसका किसी को कोई फर्क पड़ता हे
नही , नही पड़ता, आप चिल्लाइये , रोईये ,
गिड़गिड़ाइए कुछ भी करिए,
यहाँ तक कि आत्महत्या करिए
किसी को कोई भी फर्क नही पड़ता
मेरे हिसाब से हमको आज़ादी बस इसी
बात कि मिली हे, कि आप प्रदर्शन
धरना या आत्महत्या कुछ भी कर सकते हैं
किसी भी राजनेता/अफसर को गाली दे सकते हैं
जो शायद उस वक़्त नही था
ये आज़ादी हमको मिली हे
जी हाँ बस यही आज़ादी मिली हे
आप कहते हे कि हम आज़ाद हैं
खुशिया मनाओ, कि पहले
हमें अंग्रेज लूट रहे थे
अब हमें अपने ही चुनिन्दा लोग
लूट रहे हे!,
हमें बस लुटना हे,
लूटने वाले कौन हे
अगर वो अंग्रेज हे
तो हम गुलाम कहलायेंगे
अगर वो हिन्दुस्तानी हे
तो हम आज़ाद गुलाम कहलायेंगे
अगर इसीका नाम आज़ादी हे
तो आप खुश होइए,
में आपकी ख़ुशी में शामिल नही
जिस दिन हमें इन अपने घर वाले
लुटेरों से आज़ादी मिल जाएगी
तब जाकर हम आज़ाद होंगे
किस खुशफ़हमी में आप जी रहे हैं
अगर आज़ादी का मतलब तिरंगा हे
कम से कम उसका तो अपमान न करो
यूँ लालकिले पर फेह्राकर लुटेरों के हाथों
उसे सरेआम न करो
ये कैसी आज़ादी हे
बताइए ना!
aap beeti.........................kuch yun hi
एक दिन में दफ्तर आने में लेट हो गया
ये ही कोई घंटा दो घंटा
बॉस उस दिन इत्तेफाक से
टाइम पर आ गए,
जैसे ही में दफ्तर में घुसा
चपरासी मेरी टेबल पर आया
और बॉस का फरमान हमें सुनाया
में गुस्से में था, लेट होना कुछ परेशानी
कि बजहा थी
में मुआमले को भांपते हुए
जोरो से चिल्लाया,
तू पहले पानी क्यूँ नहीं लाया
चल जा पहले पानी पिला,
मेने अपने स्टाइल में बॉस
को सूचित कर दिया
कि अगर उल्टा पुल्टा कुछ कहा
तो समझ लेना, पारा मेरा भी हाई हे
पानी पीकर जैसे ही अपना
तमतमाया हुआ चेहरा लेकर
बॉस के केबिन में पहुंचे,
बॉस मुस्कराया, और बोला
अलोक यार वो जो कल बात हुई थी
वो कम हो गया क्या,
हमने कहा आज हो जायेगा
बॉस बोला यार थोडा जल्दी कर देना,
बैंक में रिपोर्ट सबमिट करनी हे
फिर धीरे से बोला , क्या हो गया आज
कोई प्रोब्लम हे क्या
मेने कहा नही तो,
हम दोनों ही उस बात को
टालने कि फिराक में थे
जिससे दोनों कि इज्जत बनी रहे
बॉस बोला फिर ठीक हे
रिपोर्ट जरा जल्दी बना देना
में ओके बॉस करके चला आया
और मन ही मन मुस्कराया
फिर मुझे बॉस कि समझ पर
यकीन हो आया
कि यार ये बॉस बनने लायक ही हे
तभी ये बॉस हे
ये ही कोई घंटा दो घंटा
बॉस उस दिन इत्तेफाक से
टाइम पर आ गए,
जैसे ही में दफ्तर में घुसा
चपरासी मेरी टेबल पर आया
और बॉस का फरमान हमें सुनाया
में गुस्से में था, लेट होना कुछ परेशानी
कि बजहा थी
में मुआमले को भांपते हुए
जोरो से चिल्लाया,
तू पहले पानी क्यूँ नहीं लाया
चल जा पहले पानी पिला,
मेने अपने स्टाइल में बॉस
को सूचित कर दिया
कि अगर उल्टा पुल्टा कुछ कहा
तो समझ लेना, पारा मेरा भी हाई हे
पानी पीकर जैसे ही अपना
तमतमाया हुआ चेहरा लेकर
बॉस के केबिन में पहुंचे,
बॉस मुस्कराया, और बोला
अलोक यार वो जो कल बात हुई थी
वो कम हो गया क्या,
हमने कहा आज हो जायेगा
बॉस बोला यार थोडा जल्दी कर देना,
बैंक में रिपोर्ट सबमिट करनी हे
फिर धीरे से बोला , क्या हो गया आज
कोई प्रोब्लम हे क्या
मेने कहा नही तो,
हम दोनों ही उस बात को
टालने कि फिराक में थे
जिससे दोनों कि इज्जत बनी रहे
बॉस बोला फिर ठीक हे
रिपोर्ट जरा जल्दी बना देना
में ओके बॉस करके चला आया
और मन ही मन मुस्कराया
फिर मुझे बॉस कि समझ पर
यकीन हो आया
कि यार ये बॉस बनने लायक ही हे
तभी ये बॉस हे
Thursday, July 29, 2010
बहस बराबर छिड़ती हे...........
जैसे ही एक मनचले सिरफिरे ने
शांत सुन्दर कमल से सजे हुए
तालाब में एक भाई-भरकम
पत्थर जोरों से फेंका,
एक जोरदार छपाक कि
आवाज हुई, शांति भंग हुई
कुछ क्षण के लिए,
तालाब बापिस अपनी
धीर -गंभीर मुद्रा में
बापिस आ गया,
लेकिन उस शोर कि
आवाज सुन कुछ विशेष
तथाकथित ख्याति प्राप्त
विशेषग्ये बहा इकठ्ठे हो गए,
बहस जोरो कि छिड़ गयी
कोई पत्थर कितना बजनी था
ये पता लगाने में जुट गया
कोई पत्थर र्गिरने से हुई आवाज
कि फ्रेकुएंसी जानने में लग गया
कोई कितना पानी उछलकर
तालाब से बाहर छिटक गया
इसकी जानकारी जुटाने में लग गया
एक साहब ने तो कमल ही कर दिया
उन्होंने तालाब कि उत्पत्ति पर ही सवाल
खड़े कर दिए, उनके समर्थन में कई और
लोग भी उन्ही कि भाषा में बात करने लगे
बात तालाब से शुरू हुई
और महासागर तक जा पहुची
किसी एक ने उन महासागरों कि
उत्पत्ति और सार्थकता पर गंभीर
प्रश्नचिन्ह लगा दिया, और अपने
अपने दूषित तथ्यों से न जाने
क्या क्या कह दिया, लोगो कि
भावनाओ को आहत कर दिया,
सभी विशेषग्ये आपस में भिड़ गए
और पत्थर फेंकने वाला चुपचाप
तमाशा देखता रहा, मुस्कराता रहा
ये सब देख में सोचने लगा
कि कही भी कुछ फर्क नही हे
चाहे वो पार्लियामेंट हो
या साहित्य का दरबार
बहस बराबर छिड़ती हे
कई बार बहस मुद्दों पर होती हे
कई बार बहस के लिए मुद्दे ढूंढे जाते हैं
लेकिन इस सब से किसको क्या
फ़ायदा होता हे ये कोई नही जनता
शायद उस मनचले-सिरफिरे को
कुछ पता हो..........
शांत सुन्दर कमल से सजे हुए
तालाब में एक भाई-भरकम
पत्थर जोरों से फेंका,
एक जोरदार छपाक कि
आवाज हुई, शांति भंग हुई
कुछ क्षण के लिए,
तालाब बापिस अपनी
धीर -गंभीर मुद्रा में
बापिस आ गया,
लेकिन उस शोर कि
आवाज सुन कुछ विशेष
तथाकथित ख्याति प्राप्त
विशेषग्ये बहा इकठ्ठे हो गए,
बहस जोरो कि छिड़ गयी
कोई पत्थर कितना बजनी था
ये पता लगाने में जुट गया
कोई पत्थर र्गिरने से हुई आवाज
कि फ्रेकुएंसी जानने में लग गया
कोई कितना पानी उछलकर
तालाब से बाहर छिटक गया
इसकी जानकारी जुटाने में लग गया
एक साहब ने तो कमल ही कर दिया
उन्होंने तालाब कि उत्पत्ति पर ही सवाल
खड़े कर दिए, उनके समर्थन में कई और
लोग भी उन्ही कि भाषा में बात करने लगे
बात तालाब से शुरू हुई
और महासागर तक जा पहुची
किसी एक ने उन महासागरों कि
उत्पत्ति और सार्थकता पर गंभीर
प्रश्नचिन्ह लगा दिया, और अपने
अपने दूषित तथ्यों से न जाने
क्या क्या कह दिया, लोगो कि
भावनाओ को आहत कर दिया,
सभी विशेषग्ये आपस में भिड़ गए
और पत्थर फेंकने वाला चुपचाप
तमाशा देखता रहा, मुस्कराता रहा
ये सब देख में सोचने लगा
कि कही भी कुछ फर्क नही हे
चाहे वो पार्लियामेंट हो
या साहित्य का दरबार
बहस बराबर छिड़ती हे
कई बार बहस मुद्दों पर होती हे
कई बार बहस के लिए मुद्दे ढूंढे जाते हैं
लेकिन इस सब से किसको क्या
फ़ायदा होता हे ये कोई नही जनता
शायद उस मनचले-सिरफिरे को
कुछ पता हो..........
Wednesday, July 28, 2010
कल्लू धोबी और सरकार
.......
कई दिनों से कल्लू धोबी
घर नही आया,
हम कारण जानने उसके घर पहुंचे
देखा वो अपने गधे को नेहला रहा था
हमने कहा कल्लू भाई आज कल कोई खास बात
कई दिनों से आये नही कपडे लेने
बोला साहिब अब मेने कपडे धोने
का कम दिया है छोड़ ,
हमने तुरंत कहा तभी
गधे को धो रहे हो
वो गुस्से से तमतमाया
बोला ख़बरदार साहिब
इसको गधा नहीं कहना कभी
इसको हम रोज़ लक्स साबुन से नहलाते हैं
रत-दिन इसको घोडा बनने के गुर सिखाते हैं
देख नही रहे ये सलेटी से सफ़ेद हो गया है
इसके बदलने में ज्यादा वक़्त नही रह गया हे
बस कुछ दिन कि बात और हे
ये आपको पहचान में नही आएगा
क्यूंकि ये गधे से घोडा बन जायेगा
हमने आश्चर्ये से कल्लू धोबी कि
और देखा, फिर मन ही मन सोचा
बैसे ये कल्लू धोबी गलत क्या कर रहा हे
ये भी तो सरकारी नीतिओं पर चल रहा हे
हमारी सरकार भी तो यही कर रही हे
वो भी कॉमन वेल्थ गेम पर
पानी कि तरह पैसा बहा रही हे
कहती हे कि दिल्ली को पेरिस बनाना हे
इस हिन्दुस्तान कि गरीबी को छिपाना हे
यहाँ स्टेडियम पर स्टेडियम बन रहे हैं
उधर पूरे देश में खुले में अनाज सड़ रहे हैं
अगर इसका मामूली सा हिस्सा
इस अनाज को सहेजने में लगाया होता
तो आज न जाने कितने लोगो को
भुकमरी से मरने से बचाया होता
में मन ही मन सोच रहा था
कल्लू धोबी तो अपने गधे पर
अपना ही पैसा बहा रहा हे
लेकिन ये निकम्मी सरकार
आम आदमी के टैक्स का पैसा
खालिस दिल्ली पे लगा रही हे
और आम जनता को गेम के बहाने
उन्ही को चूना लगा रही हे
कई दिनों से कल्लू धोबी
घर नही आया,
हम कारण जानने उसके घर पहुंचे
देखा वो अपने गधे को नेहला रहा था
हमने कहा कल्लू भाई आज कल कोई खास बात
कई दिनों से आये नही कपडे लेने
बोला साहिब अब मेने कपडे धोने
का कम दिया है छोड़ ,
हमने तुरंत कहा तभी
गधे को धो रहे हो
वो गुस्से से तमतमाया
बोला ख़बरदार साहिब
इसको गधा नहीं कहना कभी
इसको हम रोज़ लक्स साबुन से नहलाते हैं
रत-दिन इसको घोडा बनने के गुर सिखाते हैं
देख नही रहे ये सलेटी से सफ़ेद हो गया है
इसके बदलने में ज्यादा वक़्त नही रह गया हे
बस कुछ दिन कि बात और हे
ये आपको पहचान में नही आएगा
क्यूंकि ये गधे से घोडा बन जायेगा
हमने आश्चर्ये से कल्लू धोबी कि
और देखा, फिर मन ही मन सोचा
बैसे ये कल्लू धोबी गलत क्या कर रहा हे
ये भी तो सरकारी नीतिओं पर चल रहा हे
हमारी सरकार भी तो यही कर रही हे
वो भी कॉमन वेल्थ गेम पर
पानी कि तरह पैसा बहा रही हे
कहती हे कि दिल्ली को पेरिस बनाना हे
इस हिन्दुस्तान कि गरीबी को छिपाना हे
यहाँ स्टेडियम पर स्टेडियम बन रहे हैं
उधर पूरे देश में खुले में अनाज सड़ रहे हैं
अगर इसका मामूली सा हिस्सा
इस अनाज को सहेजने में लगाया होता
तो आज न जाने कितने लोगो को
भुकमरी से मरने से बचाया होता
में मन ही मन सोच रहा था
कल्लू धोबी तो अपने गधे पर
अपना ही पैसा बहा रहा हे
लेकिन ये निकम्मी सरकार
आम आदमी के टैक्स का पैसा
खालिस दिल्ली पे लगा रही हे
और आम जनता को गेम के बहाने
उन्ही को चूना लगा रही हे
Tuesday, July 20, 2010
चाय कि चाह ...........................
बहुत दिनों के बाद , एक बहुत ही अच्छी
फ्रिएंड्स रेकुएस्ट हमारे ऑरकुट पर आई
हमने झट-पट उनका प्रोफाइल टटोला
और सोचा एड करो लो मिया,
इस प्रोफाइल हमने कोई नही पाया घोटाला
अभी तक तो हमें ज्यादातर S.t.d call
ही आते थे. बहुत दिनों के बाद लोकल काल आई
हमने तुरंत उनकी फ्रिएंड्स रेकुएस्ट एक्सेप्ट कर
अपनी दोस्ती कि मोहर उनकी दोस्ती पर लगायी
और फटाफट उनको अपनी लिस्ट में एड कर डाला
अब मामला चूँकि लोकल था
हमने तुरंत अपनी दोस्ती को
बिना टाइम गबाये टॉप गेअर में डाला
और मोह्तिर्मा के सामने इक चाय का
ऑफर बाड़ी शिद्दत से रख डाला
अब रोज जब भी मिलते "ऑरकुट पर"
बही रटा रटाया सवाल , चाय कि चाह हे
कब पूरी कर रही हे, वो भी वही रटा रटाया
जवाब देती , हाँ जी आ जाइये जब पीनी हो
सिलसिला यूँ ही चलता रहा,
बिना दूध /चीनी के चाय बनती रही
वो पिलाती रही , और हम पीते रहे
एक दिन वो खीज ही गयी
बोली , जब देखो सभी लोग
चाय कि बात करते हैं, कब पिला रही हे,
हमने तुरंत उनके टेम्पेर को भांपा
और कहा मैडम जी बात वो नही हे
बात ये हे कि , लोग चाय कि चाह नही
उनको तो आपसे मिलने कि चाह हे,
बोली ये तो हमें भी मालूम हे
सोच रही हूँ, कि सभी को
चाय पर इनविटे कर लूँ
एक ही साथ सबकी चाह पूरी कर दूँ
हमें कहा कोई बुराई नही हे इसमें
जब चाय का ऑफर दे तो
साथ में बोल दे कि हमारी अन्नेवेर्सोरी है
इसीलिए चाय पर सभी को बुलाया हे
अब गिफ्ट के लिया मना भी क्या करूं
तो लोग बिना लाये हुए मानेंगे नही
क्यूंकि सभी दोस्त बहुत ही समझदार हे
हमें आप सभी का बड़ी शिद्दत से इंतजार हे
आना भूलियेगा नही,
इसी उम्मीद से, कि आप अब चाय
ठंडी नही होने देंगे,
अपनी दोस्ती कि गर्माहट को
यूँ ही बरक़रार रखेंगे
फ्रिएंड्स रेकुएस्ट हमारे ऑरकुट पर आई
हमने झट-पट उनका प्रोफाइल टटोला
और सोचा एड करो लो मिया,
इस प्रोफाइल हमने कोई नही पाया घोटाला
अभी तक तो हमें ज्यादातर S.t.d call
ही आते थे. बहुत दिनों के बाद लोकल काल आई
हमने तुरंत उनकी फ्रिएंड्स रेकुएस्ट एक्सेप्ट कर
अपनी दोस्ती कि मोहर उनकी दोस्ती पर लगायी
और फटाफट उनको अपनी लिस्ट में एड कर डाला
अब मामला चूँकि लोकल था
हमने तुरंत अपनी दोस्ती को
बिना टाइम गबाये टॉप गेअर में डाला
और मोह्तिर्मा के सामने इक चाय का
ऑफर बाड़ी शिद्दत से रख डाला
अब रोज जब भी मिलते "ऑरकुट पर"
बही रटा रटाया सवाल , चाय कि चाह हे
कब पूरी कर रही हे, वो भी वही रटा रटाया
जवाब देती , हाँ जी आ जाइये जब पीनी हो
सिलसिला यूँ ही चलता रहा,
बिना दूध /चीनी के चाय बनती रही
वो पिलाती रही , और हम पीते रहे
एक दिन वो खीज ही गयी
बोली , जब देखो सभी लोग
चाय कि बात करते हैं, कब पिला रही हे,
हमने तुरंत उनके टेम्पेर को भांपा
और कहा मैडम जी बात वो नही हे
बात ये हे कि , लोग चाय कि चाह नही
उनको तो आपसे मिलने कि चाह हे,
बोली ये तो हमें भी मालूम हे
सोच रही हूँ, कि सभी को
चाय पर इनविटे कर लूँ
एक ही साथ सबकी चाह पूरी कर दूँ
हमें कहा कोई बुराई नही हे इसमें
जब चाय का ऑफर दे तो
साथ में बोल दे कि हमारी अन्नेवेर्सोरी है
इसीलिए चाय पर सभी को बुलाया हे
अब गिफ्ट के लिया मना भी क्या करूं
तो लोग बिना लाये हुए मानेंगे नही
क्यूंकि सभी दोस्त बहुत ही समझदार हे
हमें आप सभी का बड़ी शिद्दत से इंतजार हे
आना भूलियेगा नही,
इसी उम्मीद से, कि आप अब चाय
ठंडी नही होने देंगे,
अपनी दोस्ती कि गर्माहट को
यूँ ही बरक़रार रखेंगे
Saturday, June 26, 2010
मैंने तुम्हे कुछ इस तरहा से जाना है...........
मैंने तुम्हे कुछ इस तरहा से जाना है की तुम एक गुलाब के फूल की तरहा हो
जिसकी कुछ पंखुडिया खुली हुई , कुछ अध् खुली और कुछ एक दम से बंद,
हाँ तुम कुछ इस तरहा से ही हो, मेरे मन के अंतर्द्वंद मैं ,
लेकिन मैं उस शाख को नही पकड़ना चाहता जिस पर तुम ,
अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए लहरा रही हो,
मैं तुमको उस टहनी से अलग नही करना चाहता,
तुम्हारा सौन्दर्य उसी के साथ है, और तुम मुझे वही से ही अच्छी लगती हो,
हाँ मैं इंतजार करूँगा , की तुम एक दिन उस शाख से झरो, और बिखर जाओ,
यही कही, फिर मैं तुमको सहेजूगा प्यार से, अपने से लगाऊंगा ,
ताकि तुमको एहसास हो की, तुम्हारे इस पतन के बाद भी,
तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हुआ है, कोई है जो तुमको
अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....
जिसकी कुछ पंखुडिया खुली हुई , कुछ अध् खुली और कुछ एक दम से बंद,
हाँ तुम कुछ इस तरहा से ही हो, मेरे मन के अंतर्द्वंद मैं ,
लेकिन मैं उस शाख को नही पकड़ना चाहता जिस पर तुम ,
अपनी चिरपरिचित मुस्कान लिए लहरा रही हो,
मैं तुमको उस टहनी से अलग नही करना चाहता,
तुम्हारा सौन्दर्य उसी के साथ है, और तुम मुझे वही से ही अच्छी लगती हो,
हाँ मैं इंतजार करूँगा , की तुम एक दिन उस शाख से झरो, और बिखर जाओ,
यही कही, फिर मैं तुमको सहेजूगा प्यार से, अपने से लगाऊंगा ,
ताकि तुमको एहसास हो की, तुम्हारे इस पतन के बाद भी,
तुम्हारा एक नया जीवन शुरू हुआ है, कोई है जो तुमको
अपने गले लगाना चाहता है, तुम्हारा अपना.....
Wednesday, June 23, 2010
कौन कहता है कि तुमने ...........
कौन कहता हे कि
तुमने मुझको कम जाना हे
में कहता हूँ कि एक तुम ही हो
जिसने मुझको जाना है,
तेरे हर गीत और ग़ज़ल में
मेरा ही तो फ़साना है
कौन कहता है कि तुमने
मुझको कम जाना है.,...
जब जला ही चुके हो
चरागे मुहब्बत दिल में
फिर कौन सा गीत बाकि हे
ओ मेरी जाने-ए-ग़ज़ल
जिसको तेरे होठो पर आना है
कौन कहता है कि तुमने मुझे
कम जाना है...
एक तुम ही तो हो,
जिसने मुझे जाना है....
तुमने मुझको कम जाना हे
में कहता हूँ कि एक तुम ही हो
जिसने मुझको जाना है,
तेरे हर गीत और ग़ज़ल में
मेरा ही तो फ़साना है
कौन कहता है कि तुमने
मुझको कम जाना है.,...
जब जला ही चुके हो
चरागे मुहब्बत दिल में
फिर कौन सा गीत बाकि हे
ओ मेरी जाने-ए-ग़ज़ल
जिसको तेरे होठो पर आना है
कौन कहता है कि तुमने मुझे
कम जाना है...
एक तुम ही तो हो,
जिसने मुझे जाना है....
Tuesday, June 22, 2010
कुछ यूँ ही
जहा देखो, जब देखो
इसे देखो, उसे देखो,
किस किस को देखो
अपने सिवा सबको देखो,
कभी अपने को भी देखो!
ढूंढ़ लेगा जिस दिन तू खुद को खुदही में
मिल जायेगा तुझको खुदा खुदही में,
फिर न होगी कोई गलफ़त इस जहाँ में
जिस दिन बन जायेगा इंसान तू खुदही में,
नसीहते सबको और खुद को फजीहते
अब बस भी कर खुद जरा झांक खुदही में
इसे देखो, उसे देखो,
किस किस को देखो
अपने सिवा सबको देखो,
कभी अपने को भी देखो!
ढूंढ़ लेगा जिस दिन तू खुद को खुदही में
मिल जायेगा तुझको खुदा खुदही में,
फिर न होगी कोई गलफ़त इस जहाँ में
जिस दिन बन जायेगा इंसान तू खुदही में,
नसीहते सबको और खुद को फजीहते
अब बस भी कर खुद जरा झांक खुदही में
Saturday, June 12, 2010
वो ऑटो ड्राइवर
जैसा कि आप सभी जानते हैं, कि हम देलही में सेरविसे करते हैं
एक दिन हाल-फिलहाल हमें, ओफिसिअल काम से गुडगाँव जाना पड़ा,
उस दिन देलही का सबसे गरमा दिन था, और तापमान जब हम शाम को घर पहुंचे तो मालूम पड़ा ४७.४ डिग्री सल्सिउस, हमने ऑफिस से निकलते ही एक ऑटो लिया, और पुच्चा भैये गुडगाँव बोर्डर चलोगे, दोपहर के २.०० बजे , जोरो का लू चल रहा था, पहले तो हिच्काच्या फिर बड़ी मुश्किल से तयिआर हुआ, चलने के लिए, हम ओखला से महरौली बारे रास्ते से जा रहे थे, थोड़ी देर के बाद कुतुबमीनार दिखने लगा, हमने अपना इतिहास के ज्ञान का पिटारा खोला और बोले मालूम हे भैये ये कितनी पुराणी हे, वो अंदाजे से बोला होगी कोई ४००-५०० साला, और का, हम खुश हुए कि इसको कुछ नहीं मालूम, मेने कहा यार ये ११ बी सदी के हे, ९०० साल हो गए, वो हंसने लगा और बोला बाबूजी आपने हिस्टरी पढ़ी लगता हे, मेने फक्र से खा हाँ हाँ क्यूँ नही , ८ बी तक पढ़ी हे न, उसी से याद हे, हमारा उसे हिस्टरी कि जिक्र करना था फिर तो वो शुरू हो गया, AD-BC पूर्व इतिहास कि बाते, सिकंदर महान, चनाक्ये, और न जाने क्या क्या , जो हमें कुछ तो पता था, काफी कुछ नही पता था, वो १ घंटे का सफ़र और वो भंयंकर लू से भरी गर्मी हम भूल गए, उसकी बातों में इंटेरेस्ट लेते रहे, फिर हमने हिम्मत करके पूछा मिया आप कितना पड़े हैं, वो बहुत जोर का हंसा, बोले कुछ खास नही, में हिस्टरी से एम् -अ किया हे साहब, यू पी से हूँ, में उसकी बात सुनकर एक बार सकपका गया, मेने कह यार कमाल हे, आप तो पहुचे हुए हो, वो बोला जी ये क्या, मेरा छोटा भाई दो बार पी.सी. एस. का interview दे चूका है, ३स्रि बार फिर बैठ रहा हे एक्साम में. मेने पुच्चा आपके बच्चे , वोला १ बेटा हे जो M.B.A. कर रहा हे, बस ऑटो चलाकर टाइम पास कर रहे हैं, मेरा भाई व बेटा पढलिख जाये और क्या चाहिए. उन्ही कि लिए ये सब कर रहा हूँ.
एक दिन हाल-फिलहाल हमें, ओफिसिअल काम से गुडगाँव जाना पड़ा,
उस दिन देलही का सबसे गरमा दिन था, और तापमान जब हम शाम को घर पहुंचे तो मालूम पड़ा ४७.४ डिग्री सल्सिउस, हमने ऑफिस से निकलते ही एक ऑटो लिया, और पुच्चा भैये गुडगाँव बोर्डर चलोगे, दोपहर के २.०० बजे , जोरो का लू चल रहा था, पहले तो हिच्काच्या फिर बड़ी मुश्किल से तयिआर हुआ, चलने के लिए, हम ओखला से महरौली बारे रास्ते से जा रहे थे, थोड़ी देर के बाद कुतुबमीनार दिखने लगा, हमने अपना इतिहास के ज्ञान का पिटारा खोला और बोले मालूम हे भैये ये कितनी पुराणी हे, वो अंदाजे से बोला होगी कोई ४००-५०० साला, और का, हम खुश हुए कि इसको कुछ नहीं मालूम, मेने कहा यार ये ११ बी सदी के हे, ९०० साल हो गए, वो हंसने लगा और बोला बाबूजी आपने हिस्टरी पढ़ी लगता हे, मेने फक्र से खा हाँ हाँ क्यूँ नही , ८ बी तक पढ़ी हे न, उसी से याद हे, हमारा उसे हिस्टरी कि जिक्र करना था फिर तो वो शुरू हो गया, AD-BC पूर्व इतिहास कि बाते, सिकंदर महान, चनाक्ये, और न जाने क्या क्या , जो हमें कुछ तो पता था, काफी कुछ नही पता था, वो १ घंटे का सफ़र और वो भंयंकर लू से भरी गर्मी हम भूल गए, उसकी बातों में इंटेरेस्ट लेते रहे, फिर हमने हिम्मत करके पूछा मिया आप कितना पड़े हैं, वो बहुत जोर का हंसा, बोले कुछ खास नही, में हिस्टरी से एम् -अ किया हे साहब, यू पी से हूँ, में उसकी बात सुनकर एक बार सकपका गया, मेने कह यार कमाल हे, आप तो पहुचे हुए हो, वो बोला जी ये क्या, मेरा छोटा भाई दो बार पी.सी. एस. का interview दे चूका है, ३स्रि बार फिर बैठ रहा हे एक्साम में. मेने पुच्चा आपके बच्चे , वोला १ बेटा हे जो M.B.A. कर रहा हे, बस ऑटो चलाकर टाइम पास कर रहे हैं, मेरा भाई व बेटा पढलिख जाये और क्या चाहिए. उन्ही कि लिए ये सब कर रहा हूँ.
Friday, June 11, 2010
यार इसकी कमीज मेरी कमीज से .........
अपनी रचना कम्युनिटी पर पोस्ट करते ही
दोस्तों के कमेंट्स फटा-फट आने लगे
कुछ ने वाह वाह किया
और कुछ बहुत अच्छे से नवाजने लगे,
लेकिनं कुछ ऐसे जिनको ये सब गवारा न हुआ
और वो सोचते कि ...
यार इसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यूँ
साबुन तो में महगा वाला इस्तेमाल करता हूँ
लेकिन चमक इसकी कमीज में दिखाई देती है,
मेने कहा यार,
में फूटपाथ पथ पर चलता हूँ
तभी लोगो कि नजरों में चढ़ता हूँ
तुम लक्जरी कार में बैठ कर
आसमान में उड़ते हुए,
जमीन को छूने कि नाकाम कोशिश करते हो,
पहले जमीन पर आओ
फिर सबको अपनी कमीज दिखाओ,
ये साहित्य का दरबार हे,
जो प्यार से चलता हे,
यूँ खामखा अकड़ दिखाने
कही पाठक पड़ता हे
दोस्तों के कमेंट्स फटा-फट आने लगे
कुछ ने वाह वाह किया
और कुछ बहुत अच्छे से नवाजने लगे,
लेकिनं कुछ ऐसे जिनको ये सब गवारा न हुआ
और वो सोचते कि ...
यार इसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यूँ
साबुन तो में महगा वाला इस्तेमाल करता हूँ
लेकिन चमक इसकी कमीज में दिखाई देती है,
मेने कहा यार,
में फूटपाथ पथ पर चलता हूँ
तभी लोगो कि नजरों में चढ़ता हूँ
तुम लक्जरी कार में बैठ कर
आसमान में उड़ते हुए,
जमीन को छूने कि नाकाम कोशिश करते हो,
पहले जमीन पर आओ
फिर सबको अपनी कमीज दिखाओ,
ये साहित्य का दरबार हे,
जो प्यार से चलता हे,
यूँ खामखा अकड़ दिखाने
कही पाठक पड़ता हे
Thursday, June 10, 2010
मुझे याद हैं वो दिन
मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम
मुझको लिखा करती थी,
हमारा हर गीत, हर ग़ज़ल,
एक दुसरे में ढला करती थी,
हम नदी के वो दो किनारे थे
जिसमे बहता पानी हमारे मिलन का
शाक्क्षी हुआ करता था,
फिर अचानक एक दिन तूफ़ान आया
नदी ने अपना रुख बदल दिया,
तुम मेरा साथ छोड़ कर
किसी दुसरे किनारे से जा मिली,
और फिर से बही गीत-ग़ज़ल
गुनगुनाने लगी
मैं आज भी विराना सा
तुमको दूर से निहारता रहता हूँ,
इसी झूठी उम्मीद में शायद
फिर से ऐसा कोई तूफ़ान आये
एक बार फिर से तुमको
मुझसे मिला जाये,
हम फिर से अपनी मुहब्बत के तराने
एक दुसरे को सुनाये
हम फिर से बही गीत-ग़ज़ल गुनगुनाये
मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम मुझको लिखा करती थी,
जब मैं तुमको और तुम
मुझको लिखा करती थी,
हमारा हर गीत, हर ग़ज़ल,
एक दुसरे में ढला करती थी,
हम नदी के वो दो किनारे थे
जिसमे बहता पानी हमारे मिलन का
शाक्क्षी हुआ करता था,
फिर अचानक एक दिन तूफ़ान आया
नदी ने अपना रुख बदल दिया,
तुम मेरा साथ छोड़ कर
किसी दुसरे किनारे से जा मिली,
और फिर से बही गीत-ग़ज़ल
गुनगुनाने लगी
मैं आज भी विराना सा
तुमको दूर से निहारता रहता हूँ,
इसी झूठी उम्मीद में शायद
फिर से ऐसा कोई तूफ़ान आये
एक बार फिर से तुमको
मुझसे मिला जाये,
हम फिर से अपनी मुहब्बत के तराने
एक दुसरे को सुनाये
हम फिर से बही गीत-ग़ज़ल गुनगुनाये
मुझे याद हैं वो दिन
जब मैं तुमको और तुम मुझको लिखा करती थी,
Wednesday, June 9, 2010
क्या होता हे
जब भी जाता हूँ उसके दर पर उसे गुमान होता हे
वो शख्स ऐसा है जो कभी कभी हैरान होता हे
भूल जाऊँ अगर जाना मैं उसके दर पर कभी
वो शख्स मुझसे मिलने का बेहद तलबगार होता हे
कुछ तो बात हे उसके और मेरे दरमियाँ
बरना क्यूँ ढूँढ कर मुझे वो मेहरबान होता हे
क्या तड़प हे हमारी इक-दूजे के लिए नही जानते
कभी में परेशां , to कभी वो परेशान होता हे
नहीं पड़े आजतक हम आशिकी में गौरव
दिल कहता हे कि पड़ भी जाओ तो क्या होता हे
वो शख्स ऐसा है जो कभी कभी हैरान होता हे
भूल जाऊँ अगर जाना मैं उसके दर पर कभी
वो शख्स मुझसे मिलने का बेहद तलबगार होता हे
कुछ तो बात हे उसके और मेरे दरमियाँ
बरना क्यूँ ढूँढ कर मुझे वो मेहरबान होता हे
क्या तड़प हे हमारी इक-दूजे के लिए नही जानते
कभी में परेशां , to कभी वो परेशान होता हे
नहीं पड़े आजतक हम आशिकी में गौरव
दिल कहता हे कि पड़ भी जाओ तो क्या होता हे
Tuesday, June 8, 2010
Pyar-Byapar
तेरा मेरा प्यार कुछ जुदा जुदा सा हे,
में तुझ पर, तू किसी और पे फ़िदा सा हे
हमने पूछा क्या इसकी कोई खास बजहा हे
वो हंसकर बोले कि तू अभी कच्चा सा हे
प्यार व्यार कुछ नही होता ये जान लो तुम
ये तो मौकापरस्ती और बस धोखा हे
लोग तभी तक साथ चलते है मेरे दोस्त
जब तलक तू उनके फायेदे का सौदा हे
जब भी चूका तू उनके मतलब से जिस दिन
पकड़ लेंगे हाथ दूसरों का, उन्हें किसने रोका हे
में तुझ पर, तू किसी और पे फ़िदा सा हे
हमने पूछा क्या इसकी कोई खास बजहा हे
वो हंसकर बोले कि तू अभी कच्चा सा हे
प्यार व्यार कुछ नही होता ये जान लो तुम
ये तो मौकापरस्ती और बस धोखा हे
लोग तभी तक साथ चलते है मेरे दोस्त
जब तलक तू उनके फायेदे का सौदा हे
जब भी चूका तू उनके मतलब से जिस दिन
पकड़ लेंगे हाथ दूसरों का, उन्हें किसने रोका हे
Saturday, May 29, 2010
बहकते कदम
उस दिन जेठ कि तपती दोपहरी
एक रेस्टोरेंट में बैठे चाय कि चुसकिया
ले रहे थे हम दोनों,
टाइम पास कर रहे थे
कि गर्मी कम हो तो घर को
चला जाये
अचानक से मौसम ने ली अंगड़ाई
जोरदार झामा-झम बारिश
सुहाना मौसम, चेहरे में खिलावट
एक नयी जिदगी का एहसास
रेस्टोरेंट से निकल हम चल पड़े
मौसम का आनंद लेने
वक़्त का नही रहा ख्याल
यूँ ही हाथ में हाथ डाले
इधर से उधर घुमते रहे
ये हम दोनों का विश्वाश था
शाम गहरी होने लगी
उसको भी शायद घर जाने
कि नही थी जल्दी
अचानक लाइट चली जाती हे
उसका डरकर और करीब आना
हाथ को कसकर पकड़ लेना
ये विश्वाश ही था, हम दोनों का
मेने कहा घर नही जाना क्या
कहने लगी क्या जल्दी है
ऐसा मौसम रोज रोज नही आता
आज अच्छा लग रहा हे
तुमको नही लग रहा क्या
अब मेरा विश्वाश डोलने लगा
मुझे डर लगने लगा
मेने उसका हाथ छोड़ने कि
एक नाकाम कोशिश कि
लेकिन उसने और कस के मेरा हाथ
जकड लिया, मेरे और करीब आने लागी
मेने अँधेरे में उसकी आँखों में झाँका
उनमे बिजली कि सी चमक थी
उसने निगाहें नही झुकाई
मुझे इतने ठन्डे मौसम में भी
पसीने आने लगे
फिर वो हुआ, जिसका
हम दोनों को नही था एहसास
हम बहक गए, अब क्या होगा
में घबरा गया,
और अचानक से सोते से जाग गया
मेरा पूरा बदन पसीने से तर-बतर
मेने खुदा को शुक्रिया कहा
कि ये सब सपना था
हम दोनों का विश्वाश
अभी कायम था
एक रेस्टोरेंट में बैठे चाय कि चुसकिया
ले रहे थे हम दोनों,
टाइम पास कर रहे थे
कि गर्मी कम हो तो घर को
चला जाये
अचानक से मौसम ने ली अंगड़ाई
जोरदार झामा-झम बारिश
सुहाना मौसम, चेहरे में खिलावट
एक नयी जिदगी का एहसास
रेस्टोरेंट से निकल हम चल पड़े
मौसम का आनंद लेने
वक़्त का नही रहा ख्याल
यूँ ही हाथ में हाथ डाले
इधर से उधर घुमते रहे
ये हम दोनों का विश्वाश था
शाम गहरी होने लगी
उसको भी शायद घर जाने
कि नही थी जल्दी
अचानक लाइट चली जाती हे
उसका डरकर और करीब आना
हाथ को कसकर पकड़ लेना
ये विश्वाश ही था, हम दोनों का
मेने कहा घर नही जाना क्या
कहने लगी क्या जल्दी है
ऐसा मौसम रोज रोज नही आता
आज अच्छा लग रहा हे
तुमको नही लग रहा क्या
अब मेरा विश्वाश डोलने लगा
मुझे डर लगने लगा
मेने उसका हाथ छोड़ने कि
एक नाकाम कोशिश कि
लेकिन उसने और कस के मेरा हाथ
जकड लिया, मेरे और करीब आने लागी
मेने अँधेरे में उसकी आँखों में झाँका
उनमे बिजली कि सी चमक थी
उसने निगाहें नही झुकाई
मुझे इतने ठन्डे मौसम में भी
पसीने आने लगे
फिर वो हुआ, जिसका
हम दोनों को नही था एहसास
हम बहक गए, अब क्या होगा
में घबरा गया,
और अचानक से सोते से जाग गया
मेरा पूरा बदन पसीने से तर-बतर
मेने खुदा को शुक्रिया कहा
कि ये सब सपना था
हम दोनों का विश्वाश
अभी कायम था
Wednesday, March 17, 2010
ये अस्तित्व बिहीन प्यार
ओ सागर की लहरों
खुद पर न इठ्लाओ,
जिसे तुम प्यार समझती हो
वो तो समर्पण है तुम्हारा
अपने प्यार के आगे
खुद के अस्तित्व को ही
भुला बैठी हो तुम,
प्यार तो मैंने भी किया है
पर नहीं खोया अस्तित्व
लेकिन मेरे समर्पण
में कोई कमी नही
में भी अपने प्यार में
विलीन होना चाहती हूँ
लेकिन बचाते हुए खुद को
बरक़रार रखते हुए
खुद की पहचान को
क्या मेरा प्यार,
प्यार नही ?
खुद को मिटा देना ही
प्यार होता है क्या,
अगर ऐसा ही है तो
ये अस्तित्व बिहीन प्यार
मुबारक हो तुम्ही को
और मुझे ये किनारे
जो मेरे अकेलेपन के
संगी हैं, साक्षी हैं
खुद पर न इठ्लाओ,
जिसे तुम प्यार समझती हो
वो तो समर्पण है तुम्हारा
अपने प्यार के आगे
खुद के अस्तित्व को ही
भुला बैठी हो तुम,
प्यार तो मैंने भी किया है
पर नहीं खोया अस्तित्व
लेकिन मेरे समर्पण
में कोई कमी नही
में भी अपने प्यार में
विलीन होना चाहती हूँ
लेकिन बचाते हुए खुद को
बरक़रार रखते हुए
खुद की पहचान को
क्या मेरा प्यार,
प्यार नही ?
खुद को मिटा देना ही
प्यार होता है क्या,
अगर ऐसा ही है तो
ये अस्तित्व बिहीन प्यार
मुबारक हो तुम्ही को
और मुझे ये किनारे
जो मेरे अकेलेपन के
संगी हैं, साक्षी हैं
तुम भावनाओ को समझो
ये बाल हमने ऐसी ही सफ़ेद नही किये हैं
ये बाल हमने ऐसी (AC) में बैठ कर सफ़ेद किये हैं
लेकिन तुमने तो अपने बाल धूप मैं सफ़ेद किये हैं
फिर भी मेरा तजुर्बा तुम्हारे तजुर्बे से ज्यादा है
पता है क्यूँ, क्यूँ कि में तुमसे ज्यादा पढ़ा लिखा हूँ (शायद)
तुम्हारा तजुर्बा प्रक्टिकल है
और मेरा ओन द टेबल है
तुम कितना भी घूम-फिर लो,
कितनी भी हकीकत बयां कर दो
लेकिन मेरे पास आते ही, सब कुछ बेकार है,
क्यूंकि तुम बिना कार के, और मेरे पास कार है
वो भी सरकारी, लाल -पीली बत्ती वाली
इसीलिए तो तुम्हरे हर तर्क पर
में तुमसे लाल-पिला होता रहता हूँ
तुम भावनाओ को समझो
में सरकारी अफसर हूँ
मुझे सिर्फ एक ही बात समझ आती है
मेरी नजर तुम्हारी पॉकेट पर जाती है
क्या तुम्हारी समझ में ये बात आती है
अपनी पॉकेट का वजन हलका करो
अर्क-मेडीस के सिधांत को फालो करो
और अपने काम कि नाव को
इस गंदे नाले से बहार ले जाओ
हम भी मौज करे,
तुम दुखी होकर मौज मनाओ
पड़ोसिओं को भी यही रास्ता दिखलाओ
ये बाल हमने ऐसी (AC) में बैठ कर सफ़ेद किये हैं
लेकिन तुमने तो अपने बाल धूप मैं सफ़ेद किये हैं
फिर भी मेरा तजुर्बा तुम्हारे तजुर्बे से ज्यादा है
पता है क्यूँ, क्यूँ कि में तुमसे ज्यादा पढ़ा लिखा हूँ (शायद)
तुम्हारा तजुर्बा प्रक्टिकल है
और मेरा ओन द टेबल है
तुम कितना भी घूम-फिर लो,
कितनी भी हकीकत बयां कर दो
लेकिन मेरे पास आते ही, सब कुछ बेकार है,
क्यूंकि तुम बिना कार के, और मेरे पास कार है
वो भी सरकारी, लाल -पीली बत्ती वाली
इसीलिए तो तुम्हरे हर तर्क पर
में तुमसे लाल-पिला होता रहता हूँ
तुम भावनाओ को समझो
में सरकारी अफसर हूँ
मुझे सिर्फ एक ही बात समझ आती है
मेरी नजर तुम्हारी पॉकेट पर जाती है
क्या तुम्हारी समझ में ये बात आती है
अपनी पॉकेट का वजन हलका करो
अर्क-मेडीस के सिधांत को फालो करो
और अपने काम कि नाव को
इस गंदे नाले से बहार ले जाओ
हम भी मौज करे,
तुम दुखी होकर मौज मनाओ
पड़ोसिओं को भी यही रास्ता दिखलाओ
budget 2025...
budget 2025...
rice 2 grains for Rs. 2/
Dal 5 grains for Rs. 5/
milk 1 drop for Rs. 1/
potato 1 piece for rs.30
tomato 1 piece for Rs.50
if u buy Potato +toamto dozen piece
can hv a look of green Pea (matar)
and those buy above all in one take
will be given a chance to smell Desi ghi once....
courtesy
FOOD CORPORATION OF INDIA
rice 2 grains for Rs. 2/
Dal 5 grains for Rs. 5/
milk 1 drop for Rs. 1/
potato 1 piece for rs.30
tomato 1 piece for Rs.50
if u buy Potato +toamto dozen piece
can hv a look of green Pea (matar)
and those buy above all in one take
will be given a chance to smell Desi ghi once....
courtesy
FOOD CORPORATION OF INDIA
तुम्ही बताओ न !
क्या लिखा रहा हूँ मुझे नही पता
शब्द बिखर रहे हैं इधर उधर
बड़ी मुश्किल से आशार बनाता हूँ
फिर उनको सिलसिलेबार सजाता हूँ
फिर कुछ ऊपर कुछ नीचे खिसकाता हूँ
फिर देखता हूँ, की कैसी बन पड़ी है
फिर एक लम्बी सांस लेता हूँ
सोचता हूँ की अब मुकम्मल हुई है
पर ये क्या, ये तो मेरी ग़ज़ल बन पड़ी है
फिर में तेरा अक्स देखता हूँ
कभी में ग़ज़ल को देखता हूँ
फर्क मुझे समझ नही आ रहा
कि कौन सुन्दर है दोनों में
तुम या ये मेरी ग़ज़ल
में असमंजस में हूँ
की तुम से ये ग़ज़ल है
या ये ग़ज़ल तुम ही हो
तुम्ही बताओ न !
शब्द बिखर रहे हैं इधर उधर
बड़ी मुश्किल से आशार बनाता हूँ
फिर उनको सिलसिलेबार सजाता हूँ
फिर कुछ ऊपर कुछ नीचे खिसकाता हूँ
फिर देखता हूँ, की कैसी बन पड़ी है
फिर एक लम्बी सांस लेता हूँ
सोचता हूँ की अब मुकम्मल हुई है
पर ये क्या, ये तो मेरी ग़ज़ल बन पड़ी है
फिर में तेरा अक्स देखता हूँ
कभी में ग़ज़ल को देखता हूँ
फर्क मुझे समझ नही आ रहा
कि कौन सुन्दर है दोनों में
तुम या ये मेरी ग़ज़ल
में असमंजस में हूँ
की तुम से ये ग़ज़ल है
या ये ग़ज़ल तुम ही हो
तुम्ही बताओ न !
सूरत-ए-बेवफाई
हमारी चाहत को इस कद्र बदनाम न करो
दिल कि आवाज है ये, इसे सरे-आम न करो,
करना नही था प्यार, फिर ये दिल क्यूँ लगाया
ठुकराकर हमारी मुहब्बत को, हमें बदनाम न करो,
क्या जरूरी था दोस्ती के लिए, इजहारे मुहबब्त
इस दोस्ती और मुहब्बत को शर्मशार न करो,
काश कि इतना आसान होता इजहारे मुहब्बत
फिर से तुम लैला-मजनू कि कहानी बयां न करो,
दिखा ही चुके हो तुम, अपनी सूरत-ए-बेवफाई
खुदा के वास्ते अब, इजहारे-ए-जुर्म न करो,
दिल कि आवाज है ये, इसे सरे-आम न करो,
करना नही था प्यार, फिर ये दिल क्यूँ लगाया
ठुकराकर हमारी मुहब्बत को, हमें बदनाम न करो,
क्या जरूरी था दोस्ती के लिए, इजहारे मुहबब्त
इस दोस्ती और मुहब्बत को शर्मशार न करो,
काश कि इतना आसान होता इजहारे मुहब्बत
फिर से तुम लैला-मजनू कि कहानी बयां न करो,
दिखा ही चुके हो तुम, अपनी सूरत-ए-बेवफाई
खुदा के वास्ते अब, इजहारे-ए-जुर्म न करो,
Friday, March 5, 2010
मुझे नही पता,......
जैसे ही हमने कुछ लिखने के लिए कलम उठाई
उसकी याद, समय कि चादर से छन छन के आई
में चाहता हूँ कि , उसको नही लिखूंगा अब कभी
में पहले से ही इतना कुछ लिख चूका हूँ उस पर
मगर वो जेहन में इस कद्र बस चुकी है मेरे
कोई बात,उसका ख़याल आये बिना शुरू नही होती
मैं जितना भी उसको भूलना चाहता हूँ
वो पहले से ज्यादा याद आने लगती है
और मेरी कलम को मुह चिढाने लगती है
और कहती है, काश कि मुझको भूलना
इतना आसान होता तुम्हारे लिए
ये मैं भी जानती हूँ, और तुम भी जानते हो
फिर मुझसे मुह क्यूँ मोड़ते हो बार बार
अगर तुम बाकई मुझसे अलग लिखना चाहते हो
तो पहले मुझे अपना लो, अपना बना लो,
लेकिन हकीकत भी यही है,
कि वो मेरी कलम का साथ नही छोडती
अब किसने किसको जकड रखा है
मुझे नही पता,......
में असमंजस में हूँ, कि क्या करू, क्या न करू
मेरा प्यार उससे भी है, और मेरी कलम से भी
उसकी याद, समय कि चादर से छन छन के आई
में चाहता हूँ कि , उसको नही लिखूंगा अब कभी
में पहले से ही इतना कुछ लिख चूका हूँ उस पर
मगर वो जेहन में इस कद्र बस चुकी है मेरे
कोई बात,उसका ख़याल आये बिना शुरू नही होती
मैं जितना भी उसको भूलना चाहता हूँ
वो पहले से ज्यादा याद आने लगती है
और मेरी कलम को मुह चिढाने लगती है
और कहती है, काश कि मुझको भूलना
इतना आसान होता तुम्हारे लिए
ये मैं भी जानती हूँ, और तुम भी जानते हो
फिर मुझसे मुह क्यूँ मोड़ते हो बार बार
अगर तुम बाकई मुझसे अलग लिखना चाहते हो
तो पहले मुझे अपना लो, अपना बना लो,
लेकिन हकीकत भी यही है,
कि वो मेरी कलम का साथ नही छोडती
अब किसने किसको जकड रखा है
मुझे नही पता,......
में असमंजस में हूँ, कि क्या करू, क्या न करू
मेरा प्यार उससे भी है, और मेरी कलम से भी
Wednesday, February 24, 2010
इट्स टाइम फॉर गिव & टेक
वाह क्या बात है, अच्छा है
मन में तो यही रहता है, मगर
इसने कभी मुझे नही दिया, तो मै क्यूँ,
चल यार दे ही देता हूँ, शायद आगे से,
कोई बात नही मै नही दूंगा
तो फर्क क्या रह जायेगा
इसमें और मुझमे,
ले भाई मेने तो दे दिया
अब देखता हूँ तुम क्या करते हो
बैसे एक बात है
इट्स टाइम फॉर गिव & टेक
भलाई का जमाना नही
शराफत भी काम नही आती
सो टिट फॉर टेट
हाँ यार कई बार ऐसा ही
करना पड़ता है
लेकिन ऐसा नही होना चाहिए
फिर भी हो जाता है
यार मै भी तो इंसान ही हूँ
मेरी सोच का दाएरा भी
कई मर्तवा सिकुड़ जाता है
बातें भले ही मै बड़ी बड़ी करूं
लेकिन उससे होता क्या है
मैं भी हुएमन बीन हूँ
यार एक बात है,
खैर छोडो न और क्या कहूँ
मन में तो यही रहता है, मगर
इसने कभी मुझे नही दिया, तो मै क्यूँ,
चल यार दे ही देता हूँ, शायद आगे से,
कोई बात नही मै नही दूंगा
तो फर्क क्या रह जायेगा
इसमें और मुझमे,
ले भाई मेने तो दे दिया
अब देखता हूँ तुम क्या करते हो
बैसे एक बात है
इट्स टाइम फॉर गिव & टेक
भलाई का जमाना नही
शराफत भी काम नही आती
सो टिट फॉर टेट
हाँ यार कई बार ऐसा ही
करना पड़ता है
लेकिन ऐसा नही होना चाहिए
फिर भी हो जाता है
यार मै भी तो इंसान ही हूँ
मेरी सोच का दाएरा भी
कई मर्तवा सिकुड़ जाता है
बातें भले ही मै बड़ी बड़ी करूं
लेकिन उससे होता क्या है
मैं भी हुएमन बीन हूँ
यार एक बात है,
खैर छोडो न और क्या कहूँ
Saturday, February 20, 2010
मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है
दर्द भी तू है, दवा भी तू है
सुकूं का हर लम्हा भी तू है
तेरे बिन कोरे हैं सारे सफे मेरे
मेरी जिन्दगी का फलसफा भी तू है
है तू ही मकसद मेरी जिन्दगी का
जिस्म में रूह की जगह बस तू है.
तेरे बिन कैसे जिऊं मेरी जान
मेरी जिन्दगी की सदा भी तू है
तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का
मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है
सुकूं का हर लम्हा भी तू है
तेरे बिन कोरे हैं सारे सफे मेरे
मेरी जिन्दगी का फलसफा भी तू है
है तू ही मकसद मेरी जिन्दगी का
जिस्म में रूह की जगह बस तू है.
तेरे बिन कैसे जिऊं मेरी जान
मेरी जिन्दगी की सदा भी तू है
तू ही हर लफ्ज मेरी कलम का
मेरी तो पूरी ग़ज़ल ही तू है
Thursday, February 18, 2010
टी.र.पी का मामला यहाँ भी है
*Note ye rachna ka uddeshye sirf "Hsaye hai"
जैसे ही हमने अपनी रचना को कम्युनिटी पर पोस्ट किया
तुरंत ही हमने अपने भूले -बिसरे दोस्तों को याद किया
उनको बोलने का मोका दिए बिना ही उनका इंटरव्यू लिया
कहा कि कहाँ रहते हैं आजकल, भूल गए हो क्या
इतना भी क्या बीजी हो गए जो याद ही नही करते
अरे भाई कभी हमारी और भी ध्यान दे लिया कीजिये
हमसे बात न सही , कम से कम हमारी
नयी रचना पर तो अपनी नजरे इनायत कीजिये
अपनी मतलब कि बात कहते ही हम चुप हो गए
फिर उन्हें बोलने का मौका देते हुए हमने कहा
कि अब बोलोगे भी, या यूँ ही चुप रहोगे
हमारे मित्र महोदय बोले, यार तुम बोलने दोगे
तब हम न कुछ बोलेंगे, ठीक है थोडा बीजी हूँ आजकल
फुर्सत मिलते ही , सबसे पहले आपकी रचना पढूंगा
वो बोलते रहे, लेकिन हम बहा से रफूचक्कर हो
किसी और बीजी मित्र को तलाशने लगे
अरे भाई टी.र.पी का मामला यहाँ भी है
जैसे ही हमने अपनी रचना को कम्युनिटी पर पोस्ट किया
तुरंत ही हमने अपने भूले -बिसरे दोस्तों को याद किया
उनको बोलने का मोका दिए बिना ही उनका इंटरव्यू लिया
कहा कि कहाँ रहते हैं आजकल, भूल गए हो क्या
इतना भी क्या बीजी हो गए जो याद ही नही करते
अरे भाई कभी हमारी और भी ध्यान दे लिया कीजिये
हमसे बात न सही , कम से कम हमारी
नयी रचना पर तो अपनी नजरे इनायत कीजिये
अपनी मतलब कि बात कहते ही हम चुप हो गए
फिर उन्हें बोलने का मौका देते हुए हमने कहा
कि अब बोलोगे भी, या यूँ ही चुप रहोगे
हमारे मित्र महोदय बोले, यार तुम बोलने दोगे
तब हम न कुछ बोलेंगे, ठीक है थोडा बीजी हूँ आजकल
फुर्सत मिलते ही , सबसे पहले आपकी रचना पढूंगा
वो बोलते रहे, लेकिन हम बहा से रफूचक्कर हो
किसी और बीजी मित्र को तलाशने लगे
अरे भाई टी.र.पी का मामला यहाँ भी है
Wednesday, February 17, 2010
बता दे हमको भैया
एक तरफ मित्र है, तो एक तरफ है प्यार
दो पाटन के बीच में, मैं खड़ा हुआ लाचार
खड़ा हुआ लाचार , की कित को कदम बढाऊँ
एक और कदम बढाऊँ, तो दूजा दूर है पाऊँ
दूजा दूर है पाऊँ , समस्या बहुत ही गंभीर
खुद को पाए "गौरव" , बड़ा ही धीर - अधीर
कहे "गौरव" भाई , ये है बड़ी बिचित्र समस्या
है गर कोई समाधान , तो बता दे हमको भैया
दो पाटन के बीच में, मैं खड़ा हुआ लाचार
खड़ा हुआ लाचार , की कित को कदम बढाऊँ
एक और कदम बढाऊँ, तो दूजा दूर है पाऊँ
दूजा दूर है पाऊँ , समस्या बहुत ही गंभीर
खुद को पाए "गौरव" , बड़ा ही धीर - अधीर
कहे "गौरव" भाई , ये है बड़ी बिचित्र समस्या
है गर कोई समाधान , तो बता दे हमको भैया
Thursday, February 11, 2010
कोई तो बजहा हो
तेरी मुस्कराहटे कुछ इस कद्र गम-जदा है
जैसे जिन्दगी जी रही बे-बजहा हो
हाल पूछो तो कहते हैं की सब ठीक है
इस कद्र झूठ बोलने की कुछ तो बजहा हो
बहुत दिन बाद मिले हो सब ठीक तो है
ये हालात बदलने की कुछ तो बजहा हो
नहीं बदला है तो बस इक मेरा वक़्त
कब बदलेगा ये शायद किसीको पता हो
ये जीना भी कोई जीना है गौरव
इस तरहा जीने की कोई तो बजहा हो
जैसे जिन्दगी जी रही बे-बजहा हो
हाल पूछो तो कहते हैं की सब ठीक है
इस कद्र झूठ बोलने की कुछ तो बजहा हो
बहुत दिन बाद मिले हो सब ठीक तो है
ये हालात बदलने की कुछ तो बजहा हो
नहीं बदला है तो बस इक मेरा वक़्त
कब बदलेगा ये शायद किसीको पता हो
ये जीना भी कोई जीना है गौरव
इस तरहा जीने की कोई तो बजहा हो
Saturday, January 23, 2010
न जी होगा , और न ही कोई बदनाम होगा
जैसे ही उन्होंने हमारे नाम के बाद "जी" लागाया
हमें अपनी उम्मीदों पे पानी फिरता नजर आया,
हमने मन ही मन सोचा , यार ये कहा फंस गए
इससे अच्छा तो वही थे , जहा सब हमें नाम से बुलाते थे
और हम सबके नाम के बाद बड़ी शिद्दत से जी लगाते थे
फिर हमने सोचा , की यार तू यहाँ खामखा आया
जहाँ हमें अपनी बढती उम्र का अंदाजा हो आया
अब मरते क्या न करते, फिर सोचा अब क्या करेंगे
जब तक झेल सकते हो झेलो फिर कही और पनाह लेंगे
जहाँ सिर्फ उनका और हमारा नाम ही नाम होगा
न जी होगा , और न ही कोई बदनाम होगा
हमें अपनी उम्मीदों पे पानी फिरता नजर आया,
हमने मन ही मन सोचा , यार ये कहा फंस गए
इससे अच्छा तो वही थे , जहा सब हमें नाम से बुलाते थे
और हम सबके नाम के बाद बड़ी शिद्दत से जी लगाते थे
फिर हमने सोचा , की यार तू यहाँ खामखा आया
जहाँ हमें अपनी बढती उम्र का अंदाजा हो आया
अब मरते क्या न करते, फिर सोचा अब क्या करेंगे
जब तक झेल सकते हो झेलो फिर कही और पनाह लेंगे
जहाँ सिर्फ उनका और हमारा नाम ही नाम होगा
न जी होगा , और न ही कोई बदनाम होगा
Wednesday, January 20, 2010
और माँ हार गयी
bechari Maa
मैंने कहा ना , मुझे हाथ न लगाना,
जब तक माँ यहाँ पर है,
लेकिन माँ के यहाँ होने से इस बात का क्या मतलब,
है मतलब, मुझे टेंशन होती है, और टेंशन मैं ए सब
नहीं होता,
अब ए तुमको सोचना है, की तुमको मैं चाहिए या माँ ,
अगले दिन मैं माँ को गाँव छोड़ आया,
उस बेबस , लाचार माँ को, जिसको इस समय मेरी जरूरत थी, लेकिन मेरी अपनी भी तो जरूरत हैं,
"काम" जीत गया, और "माँ" हार गयी,
अब माँ मुझको सपने मैं दिखती है,
लेकिन मैं वहां भी उससे नजरे चुरा लेता हूँ,
की कही माँ आवाज न दे दे,
और आज "माँ" सपने मैं भी हार गयी,
मैं तो पहले से ही हiरा हुआ था.
मैंने कहा ना , मुझे हाथ न लगाना,
जब तक माँ यहाँ पर है,
लेकिन माँ के यहाँ होने से इस बात का क्या मतलब,
है मतलब, मुझे टेंशन होती है, और टेंशन मैं ए सब
नहीं होता,
अब ए तुमको सोचना है, की तुमको मैं चाहिए या माँ ,
अगले दिन मैं माँ को गाँव छोड़ आया,
उस बेबस , लाचार माँ को, जिसको इस समय मेरी जरूरत थी, लेकिन मेरी अपनी भी तो जरूरत हैं,
"काम" जीत गया, और "माँ" हार गयी,
अब माँ मुझको सपने मैं दिखती है,
लेकिन मैं वहां भी उससे नजरे चुरा लेता हूँ,
की कही माँ आवाज न दे दे,
और आज "माँ" सपने मैं भी हार गयी,
मैं तो पहले से ही हiरा हुआ था.
नईदिल्ली रेलवे स्टेशन , प्लेटफोर्म नो २
नईदिल्ली रेलवे स्टेशन , प्लेटफोर्म नो २
लोकल आने मैं अभी 20-२५ मिनट बाकि,
मुझे को भूख लगी,
मैंने आलू-पूरी वाले से एक पत्ता खरीद लिया,
थोडी दूरी पर कुछ बच्चे, उम्र कोई ७-८-१० साल,
कुछ अधनंगे, कुछ फटेहाल,
टुकुर टुकुर मुझको खाते हुए देखते रहे,
मैंने खाकर जैसे ही पत्ता, कूडेदान मैं फेंका ,
वो सब उसपर टूट पड़े , लड़ने लगे,
जिसके हाथ जो लगा, वो उसको चाटने लगा,
मैंने उनको डांटा , लेकिन वो चाटने मैं मस्त,
फिर भी मैंने उनको रोका, ऐसा मत करो,
कितने दिन से भूखे हो, कोई कुछ नहीं बोला,
तभी पूरी वाला बोला , अरे साहब रहने दीजिये,
ये इनकी रोज़ की आदत है,
मैंने कहा यार, ये छोटे छोटे बच्चे हैं, भूखे हैं,
मुझ से रहा नहीं गया, वो ६-७ थे,
मैंने सभी को एक -एक पत्ता दिलवा दिया,
सभी खुश, उनकी आँखों की चमक देखकर ,
मेरा सीना गर्व से फूल गया,
और मुंझे लगने लगा, की आज मैंने
भूखे हिन्दुस्तान का पेट भर दिया,
मैं इसी से संतुष्ट हो गया,
लोकल आई , मैं उसमे बैठ गया,
लिकं मेरी आँखों के सामने ,
बही भूखे-नंगे बच्चे आ रहे थे बार-बार
और मैं सोच रहा था की ,
कल से मैं आलू-पूरी नहीं खाऊँगा
लोकल आने मैं अभी 20-२५ मिनट बाकि,
मुझे को भूख लगी,
मैंने आलू-पूरी वाले से एक पत्ता खरीद लिया,
थोडी दूरी पर कुछ बच्चे, उम्र कोई ७-८-१० साल,
कुछ अधनंगे, कुछ फटेहाल,
टुकुर टुकुर मुझको खाते हुए देखते रहे,
मैंने खाकर जैसे ही पत्ता, कूडेदान मैं फेंका ,
वो सब उसपर टूट पड़े , लड़ने लगे,
जिसके हाथ जो लगा, वो उसको चाटने लगा,
मैंने उनको डांटा , लेकिन वो चाटने मैं मस्त,
फिर भी मैंने उनको रोका, ऐसा मत करो,
कितने दिन से भूखे हो, कोई कुछ नहीं बोला,
तभी पूरी वाला बोला , अरे साहब रहने दीजिये,
ये इनकी रोज़ की आदत है,
मैंने कहा यार, ये छोटे छोटे बच्चे हैं, भूखे हैं,
मुझ से रहा नहीं गया, वो ६-७ थे,
मैंने सभी को एक -एक पत्ता दिलवा दिया,
सभी खुश, उनकी आँखों की चमक देखकर ,
मेरा सीना गर्व से फूल गया,
और मुंझे लगने लगा, की आज मैंने
भूखे हिन्दुस्तान का पेट भर दिया,
मैं इसी से संतुष्ट हो गया,
लोकल आई , मैं उसमे बैठ गया,
लिकं मेरी आँखों के सामने ,
बही भूखे-नंगे बच्चे आ रहे थे बार-बार
और मैं सोच रहा था की ,
कल से मैं आलू-पूरी नहीं खाऊँगा
Tuesday, January 19, 2010
गाँधी जी के तीनो बंदरों का परफेक्ट मिक्सचर
कान भी बंद, आँख भी बंद,
जब कुछ दिखेगा नही ,और सुनेगा नही
तो बोलेगा क्या ख़ाक,
इसलिए मुह भी बंद,
मस्त राम मस्ती में , आग लगे बस्ती में
चीनी के भाव आसमान छू रहे हैं
नेता जी , में क्या जादूगर हूँ
ऑस्ट्रेलिया में आयेदिन इंडियन पर हमले
मीडिया को अपनी भूमिका पर ध्यान देना होगा
वो दोनों देशों के सम्बन्ध बिगाड़ने पर तुला है
हाकी इंडिया प्लेयर को तनखा नही
खिलाडिओं में देश प्रेम नही रहा,
सब के सब पेट के लिए खेलते हैं
यहाँ अपने लिए ही पैसे पुरे नही पड़ रहे
इन प्लयेर्स की डिमांड जो की
मुश्किल से कुछ लाख ही होगी
बहुत ज्यादा है, कहा है पैसा
लेकिन कैटरीना कैफ का ठुमका
और शाहरुख़ खान का १० मिनट
स्टेज अपिरिएंस
उससे कही ज्यादा कीमती है
वह री मेरी गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया
गाँधी जी के तीनो बंदरों का परफेक्ट मिक्सचर
ये कुछ चुनिन्दा चुने हुए बन्दर
हिन्दुस्तान की ११५ करोड़ जनता को
बन्दर बना रहे हैं
जागो मेरे देशवासिओं अब जाग जाओ
कब तक सोते रहोगे,
इन बंदरों को अब पिंजरे में बंद
करने का समय आ गया है
और क्या कहूँ,
शुरुआत तो करो
रास्ते अपने आप बनते चले जायेंगे
जब कुछ दिखेगा नही ,और सुनेगा नही
तो बोलेगा क्या ख़ाक,
इसलिए मुह भी बंद,
मस्त राम मस्ती में , आग लगे बस्ती में
चीनी के भाव आसमान छू रहे हैं
नेता जी , में क्या जादूगर हूँ
ऑस्ट्रेलिया में आयेदिन इंडियन पर हमले
मीडिया को अपनी भूमिका पर ध्यान देना होगा
वो दोनों देशों के सम्बन्ध बिगाड़ने पर तुला है
हाकी इंडिया प्लेयर को तनखा नही
खिलाडिओं में देश प्रेम नही रहा,
सब के सब पेट के लिए खेलते हैं
यहाँ अपने लिए ही पैसे पुरे नही पड़ रहे
इन प्लयेर्स की डिमांड जो की
मुश्किल से कुछ लाख ही होगी
बहुत ज्यादा है, कहा है पैसा
लेकिन कैटरीना कैफ का ठुमका
और शाहरुख़ खान का १० मिनट
स्टेज अपिरिएंस
उससे कही ज्यादा कीमती है
वह री मेरी गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया
गाँधी जी के तीनो बंदरों का परफेक्ट मिक्सचर
ये कुछ चुनिन्दा चुने हुए बन्दर
हिन्दुस्तान की ११५ करोड़ जनता को
बन्दर बना रहे हैं
जागो मेरे देशवासिओं अब जाग जाओ
कब तक सोते रहोगे,
इन बंदरों को अब पिंजरे में बंद
करने का समय आ गया है
और क्या कहूँ,
शुरुआत तो करो
रास्ते अपने आप बनते चले जायेंगे
Friday, January 1, 2010
गुजरा हुआ वक़्त
आज उम्र के इस पड़ाव पर
में अपना बचपन याद करता हूँ
याद आती हैं मुझे माँ की
कही हुई कुछ बातें
माँ मुझसे वो बातें तब
कहती थी, जब में सारा
समय, स्कूल से आने के बाद
गलिओं में कंचे और गुल्ली डंडा
खेला करता था,
तब माँ कहती थी,
बेटा कभी पढ़ भी लिया कर
सारा दिन खेलता ही रहता है
स्कूल से आने के बाद
किताब पर भी निगाह
डाल लिया कर,
तेरे ही काम आएगा
तेरा पढना,
कुछ पढ़ लिख जायेगा
तो तेरी जिन्दगी सफल
हो जाएगी, हमारी आत्मा
को भी संतुष्टि मिलेगी
गुजरा हुआ वक़्त
कभी बापिस नही आता
लेकिन मैं माँ का कहा
सुना अनसुना कर देता
लेकिन में माँ की बात
तब भी समझता था,
की माँ ठीक ही तो
कहती थी,
लेकिन उस वक़्त
मैंने वक़्त की कीमत
को नही जाना
मैंने वक़्त को बर्बाद किया
और उसी वक़्त से में आज भी
लड़ रहा हूँ,
जो मुझे बर्बाद करने में तुला है
क्यूंकि वो जानता है
की मैंने भी उसको बर्बाद किया था कभी.
में अपना बचपन याद करता हूँ
याद आती हैं मुझे माँ की
कही हुई कुछ बातें
माँ मुझसे वो बातें तब
कहती थी, जब में सारा
समय, स्कूल से आने के बाद
गलिओं में कंचे और गुल्ली डंडा
खेला करता था,
तब माँ कहती थी,
बेटा कभी पढ़ भी लिया कर
सारा दिन खेलता ही रहता है
स्कूल से आने के बाद
किताब पर भी निगाह
डाल लिया कर,
तेरे ही काम आएगा
तेरा पढना,
कुछ पढ़ लिख जायेगा
तो तेरी जिन्दगी सफल
हो जाएगी, हमारी आत्मा
को भी संतुष्टि मिलेगी
गुजरा हुआ वक़्त
कभी बापिस नही आता
लेकिन मैं माँ का कहा
सुना अनसुना कर देता
लेकिन में माँ की बात
तब भी समझता था,
की माँ ठीक ही तो
कहती थी,
लेकिन उस वक़्त
मैंने वक़्त की कीमत
को नही जाना
मैंने वक़्त को बर्बाद किया
और उसी वक़्त से में आज भी
लड़ रहा हूँ,
जो मुझे बर्बाद करने में तुला है
क्यूंकि वो जानता है
की मैंने भी उसको बर्बाद किया था कभी.
Subscribe to:
Posts (Atom)